November 14, 2025 8:46 pm
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बिहार का युवा क्यों इतना नाराज हैं भाजपा-जदयू के नेताओं से!

बिहार के युवा अब सीधे सवाल उठा रहे हैं — भ्रष्टाचार, परिवारवाद, बेरोज़गारी और नशे पर नाराज़गी। हमारी ग्राउंड रिपोर्ट में पढ़िए नौजवान क्या माँग रहे हैं और इस बार चुनाव से उनकी क्या उम्मीदें हैं।

बिहार चुनाव और नौजवानों की आग: चप्पल-जूता नहीं, जवाब चाहिए

सत्ता से सीधे-सीधे सवाल उठाते बिहार के नौजवानों की आवाज़ साफ सुनाई देती है — “यहाँ का जितना भी नेता चोर है, चाहे वो बीजेपी हो या जदू हो — उनको दोड़ा-दोड़ा का चप्पल-जूता समारी है।” यह गुस्सा सिर्फ नाराज़गी नहीं, बल्कि उस भरोसे की चिर-टूटी तह है जिसमें युवा आज राजनेताओं की पारदर्शिता, जवाबदेही और रोज़गार के प्रश्न पूछ रहे हैं।

जहाँ सवाल सीधे और कड़क हैं

बिहार के युवा अब वही बातें उठा रहे हैं जो सालों से लोग कान भरकर सुनते रहे—नेताओं की बढ़ती संपत्ति, नौकरियों में पारदर्शिता का अभाव, और राजनीति में परिवारवाद। रिपोर्ट के एक युवक ने बेबाक अंदाज़ में पूछा कि “नेताओं के बच्चे क्या करते हैं और उनकी संपत्ति कहाँ से बढ़ जाती है?” यही सवाल हर गाँव और कस्बे में गूँज रहा है। पढ़े-लिखे नेता, तर्कसंगत बहस और काम के परिणाम — ये युवा प्राथमिकताएँ बताती हैं कि अब भावनात्मक वोटिंग की जगह सवेंदनशील मुद्दे और हिसाब-किताब मांगने वाली राजनीति मन में है।

भ्रष्टाचार, लूट और विकास की राजनीति

युवाओं का गुस्सा स्थानीय विकास के नज़रिए से भी है। सड़क, नाली, पाइपलाइन बनाने और फिर उसे तोड़ कर फिर से फंडिंग कर देने जैसी पारदर्शिताओं को लेकर तीखी नराज़गी है। “यहाँ लूट है,” एक युवा ने रौंदते हुए कहा — और यही धारणा चुनावी बहस का केंद्र बनती दिख रही है। युवा पूछते हैं — विकास किसके लिए हो रहा है और किसके फायदे के लिए?

नशा, बेरोज़गारी और सामाजिक गिरावट

एक और बड़ा मुद्दा है नशा और शराब की बढ़ती पहुंच। इलाके के लोगों का कहना है कि हर गाँव में नशा स्तर बढ़ गया है — अफ़ीम, चरस, शराब आसानी से उपलब्ध हैं। बेरोज़गारी और भविष्य के अवसरों की कमी ने युवा पीढ़ी को असुरक्षित कर दिया है। इसलिए नौजवानों की नाराज़गी सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ पर नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के जीवन-खर्च और सम्मान की रक्षा पर भी केंद्रित है।

पहचानशुदा धार्मिक-राजनीतिक वादों के खिलाफ सवाल

राजनीतिक दलों की धार्मिक-विभाजन की रणनीतियों पर भी नौजवानों ने कड़ा सवाल उठाया। वे पूछते हैं — नेताओं के परिवार, उनकी आर्थिक स्रोत और सामुदायिक बयानबाज़ी के बीच क्या संबंध है? क्या सड़कों पर फैलाई जा रही नफरत से आम आदमी का जीवन बेहतर होगा? युवा इस तरह की सियासत से दूर हटकर मुद्दों पर काम चाह रहे हैं।

युवा चाहते हैं — पढ़ा-लिखा नेतृत्व और जवाबदेही

रिपोर्ट में साफ़ हुआ कि नौजवान चाहते हैं: ईमानदार, पढ़ा-लिखा और तर्कसंगत नेतृत्व। वे न केवल वादे सुनना चाहते हैं, बल्कि ठोस योजना, पारदर्शी फंडिंग और परिणाम भी चाहते हैं। “सरकार चाहिए, लेकिन किसकी?” — यही प्रश्न कई युवा बार-बार दोहरा रहे हैं। वे किसी भी नेता को तब तक स्वीकार नहीं करेंगे जब तक उसके काम का हिसाब सामने नहीं होगा।

स्थानीय अनुभव — आवाज़ें और उम्मीदें

ग्राउंड रिपोर्ट में मिले वाक्यांश और कट-टूटे बोल युवा वोटर की असल भावना बताते हैं: गुस्सा, थकान, और उम्मीद — साथ में ज़िद कि बदलाव संभव है। कोई कहता है कि “अगर तेज़स्वी को थोड़ी सीट कम भी मिली तो लोग पलट सकते हैं,” तो कोई कहता है कि पुराने जमाने के ‘जिंगलराज’ का दौर खत्म होना चाहिए। इन सारी प्रतिक्रियाओं में एक ज्वलंत बात साफ़ है — अब पहचान, वाचालियाँ और दिखावटी राजनीति से आगे नज़र रखना चाहती है युवा पीढ़ी।

नतीजा: चुनावी संदेश स्पष्ट है

बिहार के नौजवानों का संदेश साफ़ है — कटु सत्य से बचना बंद करो। काम दिखाओ, जवाब दो, और युवाओं के भविष्य का हिसाब रखो। चप्पल-जूते की नारेबाज़ी और नक़ली दायरों से युवा खुश नहीं। वे चाहते हैं कि उनकी पढ़ाई, रोज़गार, स्वास्थ्य और आमजीवन की समस्याएँ सिरे से सुलझें — तभी कोई नेता उनकी उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा।

निष्कर्ष और कॉल-टू-एक्शन

बिहार के युवा केवल नारे नहीं लगा रहे — वे सवाल पूछ रहे हैं, हिसाब माँग रहे हैं और वोट के ज़रिए बदलाव की ताकत दिखाना चाहते हैं। चुनावी दौर में यह समय है कि मतदाता — खासकर युवा — अपने अधिकारों का इस्तेमाल करें, स्थानीय जनसमस्याओं पर पूछताछ करें और नेताओं से स्पष्ट वादों व उनके नतीजों का हिसाब माँगे। बेबाग भाषा इस रिपोर्ट के साथ युवाओं की आवाज़ को आगे ले जाने का काम जारी रखेगी — जुड़िए, सवाल पूछिए और अपनी उम्मीदों को बुलंदी दीजिए।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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