December 16, 2025 7:12 pm
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प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने रचा इतिहास, पहली बार महिला अध्यक्ष

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के 68 साल के इतिहास में पहली महिला अध्यक्ष बनीं संगीता बरुआ। पूरे पैनल की 21-0 से जीत और गोदी मीडिया बनाम जनपक्षधर पत्रकारिता की निर्णायक लड़ाई।

संगीता बरुआ की ऐतिहासिक जीत और पत्रकारिता की वैचारिक लड़ाई

दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने अपनी स्थापना के 68 वर्षों के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। पहली बार क्लब को एक महिला अध्यक्ष मिली हैं — संगीता बरुआ। स्वतंत्र पत्रकार संगीता बरुआ ने इस चुनाव में न केवल अध्यक्ष पद पर शानदार जीत दर्ज की, बल्कि उनके पूरे पैनल ने सभी पदों पर निर्णायक विजय हासिल कर इतिहास रच दिया।

कौन हैं संगीता बरुआ

संगीता बरुआ एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। इससे पहले वह द वायर में नेशनल अफेयर्स एडिटर के तौर पर कार्यरत रह चुकी हैं। वर्ष 2024 के चुनाव में वह प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की उपाध्यक्ष भी चुनी गई थीं। इस बार अध्यक्ष पद पर उनकी जीत यह दर्शाती है कि प्रेस क्लब के सदस्यों ने उनके नेतृत्व और पत्रकारिता के मूल्यों पर भरोसा जताया है।

पूरे पैनल की 21-0 से जीत

इस चुनाव में संगीता बरुआ के पूरे पैनल ने 21-0 के अंतर से जीत दर्ज की।

  • उपाध्यक्ष: जतिन गांधी
  • महासचिव: अफ़ज़ल इमाम
  • संयुक्त सचिव: पी. आर. सुनील (निर्विरोध निर्वाचित)
  • कोषाध्यक्ष: अदिति राजपूत (निर्विरोध निर्वाचित)

इसके अलावा, 16 सदस्यीय प्रबंधन समिति पर भी इसी पैनल का कब्ज़ा रहा। संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष पद पर उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुके थे।

क्यों महत्वपूर्ण थे ये चुनाव

ये चुनाव सिर्फ़ पदों की अदला-बदली नहीं थे, बल्कि भारतीय पत्रकारिता के भीतर चल रही सत्ता और प्रतिरोध की खींचतान का खुला संकेत थे। बीते एक दशक में, विशेषकर मोदी शासनकाल के दौरान, पत्रकारिता के पेशे में एक ऐसा तबका तेज़ी से मज़बूत हुआ है जो सत्ता से टकराने के बजाय उसके साथ खड़ा दिखता है। यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें ‘गोदी मीडिया’ जैसा शब्द सिर्फ़ मीडिया आलोचना नहीं, बल्कि एक राजनीतिक श्रेणी बन चुका है।

आज स्थिति यह है कि पत्रकारिता महज़ सूचना देने का पेशा नहीं रही, बल्कि यह सवाल बन गई है कि पत्रकार सत्ता के साथ खड़ा है या समाज के साथ। आम जनता के बीच यह धारणा गहरी हुई है कि मीडिया दो खेमों में बंट चुका है—एक, जो सरकार की नीतियों, दावों और नैरेटिव के लिए बैटिंग करता है; और दूसरा, जो सवाल पूछने, असहमति दर्ज करने और हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ बनने की कोशिश करता है।

संगीता बरुआ और उनकी पूरी टीम इसी दूसरे, जनपक्षधर खेमे का प्रतिनिधित्व करती है।

प्रेस क्लब पर कब्ज़े की कोशिशें नाकाम

पिछले कुछ वर्षों में दक्षिणपंथी और सत्ता-समर्थक पत्रकारों द्वारा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया जैसे संस्थानों पर प्रभाव बढ़ाने की लगातार कोशिशें होती रही हैं। यह कोशिशें केवल संगठनात्मक नहीं थीं, बल्कि इनका उद्देश्य प्रेस क्लब को भी उसी वैचारिक दिशा में मोड़ना था, जिस दिशा में मुख्यधारा का बड़ा हिस्सा जा चुका है।

लेकिन प्रेस क्लब के सदस्य हर बार इस दबाव को पहचानते रहे हैं। इस बार का 21-0 का नतीजा महज़ चुनावी आँकड़ा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक वक्तव्य है—कि दिल्ली के पत्रकारों का बड़ा हिस्सा अब भी प्रेस क्लब को सत्ता के विस्तार का औज़ार नहीं, बल्कि पत्रकारों की स्वतंत्र आवाज़ के रूप में देखना चाहता है।

संगीता बरुआ की टीम की यह जीत साफ़ संकेत देती है कि तमाम दबावों, प्रलोभनों और ध्रुवीकरण के बावजूद, प्रेस क्लब की सामूहिक चेतना अब भी पूरी तरह पराजित नहीं हुई है।

स्वतंत्र पत्रकारों की निर्णायक मौजूदगी

इन चुनावों का एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि बड़ी संख्या में स्वतंत्र पत्रकार विजयी हुए। ऐसे दौर में जब मीडिया संस्थान छंटनी, कॉरपोरेट दबाव और सरकारी लाइन से विचलन पर सज़ा देने के लिए कुख्यात हो चुके हैं, स्वतंत्र पत्रकारों की यह जीत एक वैकल्पिक पत्रकारिता की संभावना को रेखांकित करती है।

यह परिणाम इस बात का भी संकेत है कि प्रेस क्लब के सदस्य अब उन पत्रकारों को ज़्यादा भरोसेमंद मान रहे हैं, जिनकी रोज़ी-रोटी सीधे सत्ता या कॉरपोरेट हितों से बंधी नहीं है। दूसरे शब्दों में, यह चुनाव नौकरीपेशा मीडिया बनाम स्वतंत्र पत्रकारिता के बीच खींची जा रही रेखा को और गहरा करता है।

जीत के बाद क्या कहा

नतीजों के बाद नव-निर्वाचित अध्यक्ष संगीता बरुआ ने कहा कि यह जीत प्रेस क्लब के सदस्यों के भरोसे की जीत है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि उनकी टीम स्वतंत्र, निष्पक्ष और ज़िम्मेदार पत्रकारिता के मूल्यों के लिए काम करती रहेगी।

वर्तमान अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी और महासचिव नीरज ठाकुर ने नई टीम को बधाई दी और उम्मीद जताई कि यह नेतृत्व प्रेस क्लब ऑफ इंडिया को और अधिक समावेशी, सक्रिय और जनपक्षधर बनाएगा।

लोकतंत्र और पत्रकारिता के लिए क्या मायने

संगीता बरुआ की अध्यक्षता में बनी नई टीम से उम्मीदें सिर्फ़ संगठनात्मक सुधारों तक सीमित नहीं हैं। सवाल यह भी है कि क्या प्रेस क्लब ऑफ इंडिया आने वाले दिनों में गिरफ़्तार पत्रकारों, सेंसरशिप, मुक़दमों, और मीडिया पर बढ़ते दमन के ख़िलाफ़ एक सशक्त मंच बन पाएगा।

इन चुनावों ने इतना ज़रूर साफ़ कर दिया है कि पत्रकारिता के भीतर संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का यह परिणाम उन तमाम लोगों के लिए एक संकेत है जो यह मान चुके थे कि मीडिया पूरी तरह सत्ता के आगे समर्पण कर चुका है।

मुकुल सरल

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