जो मनमोहन के समय चीखते-चिल्लाते थे, वे अब मिमिया भी नहीं रहे
मोदी जी हैं तो मुमकिन है!
और आज यह भी मुमकिन हो गया कि भारतीय रुपया रिकॉर्ड गिरावट के साथ 90 पार पहुँच गया।
भक्तगण प्रसन्न हैं, राम-राम जप रहे हैं, और कुछ तो चाह रहे हैं कि जल्दी से यह जादुई आंकड़ा 100 पार हो जाए — आखिर इतिहास बनाना किसे नहीं पसंद!
इतिहास बन भी रहा है —
बस फर्क इतना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की धज्जियाँ उड़ते हुए यह इतिहास बन रहा है।
भारत का आयात, निर्यात, रोजगार, खजाना —
सब रसातल में जा रहे हैं।
पर संदेश वही: “मोधी जी हैं तो मुम्किन है।”
90 पार हुआ रुपया: संसद में कोहराम, अर्थव्यवस्था में बंटाधार
देश की संसद में विपक्ष घेराबंदी में है।
सरकार हर बिल पास कराने में साम, दाम, दंड, भेद सबका इस्तेमाल कर रही है।
उसी समय, एक और संकट सर पर आ गिरा —
रुपया धड़ाम-धड़ाम गिरता हुआ 90 के पार।
ट्रंप महोदय वापस आये हैं, डॉलर मज़बूत है —
और रुपया हवा में उड़ रहा है।
सोशल मीडिया पर वायरल है मोदी जी का पुराना भाषण, जिसमें वे कह रहे थे:
दिल्ली सरकार और रुपया — दोनों की इज़्ज़त गिर रही है।
आज वही संवाद स्वयं उन पर लागू हो रहा है।
पर भक्तों के चेहरे पर मुस्कान है।
“अच्छे दिन” आ चुके हैं — स्क्रीनशॉट सेव कर लो भाई!
रुपया कहाँ से कहाँ गिरा – ग्राफ जिसे देखने से भक्तों को जलन होती है
1947 से लेकर आज तक के ग्राफ में साफ दिखता है:
- नेहरू के वक्त
- इंदिरा के वक्त
- मनमोहन के वक्त
और अब मोदी के 11 साल में
रुपया सीधा गोता लगाता हुआ नीचे आया है।
और यह ग्राफ अभी 90 तक नहीं पहुंचा था।
अगला ग्राफ तो और दिल दहलाने वाला होगा।
इतिहास बदला जा सकता है,
NCRT की किताब से राजिया सुल्तान और मुगल हटाए जा सकते हैं,
लेकिन फ़ॉरेन एक्सचेंज रेट की सूची कोई बदल नहीं सकता —
पूरी दुनिया देखती है।
नीति आयोग की दिलचस्प दलीलें
जब रुपया गिरा,
नीति आयोग के मुखिया ने ट्वीट किया:
“चिंता की बात नहीं है।”
देश का रुपया चित हो रहा है,
अर्थव्यवस्था ढह रही है,
पर भक्तों को “फील गुड” करते रहना है।
उसी दिन, सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा:
“We are not losing sleep over rupee fall.”
यानी नींद पूरी है,
बस अर्थव्यवस्था जाग-जाग कर तड़प रही है।
रुपया 90 पार — आपके लिए इसका मतलब क्या है?
यह कोई तकनीकी बहस नहीं।
यह आपके घर का बजट है।
रुपया गिरा = डॉलर महंगा
डॉलर महंगा = तेल, डीजल, गैस महंगी
और फिर?
- हर ट्रक महंगा
- हर सब्ज़ी महंगी
- हर सिलिंडर महंगा
- हर टिकट महंगा
यानी महंगाई की बल्ले-बल्ले।
सिर्फ यही नहीं:
भारत के बहुत से एक्सपोर्ट खुद इम्पोर्ट पर आधारित हैं।
इसलिए यह झूठ कि “एक्सपोर्ट बढ़ जाएंगे”,
चंद मिनट में पकड़ा गया।
सरकार का खजाना खाली।
आम आदमी की जेब खाली।
पर बयान वही:
“सब अच्छा है।”
मीडिया की चुप्पी, भक्तों की जय-जयकार
मुहम्मद जुबैर ने पुराने वीडियो निकालकर दिखाए:
2012, 2013 में
जब रुपया गिर रहा था,
सुधीर चौधरी और टीवी एंकर
गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे थे।
अब?
चुप्पी।
क्योंकि तब मनमोहन थे,
आज मोदी हैं।
भक्तों का तर्क – 90 रुपया = गौरव!
WhatsApp यूनिवर्सिटी में मेसेज दौड़ रहे हैं:
भाई, अब हमारा रुपया 90 का हो गया!
बहुत बड़ी बात है!
उन्हें यह समझ ही नहीं कि:
इसका मतलब है हम कमजोर हुए हैं।
पर भक्तों को क्या फर्क?
जब देश में महंगाई आएगी,
बेरोजगारी बढ़ेगी,
तो भी वे कहेंगे:
“मोधी जी हैं तो मुम्किन है।”
शीत सत्र में गिरा रुपया – सवाल और चिन्ता
संसद का सत्र चल रहा है,
और अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है।
कौन जवाब देगा?
- क्यों गिरी साख?
- क्यों बढ़ी महंगाई?
- क्यों खाली हुआ खजाना?
IMF ने भी बताकर दिया:
GDP के आंकड़ों में छेड़छाड़ हुई है।
भारत की रेटिंग C।
खराब नंबर।
पर PR मशीनरी वही:
- फोटोशूट
- वादा
- इवेंट
जब पुतिन आएंगे,
सुर्खियाँ वही रहेंगी:
“मोधी जी हैं तो मुम्किन है।”
राहुल गांधी होते तो?
कल्पना कीजिए:
अगर यही भाषण राहुल गांधी देते?
देशभक्त ट्रोल कहते:
“प्रधान मंत्री की इज़्ज़त नहीं करते!”
पर जब यही बात मोदी ने मनमोहन पर कही,
तब तालियाँ बजीं।
भक्तों की स्मृति चयनात्मक होती है।
अब क्या? 100 पार का इंतज़ार?
आज रुपया 90 पार हुआ।
क्या कल 100?
क्या यह भी “अच्छे दिन” हैं?
भक्त कहते हैं:
“हमें फर्क नहीं पड़ता।”
क्योंकि उनके घर में:
- बेरोज़गार नहीं हैं
- महंगाई नहीं आती
- दूध, गैस, सब्ज़ी सब मुफ्त है
वास्तविक भारत में
140 करोड़ लोग रोज बेहिसाब महंगाई झेल रहे हैं।
निष्कर्ष
हमारा सवाल सीधा है:
क्या मुमकिन होना ही सबकुछ है?
क्या हम सिर्फ तस्वीरों, फोटोशूट,
और नारे से देश चला सकते हैं?
रुपया गिरा है,
साख गिरी है,
अर्थव्यवस्था संकट में है।
जब तक जनता सवाल नहीं पूछेगी,
कोई कोर्स करेक्शन नहीं होगा।
अंधभक्ती से फायदा किसी को नहीं —
सिवाय सत्ता में बैठे लोगों को।
सवाल पूछना देशभक्ति है।
