December 31, 2025 12:59 am
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कुलदीप सेंगर को मिली हाईकोर्ट की राहत पर रोक

उन्नाव गैंगरेप मामले में बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को मिली हाईकोर्ट की राहत पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई। जानिए कैसे जनविरोध और महिलाओं की आवाज़ ने अदालत को कदम उठाने पर मजबूर किया।

तगड़े विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट जागा, लेकिन लड़ाई अभी बाकी

देश में जब सत्ता और संस्थाएं चुप हो जाती हैं, तब सड़कों पर उठी आवाज़ें अदालतों को भी सुनाई देने लगती हैं। उन्नाव गैंगरेप मामले में ठीक यही हुआ। देशभर में जब महिलाओं ने, नागरिक संगठनों ने और जनपक्षधर आवाज़ों ने एकजुट होकर विरोध किया, तब जाकर देश की सबसे बड़ी अदालत — सुप्रीम कोर्ट — ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई उस राहत पर रोक लगाई, जिसके तहत बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि कुलदीप सेंगर सिर्फ एक बलात्कारी नहीं है, बल्कि वह उस पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में भी दोषी है, जिसकी जिंदगी उसने पहले ही तबाह कर दी थी। ऐसे व्यक्ति को राहत देना न्याय व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

यह राहत कोर्ट की ‘दया’ नहीं, जनता के दबाव का नतीजा है

यह साफ समझना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की यह कार्रवाई किसी स्वाभाविक न्यायिक जागृति का परिणाम नहीं, बल्कि देशव्यापी जनविरोध का नतीजा है। अगर उन्नाव गैंगरेप सर्वाइवर के पक्ष में महिलाएं सड़कों पर न उतरतीं, अगर एक स्वर में यह न कहा जाता कि सजा निलंबित होने का मतलब बलात्कारियों को खुली छूट देना है, तो शायद यह फैसला कभी पलटा ही न जाता।

महिलाओं ने चेताया था कि अगर कुलदीप सेंगर जैसे ताकतवर अपराधियों को राहत मिलती रही, तो हर बलात्कारी खुद को कानून से ऊपर समझने लगेगा — जैसा कि सेंगर अब तक समझता रहा है।

बीजेपी की ब्रिगेड बलात्कारी के साथ, सत्ता मौन

इस पूरे मामले में सबसे चिंताजनक पहलू सत्ता का रवैया है। जिनके हाथ में शासन है, वे या तो पूरी तरह चुप हैं या फिर अपनी ब्रिगेड को खुलकर बलात्कारी के समर्थन में उतार चुके हैं। वही लोग, जो सार्वजनिक रूप से मोदी जी को राखी बांधते दिखे, वही लोग आज कुलदीप सेंगर के पक्ष में प्रदर्शन करते पाए गए।

यह कोई अकेला मामला नहीं है। ठीक इसी समय अंकिता भंडारी हत्याकांड में भी बीजेपी से जुड़े कई नाम सार्वजनिक रूप से सामने हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, दोनों ही उन नामों को बचाने और छिपाने में व्यस्त नज़र आते हैं।

न्याय की लड़ाई लंबी है

सुप्रीम कोर्ट की यह रोक एक जरूरी कदम है, लेकिन इसे अंतिम जीत मान लेना खतरनाक होगा। यह लड़ाई अभी लंबी है। जब तक सत्ता संरक्षित अपराधियों को संरक्षण देती रहेगी, तब तक हर ऐसे फैसले के पीछे जनता के दबाव की जरूरत पड़ेगी।

उन्नाव की बेटी के साथ जो हुआ, वह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि उस सिस्टम का चेहरा है जिसमें सत्ता, पुलिस और प्रशासन मिलकर पीड़ित के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। आज अगर थोड़ी सी राहत दिख रही है, तो वह केवल इसलिए क्योंकि देश की महिलाएं चुप नहीं रहीं।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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