December 14, 2025 9:07 pm
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इतनी बेचैनी, आखिर इतना डर क्यों?

क्यों राहुल गांधी की विदेश यात्राओं से बीजेपी परेशान हो जाती है? संसद, बहस और राजनीतिक हमलों के बीच बीजेपी की चिंता पर बेबाक विश्लेषण।

क्यों भाजपा हो जाती है परेशान, जब भी राहुल गांधी विदेश जाते!

भारतीय जनता पार्टी के नेता, प्रवक्ता, मंत्री—सब एक ही चिंता में दुबले हो रहे हैं: राहुल गांधी की विदेश यात्रा। संसद चल रही है या नहीं, इंडिगो उड़ रही है या नहीं, देश में किस मुद्दे पर बहस हो रही है—इन सब बातों से भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क सिर्फ एक बात से पड़ता है: राहुल गांधी कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं और किससे मिल रहे हैं।

बीजेपी का IT सेल से लेकर उसके प्रवक्ताओं तक—हर जगह मिनट-मिनट की “खबरें” फैलाने का दौर चलता है, जो राहुल गांधी की छवि को अपने हिसाब से गढ़ने की कोशिश जैसी लगती है।

संसद में घमासान और बीजेपी की ‘विदेश यात्रा’ राजनीति

इस समय संसद में माहौल गर्म है। एक तरफ विपक्ष, दूसरी तरफ सरकार—लेकिन बीजेपी के नेताओं के भाषण का केंद्रीय विषय राहुल गांधी ही बने हुए हैं।

वंदे मातरम को “वंदे भारत” कहने वाली टिप्पणियों के बीच बीजेपी लगातार राहुल की यात्राओं को मुद्दा बना रही है, मानो यही देश का सबसे बड़ा संकट हो।

जब राहुल गांधी की विदेश यात्रा की सूचना आती है, खासकर तब जब संसद चल रही हो, बीजेपी को अचानक बेचैनी घेर लेती है। सवाल उठता है—क्यों?

मुद्दा यात्रा का नहीं, संसद में राहुल गांधी की मौजूदगी का है

बीजेपी भीतर से यह अच्छे से जानती है कि जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सदन में खड़े होकर बोलते हैं, तब सरकार को सीधा चोट मिलती है।
उनके भाषणों में वह धार होती है जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है।

  • SIR पर राहुल का यह कहना कि “वोट चोरी सबसे बड़ा देशद्रोह है”
  • या विमर्श को सीधे सत्ता के केंद्र पर ले जाना

ऐसे तीर राहुल गांधी के अलावा और कौन छोड़ता है? बीजेपी इस चोट से परेशान भी होती है और उसी में उसका ‘फील-गुड’ नैरेटिव भी चलता है।

इसलिए जब राहुल संसद में नहीं होते, बीजेपी जैसे अपनी धुन से भटक जाती है—मानो मुकाबले का मज़ा ही चला जाता है।

बीजेपी प्रवक्ताओं की भाषा और “Leader of Opposition” पर हमला

एक बीजेपी प्रवक्ता ने हाल ही में ऐसी टिप्पणी कर दी, जिस पर गंभीर आपत्ति उठनी चाहिए थी।
उन्होंने नेता प्रतिपक्ष को “Leader of Tourism” और “Leader of Propaganda” कहा।

राहुल गांधी की तमाम यात्राओं को “गुप्त यात्रा” बताकर डर, मज़ाक और व्यक्तिगत हमला—तीनों का मेल एक साथ परोसा गया।
लेकिन सवाल यह है कि क्या वही प्रवक्ता कभी यह ग्राफ दिखा पाएंगे:

  • प्रधानमंत्री मोदी की 94 विदेश यात्राएँ,
  • जिनमें से 85% संसद चलने के दौरान हुईं,
  • और कैसे उन्हीं देशों में कुछ बड़े उद्योगपतियों के बिज़नेस चमत्कारिक तरीके से विस्तारित हो गए?

लेकिन इन सवालों पर चुप्पी और राहुल पर हमलावरता—यही बीजेपी का राजनीतिक पैटर्न बन चुका है।

राहुल गांधी का संभावित जवाब: धन्यवाद!

इस पूरे राजनीतिक नाटक का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि राहुल गांधी को शायद कोई जवाब देने की ज़रूरत ही नहीं।
अगर दें भी, तो वह शायद सिर्फ इतना कहें:

“धन्यवाद मोदी जी, धन्यवाद बीजेपी। आपकी चिंता के काबिल बनकर मैं वही काम करता रहूंगा, जो कर रहा हूं।”

यह एक तरह से राजनीतिक व्यंग्य भी है और यथार्थ भी—क्योंकि बीजेपी की बेचैनी यह साफ़ दिखाती है कि नेता प्रतिपक्ष का प्रभाव कितना गहरा है।

निष्कर्ष

बीजेपी की यह लगातार चिंता यह बताती है कि राहुल गांधी भाजपा की राजनीतिक रणनीति के लिए एक स्थायी चुनौती हैं।
विदेश यात्रा को मुद्दा बनाकर सरकार ध्यान भटकाना चाहती है, लेकिन हर बार यह दिख जाता है कि असल समस्या राहुल की यात्रा नहीं, संसद में उनका ‘प्रभाव’ है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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