देहरादून में त्रिपुरा के युवक एंजेल चकमा की नस्लीय हत्या शर्मनाक है
“मैं शर्मिंदा हूं। हम सब शर्मिंदा हैं।”
हम शर्मिंदा हैं एंजेल चकमा से, उनके छोटे भाई माइकल से, उनकी मां–पिता से।
हम शर्मिंदा हैं एक ऐसे देश में, जहां किसी नौजवान को उसके चेहरे, उसकी नस्ल और उसकी पहचान के आधार पर मार दिया जाता है।
देहरादून में त्रिपुरा के रहने वाले 23 वर्षीय एंजेल चकमा की मौत सिर्फ एक हत्या नहीं है। यह उस नफरत का नतीजा है, जिसे बीते वर्षों में योजनाबद्ध तरीके से समाज के भीतर बोया गया है। यह उस ‘न्यू इंडिया’ की तस्वीर है, जहां मुसलमान, आदिवासी, पूर्वोत्तर के लोग और हाशिये पर खड़े समुदाय लगातार हिंसा और अपमान का शिकार बन रहे हैं।
क्या हुआ था देहरादून में?
घटना 9 दिसंबर की है।
त्रिपुरा के रहने वाले एंजेल चकमा देहरादून के सेलाकुई इलाके में अपने छोटे भाई माइकल के साथ रहकर पढ़ाई कर रहे थे। एंजेल MBA के अंतिम वर्ष के छात्र थे। उस शाम दोनों भाई बाजार से कुछ सामान खरीदने निकले थे।
इसी दौरान एक नफरती गिरोह ने उन्हें घेर लिया। नस्लीय गालियां दी गईं—
“चाइनीज”, “चंकी” जैसे अपमानजनक शब्द कहे गए।
पहले छोटे भाई माइकल पर हमला हुआ। जब एंजेल ने विरोध किया, तो हमलावरों ने उन पर चाकू और लोहे के कड़े से जानलेवा हमला कर दिया।
गंभीर हालत में माइकल अपने भाई को अस्पताल लेकर पहुंचे।
एंजेल 15 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच जूझते रहे।
26 दिसंबर को उन्होंने दम तोड़ दिया।
सरकार की संवेदनशीलता: लाइट, कैमरा, एक्शन
घटना के बाद लोगों में गुस्सा फूटा। देहरादून से लेकर त्रिपुरा तक विरोध प्रदर्शन हुए।
तब कहीं जाकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जागे—या यूं कहें, जागने का नाटक किया।
एंजेल के पिता से बात भी कैमरे के सामने, फोन स्पीकर पर रखकर की गई—ताकि रिकॉर्ड हो सके कि सरकार कितनी “संवेदनशील” है।
यह संवेदना नहीं, एक राजनीतिक प्रदर्शन था।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी दुख जताया, इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कार्रवाई की बात कही। लेकिन सवाल यह है—यह नफरत पैदा किसने की?
यह नफरत अचानक पैदा नहीं हुई
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिल्कुल सही कहा है—
यह नफरत एक दिन में पैदा नहीं हुई।
अपने पोस्ट में राहुल गांधी ने लिखा कि देहरादून में एंजेल चकमा और उनके भाई माइकल के साथ जो हुआ, वह एक भयानक हेट क्राइम है। यह नफरत वर्षों से युवाओं के दिमाग में जहरीले कंटेंट, गैर-जिम्मेदार नैरेटिव और सत्ता समर्थित नफरत फैलाने वाले भाषणों के जरिए भरी गई है।
और सत्तारूढ़ भाजपा के नफरत उगलने वाले नेतृत्व ने इसे “न्यू नॉर्मल” बना दिया है।
भारत डर और दमन पर नहीं, सम्मान और विविधता पर बना है।
हम प्रेम का देश हैं, नफरत का नहीं।
पुलिस की भूमिका और ‘नस्लीय हिंसा से इनकार’
पुलिस लगातार यह कहती रही कि इस मामले में नस्लीय हिंसा के कोई सबूत नहीं हैं।
उनके अनुसार “कुछ मजाक में कहा गया”, जिससे विवाद बढ़ गया।
क्या पुलिस के लिए नस्लीय गालियां भी मजाक हैं?
क्या “चाइनीज” कहकर हमला करना मजाक है?
दबाव बढ़ने पर FIR दर्ज की गई।
छह आरोपियों में से पांच को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें दो नाबालिग बताए जा रहे हैं।
मुख्य आरोपी अब भी फरार है, जिसे नेपाल का निवासी बताया जा रहा है। उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है।
राष्ट्रीय संस्थाएं भी हरकत में
मामले में देरी और पुलिस की शुरुआती उदासीनता पर सवाल उठे हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और कार्रवाई पर रिपोर्ट मांगी है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी एसएसपी समेत अधिकारियों को नोटिस भेजा है।
कुछ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की है कि पूर्वोत्तर, आदिवासी और क्षेत्रीय समुदायों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों को अलग से हेट क्राइम माना जाए और कड़ी कार्रवाई हो।
यह कोई पहली घटना नहीं है
दिल्ली से लेकर देहरादून तक, देश के कई हिस्सों में पूर्वोत्तर के युवक–युवतियां नस्लीय भेदभाव और हिंसा का शिकार होते रहे हैं।
यह एक संरचनात्मक समस्या है—जिसे सत्ता की चुप्पी और संरक्षण ने और भयावह बना दिया है।
एंजेल, हम शर्मिंदा हैं
एंजेल—
आपके नाम का अर्थ फरिश्ता था।
आपको इस “न्यू इंडिया” के ज़ॉम्बीज़ ने मार डाला।
आपके आखिरी शब्द—
“हम भारतीय हैं, चीनी नहीं”
हमारे दिलों को लगातार छलनी करते रहेंगे।
हम शर्मिंदा हैं।
और यह शर्म तब तक खत्म नहीं होगी, जब तक इस देश में नफरत की राजनीति को चुनौती नहीं दी जाती।
