यूट्यूबर+ पत्रकारों से इतना डर क्यों? क्यों मोदी सरकार ने जारी किया ये फरमान
भारत में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर नया हमला सामने आया है। दिल्ली की एक अदालत के आदेश और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) के निर्देश के बाद यूट्यूब से 138 वीडियो तुरंत हटाए गए। इन वीडियोज़ में अडानी समूह और उनके कारोबारी कामकाज से जुड़े सवाल उठाए गए थे।
यह पहली बार है जब पत्रकारों और यूट्यूबर्स पर इतनी सख्ती की गई है—सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अडानी और सत्ता से उनके रिश्तों पर सवाल उठाए।
ए प्लस ए = मोदी राज
आज के भारत में एक नया गणित गढ़ा गया है—
- ए + ए = मोदी राज
जहाँ ‘ए’ का मतलब है अंबानी और अडानी।
इन दोनों का नाम लेना, या इनके कारोबार और सत्ता से रिश्तों पर सवाल उठाना, अब “गुनाह” माना जाने लगा है।
पत्रकारों और स्वतंत्र मीडिया को अब यह साफ संदेश दे दिया गया है कि अगर आप अडानी पर बोलेंगे, तो आपका वीडियो डिलीट करवा दिया जाएगा।
अदालत और सरकार का फरमान
- दिल्ली की अदालत ने आदेश जारी किया।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने तुरंत फर्मान लागू कर दिया।
- यूट्यूब से एक ही झटके में 138 वीडियो डिलीट करवा दिए गए।
यह घटनाक्रम भारतीय लोकतंत्र और प्रेस की आज़ादी पर गहरे सवाल खड़े करता है। क्या अब सच बोलना और सत्ता से जुड़े सवाल पूछना नामुमकिन हो गया है?
डर सिर्फ सच्चाई से
गौर करने वाली बात यह है कि देश के सबसे ताकतवर कारोबारी और प्रधानमंत्री के ‘परम मित्र’ कहे जाने वाले अडानी और अंबानी को सबसे ज़्यादा डर किससे है?
- हथियारों से नहीं
- विदेशी ताकतों से नहीं
- बल्कि सच बोलने वाले पत्रकारों और यूट्यूबर्स से
यही वजह है कि वीडियो हटाने की मुहिम छेड़ी गई है।
“अडानी वीडियो डिलीट डे”
सोशल मीडिया पर यह पूरा मामला अब “Adani Video Delete Day” के नाम से चर्चित हो गया है।
लोग सवाल पूछ रहे हैं—
- क्या अडानी और अंबानी के लिए अब कानून और लोकतंत्र भी बदल दिया जाएगा?
- क्या भारत में सत्ता की आलोचना करना अब राजद्रोह जैसा अपराध है?
लोकतंत्र या डर का राज?
आजादी का 75वां साल मना रहे भारत में यह तस्वीर बेहद चिंताजनक है।
जहाँ लोकतंत्र में पत्रकारिता की असली ताकत सवाल पूछने में है, वहीं आज सवाल पूछना ही सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
यह साफ है कि मोदी शासन में अडानी और अंबानी की आलोचना करना अब “आरती और पूजा” करने जैसा है—जहाँ सवाल उठाने की बजाय सिर्फ आरती उतारी जाए।
निष्कर्ष
भारत की लोकतांत्रिक परंपरा और पत्रकारिता पर यह सीधा हमला है। अडानी पर सवाल उठाने वालों की आवाज़ दबाने के लिए अदालत और सरकार की संयुक्त कार्रवाई बताती है कि सत्ता को सच्चाई से सबसे बड़ा डर है।
आज का सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या यह नया भारत है या डर का राज?