December 7, 2025 12:38 pm
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काम की जगह नाम की राजनीति! PMO होगा सेवा तीर्थ

सरकारी इमारतों और सड़कों के नाम बदलने से क्या देश की हालत बदलती है? यह लेख बताता है कि नाम बदलने की राजनीति असली मुद्दों से ध्यान कैसे हटाती है।

झूठ का नाम सच रख देने से क्या झूठ सच हो जाएगा?

अगर मैं अपना नाम अंबानी-अडानी रख लूं, तो क्या मैं अंबानी-अडानी बन जाऊंगा?
अगर प्रधानमंत्री कहें कि “मौसम का मज़ा लीजिए”, तो क्या सचमुच मौसम मज़ेदार हो जाएगा?
साफ़ बात है — नहीं।

ये सब बदलती हकीकत नहीं, बस भ्रम पैदा करने की रणनीति है। जनता को व्यर्थ की बातों में उलझाए रखो, असली मुद्दों से ध्यान हटाओ — यही पूरी राजनीति है।

नए नामों की बारिश

ताज़ा आदेशों में कहा गया है कि:

  • प्रधानमंत्री कार्यालय अब सेवा तीर्थ
  • राजभवन अब लोकभवन
  • राजनिवास अब लोकनिवास
  • केंद्रीय सचिवालय अब कर्तव्य भवन

इससे पहले प्रधानमंत्री निवास 7 रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग रखा गया था।
क्या वाकई कल्याण बढ़ गया?
राजपथ का नाम कर्तव्य पथ कर दिया गया — लेकिन क्या उस सड़क पर चलते हुए किसी को लगता है कि वह कोई कर्तव्य निभा रहा है?
क्या सरकारी कामकाज में अचानक निष्ठा भर आई?

नाम बदलने से न व्यवस्था बदली, न नीयत।

राजनीति का नाम बदल दो, क्या राजनीति बदल जाएगी?

अगर राजनीति को “लोकनीति” कह दें
तो क्या नेता सत्ता छोड़कर जनता की भलाई करने लगेंगे?

नाम बदलना आसान है, काम बदलना मुश्किल।
इसलिए यह राजनीति के टोटके हैं:
तस्वीर बदलो, तमाशा बदलो, पर व्यवस्था वही सड़ती रहे।

नाम बदलने का शौक कहां से आता है?

प्रधानमंत्री मोदी को नाम बदलने का जुनून कई सालों से है।
कभी कहते हैं —

“मैं प्रधानमंत्री नहीं, प्रधानसेवक हूं।”

फिर खुद को चौकीदार बताया।
जब नारा उठा — “चौकीदार ही चोर है”, तो चौकीदारी भूल गए।

फिर उन्होंने खुद को “नॉन बायोलॉजिकल” कह दिया।
अब वे राजा दशरथ के पाँचवे पुत्र बनने की इच्छा का इज़हार करते हैं।

ये सिर्फ़ सनक नहीं — ये है निशान छोड़ने की राजनीति।

नेहरू की विरासत मिटाकर अपनी छाप

मकसद साफ़ है:

“हर चीज़ पर मेरी छाप हो।”

इसलिए सत्ता संभालते ही योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया।
पुरानी संसद तोड़कर नई में जा बैठे।
और उसमें सेंगोल स्थापित कर दिया।

इस बीच कितनी सड़कों, इमारतों, शहरों, संस्थानों के नाम बदल दिए गए —
गिनना मुश्किल है।

पर क्या किसी की दशा बदली?

निश्चित तौर पर नहीं।

लेकिन नाम बदलने के शोर के बीच कुछ काम चुपचाप हो रहे हैं —
बिना घोषणा, बिना नाम बदले:

  • भारत का नाम बदले बिना उसे हिंदू राष्ट्र में बदला जा रहा है।
  • लोकतंत्र का नाम रखकर उसे फासीवाद में बदला जा रहा है।
  • आपातकाल घोषित किए बिना आपातकाल लागू है।
  • SIR के नाम से NRC थोप दी गई है।

नाम तो नहीं बदले गए,
लेकिन देश बदल रहा है — भीतर से।

और इस सबके बीच सिर्फ़ कहना रह जाता है —

वाह मोदी जी, वाह।

मुकुल सरल

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