🎄 मोदी क्रिसमस मनाए, योगी छुट्टी cancel करे और भक्त क्रिसमस पर करें हिंसा व पिटाई
क्रिसमस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर चर्च में मोमबत्ती जलाते हुए दिखाई दिए। दिल्ली के कैथेड्रल चर्च ऑफ रिडेम्प्शन में उनकी मौजूदगी की तस्वीरें पूरी दुनिया में गईं। अंतरराष्ट्रीय मंच के लिए यह संदेश था कि भारत का प्रधानमंत्री ईसाइयों का सम्मान करता है, उनके त्योहारों में शामिल होता है और “सर्वधर्म समभाव” में विश्वास रखता है।
लेकिन ठीक उसी वक्त, उसी क्रिसमस के दौरान, देश के अलग-अलग हिस्सों से जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए, वे एक बिल्कुल अलग कहानी कहते हैं।
एक तरफ चर्च, दूसरी तरफ हिंसा
पिछले चार–पाँच दिनों में देश भर से जो खबरें आईं, वे बेहद परेशान करने वाली हैं।
कहीं चर्च में तोड़फोड़, कहीं क्रिसमस सेलिब्रेशन पर हमला, कहीं ईसाई महिलाओं की पिटाई, तो कहीं स्कूलों और संस्थानों में क्रिसमस मनाने पर पाबंदी।
इन हमलों में शामिल नाम कोई छुपे हुए नहीं हैं—
बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, RSS से जुड़े कार्यकर्ता और भाजपा के लोग।
सवाल सीधा है:
👉 जब प्रधानमंत्री चर्च में मोमबत्ती जला रहे थे, तब उनके “भक्त” चर्चों को तहस-नहस क्यों कर रहे थे?
👉 और इन सब पर प्रधानमंत्री की चुप्पी क्यों?
उत्तर प्रदेश मॉडल: क्रिसमस पर पाबंदी
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश में स्कूलों और कॉलेजों में क्रिसमस सेलिब्रेशन पर रोक लगाई।
क्रिसमस की छुट्टियां रद्द की गईं।
सरकारी स्तर पर यह संदेश गया कि ईसाइयों का त्योहार मनाना “संदिग्ध” है।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर एक शब्द नहीं कहा।
न योगी से सवाल पूछा,
न अपनी पार्टी से,
न अपने संगठनों से।
क्या यह मान लिया जाए कि दिल्ली के चर्च में जाना ही जवाबदेही से मुक्त कर देता है?
चर्च के पादरियों से भी सवाल
कैथेड्रल चर्च में पादरी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दी गई “ब्लेसिंग” का वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें कहा गया कि ईश्वर उन्हें न्याय, सत्य और शांति के मार्ग पर चलने की शक्ति दे।
लेकिन सवाल यह है कि—
👉 क्या इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उसी मंच से प्रधानमंत्री से यह पूछा जाता कि आपकी सरकार में ईसाइयों पर हमले क्यों हो रहे हैं?
👉 चर्च तोड़े क्यों जा रहे हैं?
👉 क्रिसमस के दिन नफरत क्यों फैलाई जा रही है?
अगर ईश्वर सच में “प्रिंस ऑफ पीस” हैं, तो उनके नाम पर चुप्पी कैसी?
बरेली से दिल्ली तक: हनुमान चालीसा बनाम चुप्पी
बरेली में चर्च के बाहर बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ किया गया—उकसावे के लिए, डराने के लिए।
दिल्ली में प्रधानमंत्री चर्च के अंदर मोमबत्ती जलाते रहे।
अगर यही “धार्मिक संतुलन” है, तो फिर प्रधानमंत्री को चर्च में भी हनुमान चालीसा पढ़नी चाहिए थी—अपने भक्तों की तरह।
या फिर कम से कम यह कहने की हिम्मत दिखानी चाहिए थी कि—
“मेरे राज में जो हो रहा है, वह गलत है। यह असंवैधानिक है।”
लेकिन ऐसा कोई बयान नहीं आया।
न X (ट्विटर) पर,
न किसी मंच से,
न किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में।
यह सिर्फ दोगलापन नहीं, एजेंडा है
यह सिर्फ नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत दोगलापन नहीं है।
यह भाजपा–RSS का सुनियोजित राजनीतिक एजेंडा है।
हिंदू राष्ट्र की राजनीति में—
- ईसाइयों के त्योहार हों या
- मुसलमानों के पर्व,
नफरत फैलाना, तोड़फोड़ करना, डर का माहौल बनाना एक “टूलकिट” बन चुका है।
धर्मगुरुओं से आख़िरी सवाल
सवाल सिर्फ मोदी से नहीं है।
सवाल ईसाई और मुस्लिम धर्मगुरुओं से भी है।
जब वे प्रधानमंत्री के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं,
जब उन्हें मंच पर बुलाया जाता है,
तब ज़मीन पर उनके अनुयायियों पर हो रहे हमलों के लिए उनकी आवाज़ क्यों नहीं निकलती?
क्या आशीर्वाद सत्ता से सवाल करने की जगह ले सकता है?
क्रिसमस पर भी इंसाफ़ नहीं?
अगर प्रधानमंत्री क्रिसमस के दिन भी यह नहीं कह सकते कि—
“ईसाइयों पर हमला गलत है और इसे रोका जाना चाहिए”
तो फिर चर्च जाना सिर्फ एक राजनीतिक फोटो-ऑप बनकर रह जाता है।
यह दोहरा चेहरा है।
और इस दोहरेपन पर सवाल उठाया जाना ज़रूरी है।
