बलरामपुर से गुजरात तक बलात्कार, हत्या और नफ़रत की बेलगाम कहानी
15 अगस्त की पूर्वसंध्या पर सवाल—मोदी-योगी राज में महिलाओं की सुरक्षा, न्याय और स्वतंत्रता किसके लिए?
देश भर में आज़ादी का उत्सव मनाया जा रहा है। तिरंगे लहरा रहे हैं, भाषणों की तैयारी हो रही है, और सत्ता पक्ष “हर घर तिरंगा” से लेकर “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे दोहरा रहा है। लेकिन इन नारों और असल ज़मीनी हक़ीक़त के बीच का फासला चौंकाने वाला है। सवाल सीधा है—क्या मोदी राज में बलात्कारियों, हत्यारों और नफ़रत फैलाने वालों को बेलगाम आज़ादी मिल चुकी है?
बलरामपुर गैंगरेप: SP और DM के घर के सामने चीखती इंसाफ़ की पुकार
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में 21 वर्षीय मूक-बधिर युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। यह वारदात DM और SP के सरकारी आवास से कुछ ही मीटर की दूरी पर हुई, और CCTV फुटेज में साफ़ दिखता है कि पीड़िता आरोपियों से बचने के लिए सड़क पर दौड़ रही है, पीछे बाइक पर 5-6 युवक।
गिरफ्तार आरोपियों के नाम हैं—अंकुर वर्मा और हर्षित पांडे। लेकिन यह मामला सिर्फ अपराध का नहीं, बल्कि सत्ता संरचना में फैले उस घमंड और बेख़ौफ़ मानसिकता का भी है, जिसमें अपराधियों को यक़ीन है कि उन्हें कोई नहीं रोक सकता।
गुजरात की ऑनर किलिंग: डॉक्टर बनने का सपना मौत की वजह
मोदी के “विकसित गुजरात” में एक 19 वर्षीय NEET क्वालिफ़ाई करने वाली युवती चंद्रिका को उसके पिता और चाचा ने सिर्फ इसलिए गला काटकर मार डाला, क्योंकि वह उनकी मर्ज़ी के बिना डॉक्टर बनना चाहती थी। यह घटना Times of India के संपादकीय का विषय बनी, जिसमें कहा गया—”किलर डैड्स को सख़्त सज़ा ही रोक सकती है ऐसी हिंसा।”
यह मानसिकता—जहाँ लड़कियों की पसंद, शिक्षा, और स्वतंत्रता को अपराध माना जाता है—दरअसल उस मनुवादी सोच का हिस्सा है जो महिला स्वतंत्रता को ख़त्म करना चाहती है।
राम रहीम, कुलदीप सेंगर और सत्ता का संरक्षण
गुजरात और यूपी की इन घटनाओं के पीछे एक बड़ा सवाल है—आख़िर क्यों बलात्कारियों और यौन अपराधियों को बार-बार पैरोल, बेल और राहत मिलती है?
- डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम, बलात्कार के दोषी होने के बावजूद 40 दिन की पैरोल पर बाहर।
- बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर, जो एक नाबालिग का बलात्कारी और उसके परिवार का हत्यारा है, सज़ा में राहत की मांग करता है।
- आसाराम बापू, मोदी के “झूला-यार”, बलात्कार के दोषी होने के बावजूद राजनीतिक मौन के साए में।
नफ़रत और उपद्रव को आज़ादी
यूपी के फतेहपुर में एक मकबरे पर हमला करने वाले उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, जबकि वे खुलेआम वीडियो में नज़र आते हैं।
महाराष्ट्र में 15 अगस्त पर मीट बैन—व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर धार्मिक एजेंडा थोपने की कोशिश।
यह “आजादी” किसके लिए है? अपराधियों, नफ़रत फैलाने वालों, और सत्ता संरक्षित उपद्रवी गिरोहों के लिए।
निष्कर्ष: यह कैसी आज़ादी है?
15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी हर नागरिक के लिए थी। लेकिन 2025 में यह सवाल उठ रहा है—क्या यह आज़ादी अब सिर्फ बलात्कारियों, हत्यारों और नफ़रत फैलाने वालों के लिए आरक्षित हो गई है? बलरामपुर से लेकर गुजरात, यूपी से लेकर महाराष्ट्र—घटनाओं की लंबी सूची इस सवाल का जवाब ख़ुद दे रही है।