December 8, 2025 4:07 pm
Home » आबोहवा » एक झटके में सारा जंगल और अरावली पहाड़ियां ख़ल्लास!

एक झटके में सारा जंगल और अरावली पहाड़ियां ख़ल्लास!

अरावली की परिभाषा बदलकर 91% पहाड़ियां खनन के लिए खोल दी गईं। जंगल घटे, भूजल गिरा, प्रदूषण बढ़ा। यह लेख बताएगा कि भारत में कैसे परिभाषाएं बदलकर इकोसिस्टम नष्ट किया जा रहा है।

हम प्रदूषण का रोना रोते रहे और उन्होंने पहाड़ों व जंगलों को साफ कर डाला

भारत में समस्या का हल अक्सर नाम या परिभाषा बदल देना माना जाता है। पहले पहाड़ों का काम था जंगलों को बचाना, हवा साफ रखना, भूजल को संभालना। लेकिन जैसे ही पहाड़ों का नया “काम” तय कर दिया गया – पत्थरों की खानें पैदा करना – तो जवाबदेही, पर्यावरण, कानून और नैतिकता सब किनारे हो गए।

ठीक यही अरावली के साथ हुआ है।

अरावली की परिभाषा बदली, संकट स्थायी

बीते दिनों जब सुप्रीम कोर्ट दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर सख्त रुख दिखा रहा था और कह रहा था कि केवल दो-तीन महीने नहीं, सालभर इस पर ध्यान देना होगा, उसी समय सरकार अरावली की परिभाषा बदलने में लगी थी।

नए नियम के अनुसार:

  • केवल 100 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही अरावली मानी जाएंगी
  • बाकी छोटी पहाड़ियां खनन के लिए खुल जाएंगी
  • बहुमंजिला इमारतें, सपाट मैदान – सबकी इजाज़त

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पैनल ने यह सिफारिश की, और 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर भी कर लिया। हैरानी की बात यह है कि यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसने वर्षों से अरावली में खनन पर रोक लगाने वाली याचिकाओं की सुनवाई की थी।

और यह फैसला Forest Survey of India की आपत्तियों के बावजूद लिया गया।

अरावली का 91% हिस्सा खनन को खुला

Forest Survey के आंकड़े बताते हैं:

  • अरावली में 12,081 पहाड़ियां हैं
  • इनमें सिर्फ 8.7% पहाड़ियां 100 मीटर से ज्यादा ऊंची हैं
  • यानी 91.3% पहाड़ियां अब खनन के लिए खुल गईं

असलियत यह है कि इन 91 फीसदी हिस्सों का बहुत बड़ा भाग पहले ही खनन माफिया द्वारा साफ किया जा चुका है। अब उन्हें आधिकारिक मोहर मिल गई।

साल 2010 से ही सरकारी और कोर्ट-नियुक्त विशेषज्ञ अरावली को बचाने के बजाय यह देखने में लगे हैं कि किन हिस्सों को अरावली की परिभाषा से बाहर करके खनन के नाम पर समर्पित किया जा सकता है।

दिल्ली का प्रदूषण और अरावली का सफाया

दिल्ली-एनसीआर के लोग पूछ रहे हैं:

  • क्या अरावली काटने से हवा साफ हो जाएगी?
  • जब अरावली दिल्ली का 7-9% कार्बन सोखती है, तो इसे क्यों काटा गया?

हरियाणा में जहां भी खनन हुआ है:

➡️ हर साल भूजल 1 मीटर तक गिर रहा है

विशेषज्ञ बताते हैं:

  • ऊंची पहाड़ियां हल्के प्रदूषक (PM2.5) रोकती हैं
  • छोटी पहाड़ियां रेत व भारी प्रदूषकों को रोकती हैं
  • अरावली थार रेगिस्तान के विस्तार की प्राकृतिक दीवार है

यह दीवार टूटेगी तो रेगिस्तान दिल्ली पहुंचकर नहीं रुकेगा – गंगा, यमुना, नर्मदा के मैदानों तक तपिश फैलेगी।

फिर खेती, पानी, हवा – सब संकट में। और तब कोई उपाय नहीं बचेगा।

जंगलों पर दोहरी मार

अरावली की निचली पहाड़ियां जंगल संभालती हैं। दिल्ली से लेकर उदयपुर-बांसवाड़ा तक इन पहाड़ियों पर जंगल फैले हैं। सरिस्का और रणथंभौर टाइगर रिजर्व इन्हीं में स्थित हैं।

प्रश्न यह है:

  • जो जंगल सेंक्चुअरी में नहीं आते, उनका क्या होगा?
  • अगर चारों ओर खनन हुआ तो जानवरों के कॉरिडोर खत्म हो जाएंगे
  • पेड़ों की कटाई से भूजल गिरने लगेगा
  • सूखे जंगल सेंक्चुअरी के भीतर तक असर डालेंगे

लेकिन क्या किसी को चिंता है?

हमने जंगल की परिभाषा भी बदल दी

अरावली की परिभाषा बदलना कोई अकेला मामला नहीं है।

हमने जंगल की परिभाषा भी बदल दी है:

  • सार्वजनिक बगीचे
  • चाय-कॉफी के बागान
  • पेड़ों के छोटे झुरमुट

…सब “जंगल” मान लिए गए हैं।

इसलिए:

  • जंगल कागज़ पर बढ़ रहे हैं
  • ज़मीन पर घट रहे हैं

पत्रकार एम. राजशेखर बताते हैं:

  • Forest Survey कहता है – 21% भारत वनाच्छादित
  • लेकिन असली इकोसिस्टम देने वाले जंगल 10% से भी कम

सरकारी रिपोर्टों का अंतर्विरोध

  • Dehradun स्थित Forest Survey कहता है:
    • 1987: 642,401 km²
    • 2023: 715,342 km²
    • यानी 21.76% क्षेत्र वनाच्छादित

लेकिन:

  • Hyderabad Remote Sensing Centre कहता है:
    • Forest cover 75,000 km² कम
  • Global Forest Watch कहता है:
    • भारत का वन क्षेत्र सिर्फ 440,000 km²
    • यानी 15%

10 साल में कानून बदलकर जंगल काटे गए

जंगल से छेड़छाड़ कोई छुपा काम नहीं है। कानून बदलकर किया गया:

  • 2023: वन संरक्षण संशोधन अधिनियम
  • 2020: EIA नियम ढीले
  • 2018: Coastal Regulation Zone Act में बदलाव

यानी:

  • clearance लेना अब मज़ाक है
  • प्रोजेक्ट तेज़ी से स्वीकृत
  • जंगल कॉरपोरेट को सौंपे गए

अरावली पर फैसला, और देश भर की मिसालें

अरावली पर सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद घटनाएं अपने आप बोलती हैं:

  • दिल्ली में BJP दफ्तर तक सड़क चौड़ी करने के लिए 40 पेड़ काटे गए – कोर्ट ने फटकार लगाई
  • राजस्थान के भीलवाड़ा में रातोंरात 200 बीघा में पेड़ों की सफाई
  • छत्तीसगढ़ में लेमरू वनभूमि कॉरपोरेट को देने की सिफारिश
  • हसदेव के जंगल नष्ट
  • ग्रेट निकोबार में 10 लाख से ज्यादा पेड़ों का खतरा

राजशेखर लिखते हैं:

  • 2017 तक भारत में सिर्फ 34,000 km² अछूते जंगल बचे
  • ग्रेट निकोबार में 660 km²
  • अब तीन चरणों में सब काटने की योजना

सिंगरौली में:

➡️ 6 लाख पेड़ उद्योगपति के लिए कटे
विरोध करने वालों पर केस दर्ज।

लोग लड़ रहे हैं – लेकिन क्या असर होगा?

कई जगह लोग विरोध कर रहे हैं।
गंगोत्री इलाके में 7000 देवदार बचाने के लिए चिपको जैसा आंदोलन
लोग पेड़ों को रक्षा सूत्र बांध रहे हैं।

पर जब तक बड़े फैसले न उलटें, यह जद्दोजहद जारी रहेगी।

निष्कर्ष: परिभाषाएं बदलीं, जंगल बदले, भविष्य बदला

देश में एक प्रवृत्ति साफ है:

  • समस्या नहीं बदली जाती
  • उसकी परिभाषा बदल दी जाती है

अरावली की परिभाषा बदली
जंगल की परिभाषा बदली
वन-कवर के आंकड़े बदल दिए गए

और इसी धोखे में:

  • पहाड़ियां गायब हो गईं
  • जंगल खत्म हो गए
  • इकोसिस्टम नष्ट हो गया

कुछ निजी हितों के लिए देश की प्राकृतिक सुरक्षा दीवारें कुर्बान हो रही हैं।

उपेंद्र स्वामी

पैदाइश और पढ़ाई-लिखाई उदयपुर (राजस्थान) से। दिल्ली में पत्रकारिता में 1991 से सक्रिय। दैनिक जागरण, कारोबार, व अमर उजाला जैसे अखबारों में लंबे समय तक वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप

Read more
View all posts

ताजा खबर