December 7, 2025 12:34 pm
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ज्योति जगताप के बाद हैनी बाबू को भी मिली ज़मानत

भीमा कोरेगांव मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैनी बाबू को बॉम्बे हाई कोर्ट ने पाँच साल बाद जमानत दी। अदालत ने कहा कि लंबी हिरासत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

भीमा कोरेगांव केस में पाँच साल बाद मिली राहत

भीमा कोरेगांव मामले में एक और महत्वपूर्ण जमानत सामने आई है। दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर रहे हैनी बाबू को बॉम्बे हाई कोर्ट ने ज़मानत दी है। न्यायमूर्तियों एस. गडकरी और रंजीत सिंह आर. भोसले की खंडपीठ ने एक लाख रुपये के मुचलके पर यह राहत दी।

हैनी बाबू पाँच साल से अधिक समय से जेल में बंद थे। अदालत ने साफ़ कहा कि बिना मुक़दमा शुरू किए किसी को लंबे समय तक जेल में रखना तेज़ सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

गिरफ़्तारी और जमानत की पृष्ठभूमि

हैनी बाबू को 28 जुलाई 2020 को NIA ने गिरफ़्तार किया था। इसके बाद उन्होंने जमानत के कई प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली।

अब हाई कोर्ट का आदेश इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

इससे पहले:

  • सुप्रीम कोर्ट ने कबीर कला मंच की सदस्य ज्योति जक्ताप को अगली सुनवाई तक अंतरिम जमानत दी थी।
  • इसी तरह, आरोपित महेश राउत को भी सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल आधार पर अंतरिम जमानत दी।

यह क्रम एक महत्वपूर्ण संकेत देता है कि भीमा कोरेगांव केस में ज़मानतें बढ़ रही हैं।

16 लोग गिरफ़्तार — एक मौत

भीमा कोरेगांव मामले में कुल 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
आपको याद होगा, फादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हिरासत में ही मौत हो गई थी। वे लंबे समय तक जमानत, खासकर बीमारी के आधार पर, मांगते रहे पर राहत नहीं मिली।

इन सभी पर आरोप है कि:

  • उन्होंने राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ा,
  • जातीय वैमनस्य बढ़ाया,
  • और माओवादी विचारधारा फैलाने की साज़िश की

इन्हें UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया।
NIA का आरोप है कि ये सभी भीमा कोरेगांव हिंसा के ज़िम्मेदार हैं।

हिंसा की पृष्ठभूमि: एल्गार परिषद से भीमा कोरेगांव तक

31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद ने भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम किया था।
अगले दिन, 1 जनवरी 2018 को, क्षेत्र में हिंसा फैल गई।

इस हिंसा में हिंदुत्ववादी और जातिवादी समूहों के खिलाफ़ भी FIR दर्ज हुई, लेकिन सबसे बड़ी कार्रवाई उन बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं पर हुई, जो उस दिन कार्यक्रम में मौजूद भी नहीं थे

यही पैटर्न हमने और जगहों पर भी देखा है — चाहे दिल्ली हिंसा हो, लद्दाख के लेह की घटनाएँ हों या भीमा कोरेगांव — सबसे पहले निशाने पर वे लोग आते हैं, जो:

  • बराबरी की बात करते हैं,
  • अधिकारों की माँग करते हैं,
  • अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं।

आगे क्या?

हैनी बाबू की जमानत निस्संदेह राहत की ख़बर है।
अब उम्मीद की जा रही है कि ऐसे ही लद्दाख मामले में सोनम वांगचुक,
या दिल्ली हिंसा मामले में उमर खालिद और उनके साथियों को भी न्याय मिले,
और अदालतें लंबी हिरासत के इस चलन पर संजीदगी से विचार करें।

मुकुल सरल

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