December 9, 2025 2:53 am
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कंगना–महुआ डांस: राजनीति की ऐसी की तैसी

महुआ मोइत्रा और कंगना रनौत के शादी में साथ डांस का वीडियो चर्चा में है। विपक्ष की मुखर नेता कंगना से क्यों थिरकीं? राजनीति, प्रतीकवाद और विरोधाभास पर विस्तार.

राजनीति, प्रतीक और विरोधाभास की कहानी

एक समय था जब राजनीति के बुज़ुर्ग और अनुभवी नेता कहते थे कि राजनीति में मतभेद होता है, मनभेद नहीं। ज़ोर तर्क पर होता था, ताना-बाना नहीं। विरोध और बहस के बावजूद एक निजी सम्बन्ध, एक शालीनता बनी रहती थी। लेकिन यह जमाना बदल चुका है। आज राजनीति में मतभेद क्या, मनभेद ही मुख्य पूंजी है।
सत्ता ने रेखाएँ खींच दी हैं — ‘हम’ और ‘बाकी सब’। एक तरफ़ सरकार, दूसरी तरफ़ विपक्ष, और उनके बीच कोई पुल बाकी नहीं छोड़ा गया।

इसी माहौल में अचानक एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसने कई लोगों की भौंहें चढ़ा दीं।
महुआ मोइत्रा और कंगना रनौत एक ही मंच पर, साथ में डांस करती हुईं।
यानी राजनीति की ऐसी के तैसी।

महुआ और कंगना: दो ध्रुव

महुआ मोइत्रा की पहचान बनी है:

  • संसद में सबसे मुखर और तेज़ आवाज़
  • मोदी सरकार पर सीधा हमला
  • कॉरपोरेट और सत्ता गठजोड़ का लगातार पर्दाफाश
  • ममता बनर्जी की पार्टी TMC की स्टार चेहरा

उनकी संसद सदस्यता तक चली गई — और यह सब सत्ता के दबाव, ईडी–सीबीआई के खेल और राजनीतिक प्रतिशोध के आरोपों के बीच हुआ।

दूसरी ओर हैं कंगना रनौत:

  • मोदी को भगवान का अवतार बताने वाली
  • 2014 में भारत को “असली आज़ादी” मिली — ऐसा कहने वाली
  • विपक्ष पर रोज़ाना हमले
  • अनिवार्य ‘राष्ट्रवाद’ की ब्रांड एंबेसडर

इन दोनों की दुनिया—विचारधारा, भाषा, स्टाइल—सब कुछ अलग-अलग।
और अचानक वही दोनों, एक शादी में, एक ही मंच पर, थुमके लगाते हुए

मौका क्या था?

मौका था:

➡️ नवीन जिंदल की बेटी की शादी
नवीन जिंदल — जो कांग्रेस से बीजेपी में गए हैं।
राजनीति में दलबदल की परंपरा से हम सब वाक़िफ़ हैं, लेकिन इस शादी के मंच ने अलग ही कहानी लिख दी।

वहाँ पर:

  • महुआ मोइत्रा
  • कंगना रनौत
  • और NCP नेता शरद पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले

तीनों ने मिलकर डांस किया।
सुप्रिया सुले की राजनीति महुआ जितनी तीखी नहीं रही — न बोल, न वार।
महाराष्ट्र में उनके पिता शरद पवार की राजनीति हमेशा “नरम–गरम” कही जाती है:

  • कभी सत्ता के साथ, कभी विपक्ष के साथ
  • कभी डील, कभी दिल

राजनीतिक सॉफ्टनेस के बावजूद पवार विपक्ष के बड़े स्तंभ हैं।
महाराष्ट्र में महाविकास अगाड़ी की स्पिरिट वहीं से आती है।

लेकिन इस मामले में चर्चा का केंद्र सुप्रिया नहीं, महुआ हैं।

महुआ की हैरत क्यों?

क्योंकि महुआ सिर्फ विपक्ष की नेता नहीं, एक प्रतीक हैं।

  • संसद में अडाणी–मोदी गठजोड़ पर सबसे तीखे भाषण
  • सत्ता के दमन पर खुलकर बोलना
  • उनकी सदस्यता विवादास्पद तरीके से गई

ऐसी नेता का कंगना के साथ मंच साझा करना लोगों को चौंकाता है।
यह सिर्फ डांस नहीं, प्रतीक है।
और राजनीति में प्रतीक सब कुछ होते हैं।

राजनीतिक रिश्ते और निजी रिश्ते

बहुत लोग कहेंगे:

“अरे शादी थी, नाचने में क्या बुरा?”

सही बात।
नाचने, गाने, मुस्कुराने, दोस्ती करने — इसमें कोई बुराई नहीं।
इंसान को इंसान बने रहना चाहिए।
स्वास्थ्य और खुशियों के लिए ये ज़रूरी है।

लेकिन लोकतंत्र में सवाल यह नहीं कि नाचना ठीक है या नहीं
सवाल यह है:

  • किसके साथ?
  • किस संदर्भ में?
  • किस राजनीतिक संदेश के बीच?

जब आप किसी को

  • तानाशाह कहते हैं,
  • लोकतंत्र का दुश्मन मानते हैं,
  • और उसके शासन को आज़ादी के लिए ख़तरा बताते हैं —
    तो उसके सबसे मुखर समर्थकों के साथ सहजता से झूमना विरोधाभास पैदा करता है।

राजनीति सिर्फ़ शब्द नहीं, प्रतिबद्धता है

राजनीति सिर्फ भाषण में नहीं होती।
वह संबंधों में, संगत में और संकेतों में भी होती है।

चुनाव सामने हों, तनाव बढ़ा हो, सत्ता विपक्ष को कुचलने पर आमादा हो —
ऐसे समय में विपक्ष की सबसे मुखर नेता अपने वैचारिक विरोध की शत्रु के साथ जमकर डांस करे, तो सवाल उठते ही हैं।

यह वही बात हुई:

“इधर लगते रहें, उधर हो जाएं।”

सत्ता का खेल और सोशल मोमेंट्स

यह तस्वीर एक और चीज़ दिखाती है:
राजनीति का सारा ज़हर सोशल मीडिया और टीवी पर उतर आता है।
वहाँ तलवारें हैं, आग है, नफरत है।
लेकिन निजी जीवन में रिश्ते, हंसी, दोस्ती — सब चलता रहता है।

और शायद यही राजनीति की विडम्बना है।

सवाल यह भी है कि क्या जनता बेवकूफ़ है?
क्या प्रतीकवाद की राजनीति एक तरफ़ और निजी आराम दूसरी तरफ़?
क्या ये दोहरे मानदंड हैं?

डांस की राजनीति

डांस का वीडियो वायरल हुआ।
समर्थक खुश हुए।
विरोधी नाराज़ हुए।
पंडितों ने विश्लेषण लिख डाले।

पर असली बात यह है:

डांस राजनीति का हिस्सा बन गया।

आज हर इवेंट, हर तस्वीर, हर वीडियो —
चुनावी बयान की तरह काम करता है।

महुआ–कंगना का डांस यही सवाल छोड़ता है:

  • क्या राजनीति अब सिर्फ परफॉर्मेंस है?
  • क्या विचारधारा सिर्फ माइक्रोफोन तक सीमित है?
  • क्या विरोध मंच पर लड़ाई और बैकस्टेज पर दोस्ती मात्र है?

या फिर यह लोकतंत्र की ताकत है कि मतभेद के बावजूद मनुष्य मनुष्य रहता है?

निष्कर्ष: भ्रम और यथार्थ

इस घटना को कई कोणों से देखा जा सकता है।

  • एक तरफ़ खुशियां, दोस्ती, नाच–गाना, सामाजिकता।
  • दूसरी तरफ़ कटु राष्ट्रीय राजनीति, आरोप–प्रतिआरोप, जेल–एजेंसी और प्रतिशोध।

शादी का मंच और संसद का मंच अलग हैं।
पर तस्वीरें और प्रतीक — दोनों जुड़ जाते हैं।

राजनीति आज सबसे ज्यादा प्रतीकवादी है।
और जो दिखता है, वही सियासी कहानी बन जाता है।

यह तस्वीर कहती है:

राजनीति में सब कुछ काला–सफेद नहीं है।
लेकिन कभी–कभी ग्रे भी इतना चुभता है कि देखने वाला हैरान रह जाए।

मुकुल सरल

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