विवाद बढ़ा तो सरकार बैकफुट पर, कहा अनिवार्य नहीं लेकिन सरकारी आदेश जस का तस
क्या मोदी जी को अब अपने ही 140 करोड़ भारतीयों पर भरोसा नहीं रहा? यही सवाल आज सदन के अंदर और बाहर दोनों जगह गूंज रहा है। केंद्र सरकार के ताज़ा आदेश के बाद, हर मोबाइल कंपनी को अपने सभी नए फोन में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करना होगा।
सरकार इसे नागरिक सुरक्षा का कदम बता रही है, लेकिन आदेश के सेवन-बी क्लॉज ने देशभर में खलबली मचा दी है—क्योंकि क्लॉज कहता है कि इस ऐप को न डिलीट किया जा सकता है, न डिसेबल।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है:
क्या यह सुरक्षा का साधन है, या नागरिकों की हर गतिविधि पर नज़र रखने का नया जासूसी तंत्र?
संचार साथी: नाम मीठा, काम कड़वा?
सरकार का दावा है कि यह ऐप लोगों को फर्जी कॉल्स, साइबर फ्रॉड और फोन चोरी से बचाएगा।
लेकिन इसके साथ लागू की गई शर्तें बताती हैं कि:
❗ ऐप आपके फोन पर पूरा नियंत्रण रख सकता है
• कॉल लॉग पढ़ सकता है
• एसएमएस पढ़ सकता है, भेज सकता है — बिना आपकी अनुमति के
• आपके फोन की स्टोरेज को पढ़, बदल और डिलीट कर सकता है
• कैमरा अपने आप ऑन कर सकता है
• फोन को आपकी जानकारी के बिना एक्टिव कर सकता है
• नेटवर्क कनेक्शन, लोकेशन और ऑनलाइन-ऑफलाइन मूवमेंट ट्रैक कर सकता है
• डेटा सीधे सर्वर पर भेज सकता है
सरल भाषा में—फोन आपका है, लेकिन कंट्रोल सरकार का।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का बयान बनाम सरकारी आदेश: सच कौन?
जहां केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया दावा करते हैं—
“यूज़र चाहे तो ऐप डिलीट कर सकता है। कोई मजबूरी नहीं है।”
वहीं सरकार के आदेश का सेवन-बी क्लॉज स्पष्ट कहता है—
“ऐप को हटाया, रोका या निष्क्रिय नहीं किया जा सकता।”
यानी मंत्री की बात कुछ और, सरकारी दस्तावेज़ कुछ और।
यही विरोधाभास इस विवाद की जड़ में है।
क्यों बढ़ी आशंकाएँ?
क्या भारत surveillance state बनने की तरफ बढ़ रहा है?
बड़ा सवाल यह है कि 2025 में, जब आधार, मोबाइल डेटा, सोशल मीडिया, बैंकिंग, हर क्षेत्र में सरकार का इतना नियंत्रण पहले से मौजूद है, तब इतना आक्रामक ऐप क्यों?
नागरिक अधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि यह ऐप—
🔎 भारत को एक Surveillance State बनाने की दिशा में एक और बड़ा कदम है।
जहां सरकार सिर्फ सुरक्षा की चिंता नहीं करती, बल्कि नागरिकों के हर कदम, हर बातचीत, हर मूवमेंट पर नज़र रखती है।
कैमरा, माइक्रोफोन, मैसेज—सबकुछ सरकार के नियंत्रण में
सरकारी दस्तावेज़ में साफ कहा गया है कि यह ऐप—
📸 आपकी जानकारी के बिना
• फोटो ले सकता है
• वीडियो रिकॉर्ड कर सकता है
• कैमरा ऑन कर सकता है
💬 आपकी अनुमति के बिना
• आपके ही फोन से किसी को मैसेज भेज सकता है
📂 स्टोरेज में बदलाव कर सकता है
• फाइलें पढ़ सकता है
• बदल सकता है
• मिटा सकता है
यह सिर्फ तकनीकी प्रक्रिया नहीं—
यह नागरिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।
Gen-Z की निजता से लेकर बड़े कारोबार तक — सरकार सबकुछ देख सकेगी
ये परमीशन्स केवल सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी नहीं हैं, फिर भी ऐप को फुल नेटवर्क एक्सेस, गूगल प्ले उपयोग, स्टार्टअप रन, और वाइब्रेशन कंट्रोल जैसे अधिकार दिए गए हैं, जो बताते हैं कि ऐप को फोन के लगभग हर हिस्से में दखल रखने की मंजूरी दी गई है।
सीधे शब्दों में—
फोन सोएगा नहीं, लगातार सरकार को रिपोर्ट करेगा।
पेगासस की याद ताज़ा: क्या यह खुला हुआ नया संस्करण है?
पेगासस स्कैंडल अभी भूला नहीं है—जिसमें पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं और नौकरशाहों के फोन दबे-पांव हैक किए गए थे।
आज कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि—
“संचार साथी उसी मॉडल का ओपन और ऑफिशियल वर्ज़न है।”
यानी पहले चोरी-छिपे जासूसी,
अब खुलेआम, सरकारी आदेश के साथ।
Apple जैसी कंपनियाँ पहले ही कह चुकी हैं कि वे इस तरह के सरकारी नियंत्रण से सहमत नहीं हैं—
लेकिन भारत में कितना विरोध संभव हो पाएगा, यह देखना बाकी है।
क्या ये Elected Dictatorship की दिशा में कदम है?
मोदी सरकार के विरोधियों का आरोप है कि तीसरी बार सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री का रवैया और अधिक नियंत्रक और केंद्रीकृत होता जा रहा है।
संचार साथी ऐप उसी मानसिकता का परिणाम बताया जा रहा है—जहाँ सरकार कह रही है—
“नागरिकों की सुरक्षा के नाम पर हम तुम्हारी पूरी ज़िंदगी पर नज़र रखेंगे।”
निष्कर्ष: क्या नागरिक चुप रहेंगे?
भारत का संविधान नागरिकों को निजता का मौलिक अधिकार देता है।
लेकिन संचार साथी ऐप जैसे आदेश उस अधिकार को न सिर्फ कमजोर करते हैं, बल्कि नागरिकों को संदेह की नज़र से देखने की सरकार की प्रवृत्ति भी उजागर करते हैं।
अब सवाल जनता का है—
क्या आप सरकार द्वारा लगाए गए इस ‘संचार साथी’ को साथी मानते हैं या जासूस?
हमें अपनी राय ज़रूर भेजें।
