घुसपैठ, शरणार्थी और दलित राजनीति पर बड़ा सवाल
पश्चिम बंगाल में इन दिनों S.I.R. – Special Intensive Revision को लेकर जिस तरह का राजनीतिक तूफ़ान उठा है, उसने राज्य ही नहीं बल्कि उन 12 राज्यों में भी हलचल मचा दी है, जहाँ यह प्रक्रिया चल रही है। विपक्ष का आरोप है कि यह सिर्फ वोटर लिस्ट की “शुद्धि” नहीं, बल्कि एक्सक्लूजन का टूलकिट है — यानी लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर करने की राजनीतिक कवायद।
इस ग्राउंड रिपोर्ट में तीन बड़े सवालों को टटोला गया है—
- क्या BJP, SIR कराकर खुद ही फंस गई है?
- क्या बंगाल में घुसपैठिये मुसलमान हैं या हिंदू, जिन्हें स्थानीय लोग ‘रिफ्यूजी’ कहते हैं?
- क्या SIR का वास्तविक निशाना पूरा हो रहा है, या दूसरी ही तस्वीर निकलकर सामने आ रही है?
इन सवालों को समझने के लिए कोलकाता में दो महत्वपूर्ण विपक्षी नेताओं से बातचीत की गई—
- प्रसेनजीत बोस, कांग्रेस की SIR मॉनिटरिंग कमेटी के प्रमुख
- मलय तिवारी, CPI-ML के राज्य नेता
दोनों ही बीजेपी और ममता सरकार—दोनों के विपक्ष में हैं, लेकिन SIR के सवाल पर उनकी भूमिका राज्य की राजनीति में निर्णायक है।
SIR: बंगाल में घुसपैठ का असली राजनीतिक आख्यान क्या है?
पश्चिम बंगाल में दशकों से एक बड़ी आबादी पूर्वी पाकिस्तान/बांग्लादेश से आकर बसी है। इनमें भारी संख्या में हिंदू समुदाय है, जिन्हें बंगाल में “रिफ्यूजी” कहा जाता है।
ये लोग 50–70 साल से यहां रह रहे हैं, नागरिकता ले चुके हैं और बंगाल की सामाजिक संरचना का हिस्सा हैं।
लेकिन RSS–BJP का कथानक कुछ और है।
प्रसेनजीत बोस कहते हैं—
“BJP और RSS की सबसे बड़ी गलती यह है कि उन्होंने बंगाल के इतिहास, समाज और डेमोग्राफी को समझा ही नहीं। वे पूरे देश में झूठ फैलाते रहे कि बंगाल में घुसपैठिये मुसलमान हैं। जबकि बंगाल में लोग ‘घुसपैठ’ शब्द से हिंदू शरणार्थी को समझते हैं। अब वही दांव BJP पर उल्टा पड़ रहा है।”
उनके अनुसार, SIR की प्रक्रिया ने बीजेपी के भीतर भी संकट पैदा किया है। कई सांसद खुलकर असहमति जता रहे हैं कि SIR का फायदा उल्टा नुकसान में बदल सकता है।
CPI-ML: “SIR का निशाना मुसलमान और प्रवासी मज़दूरों की स्थायी असुरक्षा बनाना है”
CPI-ML के नेता मलय तिवारी कहते हैं कि SIR का वास्तविक उद्देश्य बहुत साफ है:
“निशाना बंगाल का मुसलमान समुदाय और वह बंगाली आबादी है जो दूसरे राज्यों में मजदूरी करने जाती है। उन्हें हमेशा डर में रखना—कि उनका नाम वोटर लिस्ट से हट सकता है, उन्हें बांग्लादेश भेजा जा सकता है—BJP की राजनीति का हिस्सा है।”
वे कहते हैं कि BJP नेताओं ने खुले मंचों पर कहा है कि “घुसपैठियों को बाहर फेंका जाएगा”, जबकि बंगाल की ज़मीन पर यह “घुसपैठिया” शब्द हिंदू रिफ्यूजी पर जाकर बैठता है।
बंगाल की असली सुई: दलित वोटर और मातुआ समाज
बंगाल की चुनावी राजनीति में नमोशूद्र और मातुआ समाज की भूमिका बेहद अहम है।
मातुआ समुदाय बंगाल के सबसे बड़े दलित समूहों में है—लगभग 11% वोट शेयर।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछली बार बांग्लादेश जाकर मातुआ मंदिर में पूजा की, और BJP को इसका सीधा चुनावी लाभ मिला।
दो प्रमुख सीटें—बोंगा और रानाघाट, जहां से BJP जीती, पूरी तरह मातुआ बहुल हैं।
लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं।
प्रसेनजीत बोस बताते हैं—
“मातुआ पूरी तरह BJP का वोट बैंक नहीं है। यह एक बड़ा, विविध और राजनीतिक रूप से सक्रिय समुदाय है। सभी दलों में इनके लोग हैं। CPI-ML और दूसरे दलों के लड़ाकू कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में मातुआ समुदाय से आते हैं। SIR की प्रक्रिया इस समुदाय में असुरक्षा और नाराज़गी बढ़ा रही है।”
सोनाली बीबी का मामला: क्या यह “बंगाली गरिमा” का चुनावी मुद्दा बनेगा?
बीरेभूम की रहने वाली सोनाली बीबी, गर्भवती महिला को गुरुग्राम पुलिस ने बांग्लादेशी बताकर सीमा पार करवा दिया।
कोर्ट के आदेश पर ही वह वापस भारत लाई जा सकीं।
कांग्रेस इसका बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है।
उनका कहना है कि—
“BJP और उसके संगठनों ने पूरे देश में बंगालियों को ‘बांग्लादेशी’ कहकर अपमानित किया है। यह बंगाली प्राइड पर हमला है।”
क्या BJP के निशाने पर हिंदू रिफ्यूजी हैं?
रिपोर्ट का सबसे अहम सवाल यही है।
पश्चिम बंगाल के रिफ्यूजी कैंपों में बसे लगभग 99% लोग हिंदू नमोशूद्र/मातुआ समुदाय से हैं।
यदि SIR से उनका नाम voter list से हटने लगा, तो यह BJP के लिए बहुत बड़ा राजनीतिक संकट बन सकता है—क्योंकि यही उनका मजबूत आधार था।
लेकिन पत्ते अभी खुले नहीं हैं।
वोटर लिस्ट में संशोधन जारी है।
और सवाल वही है—
क्या SIR का निशाना “घुसपैठिये” हैं, या कुछ और?
चित्र अभी अधूरी है—
लेकिन यह साफ है कि इस बार खेल बंगाल की जमीन पर उतना सरल नहीं है, जितना दिल्ली से दिखता है।
