“प्रधानमंत्री कभी छुट्टी नहीं लेते” — एक गढ़ा हुआ सच और उसका प्रचारतंत्र
“मोदी जी कभी छुट्टी नहीं लेते।”
यह वाक्य आपने टीवी, सोशल मीडिया या बीजेपी समर्थक प्रचार में अनगिनत बार सुना होगा। यही आपको बताया गया है, और यही आपको मानने के लिए कहा गया है — कि नरेंद्र मोदी ने अपने 11 साल के शासनकाल में एक भी दिन की छुट्टी नहीं ली।
लेकिन सवाल उठता है — प्रधानमंत्री की ड्यूटी और पार्टी प्रचार के बीच की सीमा आखिर कहां है?
क्या जब नरेंद्र मोदी दिन-रात चुनावी रैलियाँ और रोडशो करते हैं, तब वो देश के प्रधानमंत्री के रूप में ड्यूटी पर होते हैं या भारतीय जनता पार्टी के नेता के रूप में प्रचार में? बिहार के विधानसभा चुनाव हों या कर्नाटक, हर जगह यही तस्वीर दिखाई देती है — मंच पर प्रधानमंत्री, लेकिन भाषण पार्टी के उम्मीदवारों के लिए।
तो क्या यह सब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की जिम्मेदारी में गिना जाना चाहिए या भाजपा मुख्यालय के काम में?
“मोदी जी छुट्टी नहीं लेते” — एक आधा सच, एक पूरा प्रोपैगंडा
दरअसल, यह विचार — कि मोदी जी ने कभी छुट्टी नहीं ली — RSS, बीजेपी और गोदी मीडिया द्वारा गढ़ा गया एक मिथक है। इसका उद्देश्य यह छवि बनाना है कि मोदी जी ‘अतिश्रमशील’ और ‘त्यागमूर्ति’ प्रधानमंत्री हैं, जो देश के लिए 24 घंटे काम करते हैं।
लेकिन सच्चाई कुछ और है।
भारत के संविधान और प्रशासनिक ढांचे के अनुसार, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर बैठे किसी व्यक्ति के लिए “छुट्टी” का कोई प्रावधान होता ही नहीं।
क्योंकि यह पद “हमेशा ड्यूटी पर” माने जाते हैं। प्रधानमंत्री विदेश में हों, बीमार हों या निजी यात्रा पर, वे हर समय PMO से संपर्क में रहते हैं और निर्णय लेने की स्थिति में होते हैं।
यही कारण है कि जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, तब तक राजीव गांधी को शपथ दिलाए जाने तक देश में प्रधानमंत्री पद “खाली” नहीं रहा — एक मिनट के लिए भी नहीं।
सभी प्रधानमंत्री “ऑन ड्यूटी” रहे हैं — सिर्फ मोदी नहीं
यह बात केवल नरेंद्र मोदी पर लागू नहीं होती। मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू — सभी प्रधानमंत्री कभी छुट्टी पर नहीं गए, क्योंकि इस पद के लिए छुट्टी की अवधारणा ही नहीं है।
कई बार इस विषय पर सूचना का अधिकार (RTI) के तहत पूछताछ की गई। हर बार प्रधानमंत्री कार्यालय से एक ही उत्तर मिला — “प्रधानमंत्री छुट्टी पर नहीं जाते, क्योंकि वे हर समय ड्यूटी पर माने जाते हैं।”
लेकिन इस आधे सच को गोदी मीडिया ने ऐसे परोसा जैसे यह सिर्फ मोदी जी की विशेषता हो। जैसे उन्होंने बाकी सभी प्रधानमंत्रियों से बढ़कर कुछ किया हो।
चुनावी प्रचार: सरकारी काम या पार्टी का कार्य?
अगर कोई आम सरकारी कर्मचारी अपनी निजी यात्रा या धार्मिक तीर्थ के लिए जाता है, तो उसे छुट्टी लेनी पड़ती है। लेकिन प्रधानमंत्री जब केदारनाथ गुफा में ध्यान करते हैं, मां से मिलने जाते हैं, या पार्टी रैलियों में जुटे रहते हैं — तो क्या वह प्रधानमंत्री की ड्यूटी में आता है या भाजपा कार्यकर्ता की जिम्मेदारी में?
अगर वह देश का कार्य है, तो फिर उसकी जवाबदेही और खर्च का ब्यौरा क्यों नहीं सार्वजनिक किया जाता?
और अगर वह निजी या पार्टी कार्य है, तो फिर प्रधानमंत्री का पद और सरकारी संसाधन उस प्रचार के लिए क्यों उपयोग होते हैं?
असलियत क्या है
इस पूरी कहानी का सार यह है कि —
प्रधानमंत्री कभी छुट्टी नहीं लेते, क्योंकि संविधान में उसके लिए कोई प्रावधान नहीं है।
लेकिन बीजेपी और उसका प्रचारतंत्र इसे ऐसे पेश करता है, मानो यह केवल नरेंद्र मोदी की देशभक्ति और त्याग की मिसाल हो।
पूर्व कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने 2016 में हिंदुस्तान टाइम्स को बताया था कि प्रधानमंत्री और मंत्री पदों के लिए छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
इसी तरह मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने भी यही स्पष्ट किया था — कि प्रधानमंत्री का पद हमेशा ऑन-ड्यूटी रहता है।
तो फिर “मोदी जी कभी छुट्टी नहीं लेते” — यह बयान न तो नया है, न ही अद्वितीय। यह बस एक राजनीतिक मिथक है, जो एक सामान्य प्रशासनिक सच्चाई को “व्यक्तिगत महानता” के प्रचार में बदल देता है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री पद का अर्थ है — निरंतर जिम्मेदारी, न कि त्याग की विज्ञापनबाजी।
बीजेपी ने जो सभी प्रधानमंत्रियों के लिए लागू तथ्य था, उसे केवल मोदी के “बलिदान” के रूप में पेश किया, ताकि उनकी छवि “काम में डूबे नेता” के रूप में स्थापित की जा सके।
वास्तविकता यह है कि — न तो मोदी ने छुट्टी ली, न किसी प्रधानमंत्री ने — क्योंकि इस पद के लिए छुट्टी की व्यवस्था ही नहीं है।
