November 14, 2025 9:08 pm
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बिहार चुनाव में मोदी जी बैकफुट पर, क्या BJP के हाल हुए टाइट!

बिहार चुनाव 2025 में प्रधानमंत्री मोदी पहली बार डिफेंसिव दिखे। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के “नौकरी-उद्योग” एजेंडा ने बीजेपी की पिच बदल दी। बेबाक विश्लेषण पढ़ें — बिहार की जमीन पर क्या बदल रहा है?

तेजस्वी और राहुल ने सेट किया एजेंडा, विपक्ष के प्रण से हिल गई बीजेपी

बिहार की चुनावी जमीन इस बार कुछ अलग दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो हमेशा से अपने आक्रामक चुनावी भाषणों के लिए जाने जाते हैं, इस बार स्पष्ट रूप से रक्षात्मक मुद्रा (defensive mode) में नज़र आ रहे हैं।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के तीखे और मुद्दों पर केंद्रित हमलों ने बीजेपी के पूरे नैरेटिव को बदल दिया है — ऐसा पहली बार हो रहा है जब बिहार में एजेंडा सेटिंग का काम विपक्ष कर रहा है, और सत्ता पक्ष मजबूरी में जवाब देने की स्थिति में है।

20 साल के नीतीश शासन का बचाव मुश्किल

प्रधानमंत्री मोदी का यह चुनावी भाषण साफ़ बताता है कि उन्हें अब नीतीश कुमार के बीस साल के शासन को बचाना आसान नहीं लग रहा।
11 साल से प्रधानमंत्री और 20 साल से नीतिश कुमार के शासन में बिहार आज भी उद्योग, रोजगार और बुनियादी विकास से वंचित है।
मंच से मोदी जी को यह कहना पड़ा कि “हम उद्योग लगाएंगे, हम रोजगार देंगे” — जबकि वे ग्यारह साल से सत्ता में हैं।
यह वादा नहीं, रक्षात्मक स्पष्टीकरण था, जो बताता है कि इस बार जमीनी हालात बीजेपी के अनुकूल नहीं हैं।

“नौकरी-उद्योग” एजेंडा से हिल गई बीजेपी

तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने इस बार चुनावी फोकस को “धर्म-जाति” से हटाकर “नौकरी और इंडस्ट्री” पर ला दिया है।
इंडिया गठबंधन के घोषणा पत्र में लिखा है —

“हर घर में एक सरकारी नौकरी, हर जीविका दीदी को 30 हज़ार की स्थायी नौकरी, सभी कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा।”

इन्हीं वादों को मोदी जी ने अपने भाषण में बार-बार नकारा —

“हे बिहार के नौजवानों, इनके वादों पर भरोसा मत करो।”

लेकिन राजनीतिक संदेश यही गया कि मोदी जी खुद मान रहे हैं — विपक्ष का ऑफर “तगड़ा” है, और वही चुनाव का मुख्य मुद्दा बन चुका है।

विक्टिम कार्ड और पुराना नैरेटिव

बिहार की चुनावी गर्मी में मोदी जी ने अपने पुराने कार्ड फिर से चलाए —
“मुझे गालियां मिल रही हैं”, “मैं चाय बेचने वाला हूँ”, “मेरा अपमान हुआ” —
लेकिन इस बार जनता इन बातों को भावनात्मक शोषण के रूप में देख रही है।
बीस साल की सरकार के बाद “विक्टिम कार्ड” का असर अब फीका पड़ता दिख रहा है।

घुसपैठिया नैरेटिव और चुनाव आयोग की विफलता

मोदी जी ने अपने भाषण में विपक्ष पर “घुसपैठियों को बचाने” का आरोप लगाया।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) जैसी वोटर सूची शुद्धिकरण प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, तो

चुनाव आयोग एक भी आँकड़ा नहीं दे सका कि बिहार में कितने घुसपैठिए हैं।

तो फिर प्रधानमंत्री का यह आरोप अपने ही सिस्टम और गृह मंत्रालय की विफलता की स्वीकारोक्ति नहीं है क्या?

दलित अत atrocities का चुनावी उपयोग

अपने भाषण में मोदी जी ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का नाम तो लिया, लेकिन 2001 की एक पुरानी दलित अत्याचार की घटना को याद किया। उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके शासनकाल में भिंड, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में डलितों पर हालिया हिंसा के मामलों में केंद्र सरकार या बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने क्या कदम उठाए।

यह दिखाता है कि जब वर्तमान में देने को कुछ नहीं बचता,
तो सत्ता पुरानी त्रासदियों का सहारा लेकर भावनात्मक कार्ड खेलती है।

विपक्ष की जमीनी अपील

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने अपने भाषणों में
“सबकी सरकार” और “रोजगार आधारित विकास” की बात की।
राहुल ने कहा —

“सरकार किसी एक जात या धर्म की नहीं होगी, हर नागरिक की होगी। हर वर्ग की आवाज़ इस सरकार में सुनी जाएगी।”

यह भाषण उस दिशा की ओर इशारा करता है जहाँ विपक्ष पहली बार
धार्मिक नहीं, आर्थिक और सामाजिक न्याय आधारित नैरेटिव को जनता के बीच स्थापित कर रहा है।

निष्कर्ष

बिहार के इस चुनाव में एक बात स्पष्ट दिख रही है — प्रधानमंत्री मोदी पहली बार रक्षात्मक पिच पर खेल रहे हैं। नीतीश कुमार का 20 साल का शासन बोझ बन गया है। रोजगार, उद्योग और महंगाई जैसे सवालों पर विपक्ष ने जो “तेजस्वी प्रन” रखा है, वही इस बार के चुनाव का असली एजेंडा बन चुका है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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