October 6, 2025 4:31 pm
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बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट को लेकर ऐसी जल्दबाजी क्यों

योगी सरकार ने बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट बिल पास किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला लंबित है। गोस्वामी परिवार, पुजारियों और विपक्ष का विरोध तेज़। जानिए पूरा विवाद।

कोर्ट को दरकिनार कर योगी सरकार क्यों बना रही नया क़ानून

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मथुरा-वृंदावन के ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए नया कानून पारित कर दिया है। लेकिन इस कदम ने न केवल विपक्ष, बल्कि मंदिर के पारंपरिक सेवायत गोस्वामी परिवार और पुजारियों तक को विरोध में खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला पहले से विचाराधीन है, तो आखिरकार सरकार को इतनी जल्दी क्या थी?

विवाद की शुरुआत: अध्यादेश से बिल तक

  • 26 मई 2025 को योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश 2025 जारी किया।
  • इस अध्यादेश का मकसद मंदिर के प्रबंधन के लिए 18 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन करना था।
  • गोस्वामी परिवार ने इस पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 8 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश पर रोक लगाते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में वैधता तय होने तक ट्रस्ट का संचालन नहीं होगा।
  • इसके बावजूद योगी सरकार ने 14 अगस्त 2025 को विपक्ष के वॉकआउट के बीच श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट विधेयक 2025 विधानसभा में पास करा लिया।
  • मानसून सत्र के अंतिम दिन, कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक पहले, यह बिल विधान परिषद में भी पारित हो गया और अब राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है।

ट्रस्ट का स्वरूप और विवाद

नए कानून के तहत मंदिर की प्रशासनिक व्यवस्था, अचल संपत्ति, चढ़ावा और दान का नियंत्रण सरकार द्वारा नियुक्त ट्रस्ट संभालेगा। सरकार का दावा है कि इसका मकसद तीर्थ सेवाओं में पारदर्शिता और आधुनिकीकरण लाना है।

लेकिन कई प्रावधानों ने विवाद खड़ा कर दिया है:

  • ट्रस्ट का सदस्य केवल सनातन धर्म का अनुयायी होगा।
  • मथुरा का जिलाधिकारी पदेन सदस्य होगा, लेकिन अगर वह गैर-हिंदू हुआ तो उसके स्थान पर कनिष्ठ अधिकारी को शामिल किया जाएगा।
  • मंदिर परिसर में कॉरिडोर और विकास कार्यों की योजना भी विरोध का कारण बनी है।

विरोध क्यों?

  • मंदिर के सेवायत गोस्वामी परिवार और पुजारियों का कहना है कि यह उनकी परंपरा और अधिकारों का हनन है। कुछ पुजारियों ने तो यहां तक कह दिया कि वे ठाकुर जी को कहीं और ले जाएंगे।
  • विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा सरकार मंदिरों की कमाई पर नज़र गड़ाए बैठी है।
  • सवाल यह भी उठ रहा है कि भाजपा, जो हिंदुत्व की सबसे बड़ी पैरोकार बनकर खड़ी होती है, वही क्यों हिंदू परंपराओं और धार्मिक संस्थानों पर सरकारी दखल दे रही है।

पहले भी हुई ऐसी कोशिशें

  • उत्तराखंड की धामी सरकार ने भी चारधाम मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए कानून बनाया था।
  • लेकिन तीव्र विरोध के चलते नवंबर 2021 में उसे यह कानून वापस लेना पड़ा।
  • अब वही सवाल यूपी सरकार से पूछा जा रहा है: क्या उसने उत्तराखंड से कोई सबक नहीं लिया?

निष्कर्ष

बांके बिहारी मंदिर का मामला फिलहाल अदालत की निगरानी में है, लेकिन योगी सरकार ने अदालत के फैसले का इंतजार न करके राजनीतिक विवाद को और गहरा कर दिया है।
सवाल यही है कि—
क्या यह कदम श्रद्धालुओं के हित में है या फिर मंदिरों की संपत्ति और कमाई पर सरकारी नियंत्रण की नई राजनीति की शुरुआत?

मुकुल सरल

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