बिहार में राजनीतिक गठबंधन की जंग – दलित वोट से लेकर पवन सिंह तक हर मोर्चे पर सियासी खींचतान
बिहार में चुनावी तारीखों की घोषणा से पहले ही सियासी हलचल तेज हो गई है। एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है, जबकि दलित और पिछड़ा वोट बैंक को साधने के लिए हर पार्टी अपने-अपने दांव चल रही है।
बिहार की सियासत में इस समय जो घमासान मचा है, वह सिर्फ सीट बंटवारे तक सीमित नहीं है। राजधानी दिल्ली से लेकर पटना तक बैठकों का दौर चल रहा है, नाराज़गी और अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आ रही है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) इस बार अंदरूनी फूट से जूझ रहा है, जबकि इंडिया गठबंधन (RJD–Congress–CPIML) में भी सीटों को लेकर तगड़ा सरफुटव्वल जारी है।
दलित वोट पर सभी की नजर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की टीम इस बार बिहार में दलित वोट बैंक पर फोकस कर रही है। डलित CGI पर जूता फेंके जाने की घटना के बाद मोदी ने देर रात ट्वीट कर इसे “राष्ट्रीय शर्म” बताया — इसे राजनीतिक नुकसान से बचने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है।
बीजेपी जानती है कि बिहार में उसका आधार उतना मजबूत नहीं है जितना वह दिखाती है। नितीश कुमार के साथ रहते हुए ही बीजेपी सत्ता तक पहुंची, लेकिन अब साफ दिख रहा है कि यह नितीश का आखिरी चुनाव हो सकता है। पार्टी भीतर ही भीतर नितीश के बाद के दौर की तैयारी कर रही है।
महिलाओं के खाते में पैसा और चुनावी रिश्वत
6 अक्टूबर की सुबह ही नितीश कुमार सरकार ने 1 करोड़ 21 लाख महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये डलवाए। इसे चुनावी रिश्वत की आखिरी किस्त बताया जा रहा है। माइक्रोफाइनेंस के कर्ज के जाल में फंसी ग्रामीण महिलाओं में नाराज़गी है, जो नितीश सरकार के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।
बीजेपी की मशीनरी और ‘ओपिनियन पोल’ का खेल
चुनाव आयोग की तारीख़ों की घोषणा के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर “भगवा आंधी” वाले ओपिनियन पोल चलने लगे। सवाल उठ रहा है कि ये सर्वे कहाँ और कैसे करवाए गए? बीजेपी के लिए ये आसान चुनाव नहीं है, इसलिए ओपिनियन पोल के जरिये माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।
पवन सिंह की वापसी और ‘मर्द कार्ड’ की राजनीति
भोजपुरी गायक और अभिनेता पवन सिंह की बीजेपी में वापसी ने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है। कभी पार्टी से नाराज़ होकर बाहर हुए पवन सिंह को अमित शाह की मौजूदगी में दोबारा बीजेपी में शामिल किया गया।
पवन सिंह भोजपुरी बेल्ट में बेहद लोकप्रिय हैं — खासकर युवाओं, ड्राइवरों और छोटे कारोबारियों के बीच। बीजेपी का लक्ष्य है कि राजपूत और लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समुदाय के वोटों को एकजुट किया जाए।
लेकिन पवन सिंह के निजी विवाद को भी बीजेपी प्रचार में “पीड़ित पुरुष कार्ड” के रूप में भुनाने की कोशिश कर रही है।
जीतेन मांझी, चिराग पासवान और NDA की पेचीदगी
जीतेन राम मांझी दलितों में सबसे पिछड़े मुसहर समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे इस समय एनडीए से बेहद नाराज़ बताए जाते हैं।
चिराग पासवान की स्थिति भी अनिश्चित है — उनकी पार्टी का विभाजन और सीटों पर दावा अब तक सुलझा नहीं है।
बीजेपी के भीतर यह साफ़ माना जा रहा है कि नितीश के बाद पार्टी इन सहयोगियों को किनारे करने की तैयारी में है।
प्रशांत किशोर का नया खेल
जन सुराज के प्रशांत किशोर (PK) को दिल्ली का मीडिया “नए मुख्यमंत्री चेहरे” की तरह पेश कर रहा है।
PK ने हाल ही में बीजेपी के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मंत्री अशोक चौधरी पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं, लेकिन जब अडानी को भागलपुर में एक हजार एकड़ ज़मीन सिर्फ एक रुपये के लीज़ पर दी गई, तब PK चुप रहे।
बिहार की जनता यह भली-भांति समझ रही है कि जन सुराज के पीछे कॉर्पोरेट निवेश है — गाड़ियां, प्रचार वाहन और पेड प्रचार इसका प्रमाण हैं।
इंडिया गठबंधन में सिरफुटव्वल
दूसरी तरफ, इंडिया गठबंधन में भी हालात बेहतर नहीं हैं।
RJD का कहना है कि 2020 में उसका वोट शेयर 23% रहा, जबकि JDU का 16% तक गिर गया।
तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, जबकि मुकेश सहनी ने डिप्टी सीएम की कुर्सी की मांग कर दी है।
भागपा (माले) भी नाराज़ है — पिछली बार मिली 19 सीटों में से उसने 12 जीती थीं, इसलिए इस बार ज़्यादा सीटें चाहती है।
अंतिम तस्वीर
इस बार बिहार का चुनाव किसी एक गठबंधन की जीत से ज़्यादा, जनता के भरोसे की परीक्षा बनने जा रहा है।
दलित, महिला और युवा वोटरों का मूड असली निर्णायक होगा।
और इस बार का संघर्ष सिर्फ एनडीए बनाम इंडिया नहीं, बल्कि भरोसा बनाम प्रचार का भी है।
