November 22, 2025 12:47 am
Home » देशकाल » राहुल ने बिहार में कहा ‘वोट के लिए ‘वे’ नाच भी करेंगे’

राहुल ने बिहार में कहा ‘वोट के लिए ‘वे’ नाच भी करेंगे’

बिहार चुनाव में राहुल गांधी के तीखे बयानों और व्यंग्य से मचा राजनीतिक घमासान। छठ पूजा, मोदी-ट्रम्प, और तेजस्वी की साझेदारी पर “रोजनामा” का विश्लेषण।

बिहार में चुनावी ताप — राहुल गांधी के वार से मोदी-नीतीश की साँस फूली

बिहार में छुनाव बा — और छुनाव का मतलब है धमाल, व्यंग्य और जनता के बीच उठती गूंज। इस बार मैदान में राहुल गांधी उतरे हैं और उनके वार सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जा रहे हैं। दिल्ली में जहाँ सांस लेना भी दूभर है, वहीं बिहार की मिट्टी में राहुल गांधी ने ऐसा “सांस रोक देने वाला” हमला बोला कि बीजेपी खेमे में बेचैनी बढ़ गई है।

दिल्ली के बिसलरी घाट से लेकर बिहार के वोट-घाट तक, राहुल गांधी ने मोदी सरकार के “ड्रामा” और “डुप्लीकेट” छवि पर प्रहार किया। उन्होंने कहा —

“अगर बिहार का नौजवान मोदी जी से कहे कि हम आपको वोट देंगे, आप स्टेज़ पर नाच के दिखाइए — तो मोदी जी नाच भी लेंगे!”

यह बयान जितना व्यंग्यात्मक था, उतना ही सटीक। यह सिर्फ़ तंज़ नहीं, बल्कि मोदी ब्रांड राजनीति की उस दृश्य-निर्माण वाली राजनीति पर चोट थी, जहाँ कैमरे और कैप्शन असलियत को ढँक लेते हैं।

🎭 “ड्रामा”, “बिसलरी घाट” और “छठ मैया का अपमान”

दिल्ली में हुए “छठ घाट” आयोजन का वीडियो अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि राहुल गांधी ने बिहार में उसे चुनावी मुद्दा बना दिया। उन्होंने कहा कि मोदी जी के लिए साफ़ पानी अलग से मँगवाया गया — “बिसलरी घाट” बना दिया गया — जबकि जनता यमुना के गंदे पानी में डूबी है।

“एक हिंदुस्तान मोदी जी का — जहाँ साफ़ पानी, कैमरा और ड्रामा है; और दूसरा हिंदुस्तान जनता का — जहाँ गंदा पानी और बीमारी है।”

छठ जैसी पवित्र परंपरा को भी राजनीतिक ड्रामे में बदल देना — यही राहुल गांधी का तंज़ था। और बिहार की जनता ने इस तंज़ को समझा भी, महसूस भी किया।

🔥 बिहार का “मदर ऑफ ऑल इलेक्शंस”

चुनाव आयोग ने कहा — “बिहार का चुनाव है मदर ऑफ ऑल इलेक्शंस” — यानी सारे चुनावों की जननी। राहुल गांधी ने इस कथन को दिल से लिया।
उनका भाषण बताता है कि वे इस चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति की परीक्षा-पट्टी मान रहे हैं।
तेजस्वी यादव के साथ उनकी साझेदारी इस बार महज़ मंचीय तालमेल नहीं है — बल्कि एक ऐसा नैरेटिव है जो कहता है कि “रोज़गार बनाम ड्रामा” ही असली लड़ाई है।

उधर बीजेपी का आईटी सेल गणित में फँसा है — कौन-से जिले में कितनी नौकरी, कितने परिवार, कितने वोट। यानी इस बार डेटा-युद्ध भी विपक्ष ने ही थमा दिया है।

🕴️ नितीश कुमार और मोदी की “मुखौटा सरकार”

राहुल गांधी ने बिहार की सत्ता को “मुखौटा सरकार” कहा। उनका निशाना साफ़ था —

“नितीश बाबू सिर्फ़ मुखौटा हैं, असली कंट्रोल दिल्ली से चलता है।”

यह वही नितीश कुमार हैं जिन्होंने एक रैली में कह दिया — “मोदी जी फिर से मुख्यमंत्री बनें।”
भीड़ में पसीना छूट गया, मंच पर हँसी गूँज उठी। लेकिन यह हँसी भी अब बिहार के राजनीतिक हास्य का हिस्सा बन गई है।

💃 “डांस” वाले बयान का सियासी मतलब

जब राहुल गांधी कहते हैं कि मोदी जी वोट के लिए नाच सकते हैं, तो यह केवल व्यंग्य नहीं — यह राजनीतिक प्रतीक है।
वह यह कह रहे हैं कि मोदी की राजनीति अब इतनी “ड्रामा-निर्भर” हो चुकी है कि असल मुद्दे — बेरोज़गारी, महंगाई, किसान, शिक्षा — सब मंच के पीछे चले गए हैं।

यही कारण है कि बिहार के नौजवान — विशेषकर जेन ज़ी मतदाता — राहुल गांधी के इस बयान को सिर्फ़ चुटकी नहीं बल्कि चुनौती के रूप में ले रहे हैं।

🌏 ट्रम्प, डर और अंतरराष्ट्रीय मौन

राहुल गांधी ने अपने भाषण में डोनाल्ड ट्रम्प का भी जिक्र किया —

“ट्रम्प कहते हैं मैंने मोदी को डराया, और उन्होंने सीज़फ़ायर कर दिया। मोदी जी ने कभी यह नहीं कहा कि ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं।”

यह टिप्पणी बताती है कि राहुल गांधी विदेश नीति के मोर्चे पर भी मोदी के मौन को मुद्दा बना रहे हैं। जब ट्रम्प बार-बार सार्वजनिक तौर पर मोदी का मज़ाक उड़ाते हैं, तो प्रधानमंत्री की चुप्पी अब सवालों में है।

🧠 जनता बनाम ट्रोल आर्मी

बेबाक भाषा के लाइव चैट में बीजेपी ट्रोल आर्मी की बाढ़ आ गई — वही पुरानी दो रुपये की सेना, वही घिसे-पिटे तर्क।
लेकिन जैसे भाषा ने कहा —

“यह दो रुपये की ट्रोल आर्मी अपनी स्क्रिप्ट से बाहर सोच नहीं सकती। असली सवाल यह है कि बिहार में बेरोज़गारी, पलायन, और युवाओं की उम्मीदों पर कौन बोलेगा?”

राहुल गांधी का भाषण इन्हीं सवालों की ज़मीन पर गूँज रहा है।

🌕 छठ और बिहार की अस्मिता

राहुल गांधी ने छठ के बहाने बिहार की सांस्कृतिक अस्मिता को छुआ।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में जो ‘छठ ड्रामा’ हुआ, वह बिहारियों का नहीं, बल्कि पॉलिटिकल पीआर का त्योहार था।
यही वजह है कि यह मुद्दा अब “बिहार बनाम दिल्ली के ड्रामे” के रूप में उभर रहा है — और बिहार की जनता इसे गहराई से महसूस कर रही है।

🔍 निष्कर्ष: चुनावी मंच पर असली मुकाबला

बिहार में इस बार चुनाव मोदी बनाम राहुल भर नहीं है, बल्कि ड्रामा बनाम मुद्दा, मुखौटा बनाम जनता और घोषणा बनाम नौकरी का है।
राहुल गांधी का अंदाज़ मज़ाकिया है, लेकिन उनके सवाल बेहद गंभीर हैं —

  • क्या मोदी जी के पास बिहार के युवाओं के लिए नौकरी का जवाब है?
  • क्या छठ का ड्रामा बिहार की गरीबी पर पर्दा डाल सकता है?
  • और क्या ट्रम्प की धमकी पर मौन रहने वाला नेता जनता के सवालों पर बोलेगा?

“रोजनामा” की यही समझ है — व्यंग्य में सच्चाई, और सच्चाई में राजनीति

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

Read more
View all posts

ताजा खबर