मोदीजी ने सजा दिया चुनावी stage, रणनीति पर सवाल
बहुत दिलचस्प घटनाक्रम सामने आ रहा है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौ साल बाद GST यानी ‘गब्बर सिंह टैक्स’ में कटौती का ऐलान किया है, तो दूसरी तरफ बिहार की सियासत में “माँ के अपमान” को लेकर भाजपा का आंदोलन चल रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सब वाकई जनता के हित में है या फिर सिर्फ़ चुनावी गणित साधने की कोशिश?
पिछले नौ सालों से जिस GST को लेकर व्यापारी, छोटे उद्योगपति और विपक्ष लगातार विरोध कर रहे थे, अब मोदी सरकार ने उसमें कटौती की घोषणा कर दी है। विपक्ष इसे सीधा चुनावी कदम बता रहा है।
GST: ‘गब्बर सिंह टैक्स’ से लेकर कटौती तक
- 2016 से लागू GST को राहुल गांधी ने ‘गब्बर सिंह टैक्स’ करार दिया था।
- छोटे व्यापारियों और असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को इससे भारी नुकसान पहुंचा।
- नौ साल तक लोगों की गुहार को दरकिनार करने के बाद मोदी सरकार ने अब जाकर इसमें कटौती की है।
- विपक्ष का कहना है कि यह कटौती जनता को राहत देने के लिए नहीं, बल्कि आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर की गई है।
राहुल गांधी का यह दावा और भी रोचक है कि जिस मुद्दे को वह उठाते हैं, अंततः मोदी सरकार को मानना ही पड़ता है—चाहे वह जातिगत जनगणना हो या अब GST में कटौती।
‘माँ का अपमान’ और चुनावी राजनीति
बिहार में भाजपा ने “प्रधानमंत्री की माँ के अपमान” को लेकर सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन इस विरोध ने कई सवाल खड़े कर दिए:
- तेजस्वी यादव ने पूछा कि पाँच दिन बाद अचानक प्रधानमंत्री को माँ का अपमान क्यों याद आया?
- विरोध प्रदर्शनों के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा और गालियों के वीडियो सामने आए।
- विपक्ष का आरोप है कि ‘माँ के सम्मान’ की आड़ में भाजपा चुनावी जमीन तैयार कर रही है।
विरोधाभास और दोहरे मापदंड
मोदी सरकार पर यह आरोप भी लग रहा है कि जब भाजपा समर्थित नेताओं पर महिलाओं के खिलाफ गंभीर आरोप लगते हैं, तब पार्टी और प्रधानमंत्री चुप्पी साध लेते हैं। प्रज्वल रेवन्ना जैसे नेताओं को चुनाव में उतारने से लेकर ट्रोल आर्मी द्वारा महिलाओं को गालियाँ देने तक, भाजपा की राजनीति पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
अर्थव्यवस्था और जनता की वास्तविकता
सरकार की ओर से जिस ‘गिफ्ट’ के तौर पर GST कटौती को प्रचारित किया जा रहा है, वह असल में जनता को नौ साल पहले की स्थिति पर वापस लाता है। इस बीच छोटे उद्योगों में भारी गिरावट आई है, असंगठित क्षेत्र चौपट हुआ है और बेरोजगारी चरम पर पहुँच गई है।
निष्कर्ष
दोनों घटनाएँ—GST कटौती और ‘माँ का अपमान’ पर राजनीति—दरअसल एक ही सूत्र से जुड़ी हैं: चुनाव। जनता को राहत देने की बजाय भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप है कि वे हर मुद्दे को चुनावी रणनीति के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। सवाल यही है कि क्या नौ साल बाद जनता को मिला यह ‘गिफ्ट’ सचमुच राहत है या सिर्फ़ चुनावी ‘जुमला’?