December 7, 2025 12:39 pm
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ड्रामा किसका, डिलीवरी किसकी?

संसद के शीत सत्र की शुरुआत में टकराव तेज

विंटर सेशन का पहला दिन संसद परिसर में सिर्फ औपचारिक शुरुआत नहीं था—यह उस राजनीतिक टकराव का मंच बन गया जिसने आज के भारत में लोकतंत्र, जवाबदेही और संसद की प्राथमिकताओं पर गहरे सवाल खड़े कर दिए। सवाल सीधा है: संसद को चलने नहीं दे रहा—विपक्ष? या सरकार? और इससे भी बड़ा सवाल—ड्रामा किसका है, और डिलिवरी कौन कर रहा है?

मोहलत से पहले ही माहौल गरम

1 दिसंबर को शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए विपक्ष पर तीखे हमले किए।
विपक्ष को “हार से बौखलाया हुआ” बताते हुए मोदी ने यह भी कहा कि सदन के अंदर वह सिर्फ नारेबाजी करता है और ड्रामा करता है

प्रधानमंत्री की यह बयानबाज़ी एक बार फिर उसी लाइट–कैमरा–एक्शन वाले अंदाज़ में सामने आई, जिसके लिए वे पिछले वर्षों में पहचाने जाते हैं।

लेकिन इस बार एक लाइन सबसे ज़्यादा वायरल हुई—

“मौसम का मज़ा लीजिए।”

दिल्ली में AQI 400–500 पार कर रहा है, लोग मास्क पहनकर निकल रहे हैं, बच्चे स्कूल बंद होने की दहलीज पर हैं—ऐसे समय में यह टिप्पणी दिल्लीवासियों के ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसी लगी। सोशल मीडिया भर गया इस सवाल से कि:

“क्या मोदी जी एयर प्यूरीफायर में लिपटी ज़िंदगी को ‘मौसम का मज़ा’ कहते हैं?”

प्रियंका गांधी का जवाब: मुद्दों पर बहस से कौन भाग रहा है?

विपक्ष की ओर से सबसे तेज़ और सटीक प्रतिक्रिया आई प्रियंका गांधी की तरफ से। उन्होंने कहा—

“ड्रामा नहीं, जवाबदोही चाहिए। संसद देश की समस्याओं पर बात करने के लिए होती है।”

उनका फोकस सिर्फ एक मुद्दे पर नहीं था—बल्कि उन बारह राज्यों पर था जहां चुनाव आयोग के नेतृत्व में चल रहा Special Intensive Revision (SIR), BLOs पर मौत का कहर बन गया है।

BLOs की मौतें: दम तोड़ती लोकशाही की पहली आवाज़

पिछले दिनों कई BLOs की मौतें—कभी हार्ट अटैक, कभी स्ट्रोक, कभी आत्महत्या—लगातार सामने आई हैं।

सबसे हिला देने वाला वीडियो था सर्वेश सिंह का, जिन्होंने रोते-बिलखते कहा कि SIR की असहनीय दबाव ने उनकी जान ले ली।

सवाल यह है:

क्या संसद इन मौतों पर चर्चा नहीं करेगी?
क्या इन कर्मचारियों की सुरक्षा सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं?
क्या चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र है? या दबाव में है?

लेकिन केंद्र सरकार की ओर से SIR पर चर्चा के लिए टस से मस होने की कोई इच्छा नहीं दिखी।

संसद के असल मुद्दों से बचाव?

विपक्ष ने दिन भर नारे लगाए—

  • “SIR पर रोक लगाओ!”
  • “BLO की जिंदगी बचाओ!”
  • “वोट चोरी बंद करो!”

लेकिन सरकार की पूरी रणनीति रही—
ध्यान भटकाओ, विपक्ष को ड्रामेबाज़ कहो, और असल मुद्दों पर मौन रहो।

PM की संवेदनशीलता—कहां गायब है?

दिल्ली में कुछ सप्ताह पहले लालकिले के सामने हुए विस्फोट के बाद भी सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक ब्रीफिंग नहीं दी।
एयरफोर्स के GPS सिस्टम से छेड़छाड़ पर भी सिर्फ एक रिटन सबमिशन दिया गया—कोई मंत्री बोलने नहीं आया।

क्या यही है “मौसम का मज़ा”?

GDP पर IMF का तमाचा

जब सरकार कह रही है कि “अर्थव्यवस्था चमक रही है”, IMF ने साफ कहा:

  • भारत की GDP गणना में गंभीर गड़बड़ियाँ हैं
  • रेटिंग C–Grade है
  • यानी जिन आँकड़ों से सरकार “विकास” दिखा रही है, वे विश्वसनीय नहीं हैं

ध्यान रहे—GDP में यह हस्तक्षेप सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि राजनीतिक सवाल भी है।

विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति?

सदन शुरू होने से ठीक एक दिन पहले—

  • कांग्रेस नेताओं
  • नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी
  • सोनिया गांधी

पर FIR दर्ज करवा दी गई।

मकसद साफ था:
सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष को भड़काओ और कहो—सदन नहीं चलता।

विपक्ष के साथ संवाद की परंपरा पिछले 11 वर्षों में लगभग समाप्त हो चुकी है।

क्या लोकतंत्र सिर्फ तालियों में बिल पास करने का नाम है?

यह सरकार चाहती है:

  • बहस कम
  • जवाबदेही शून्य
  • विरोध की आवाज़ न के बराबर
  • और बिल उसी तानाशाही गति से पास हों जिस तरह न्यूक्लियर एनर्जी पर उनका प्रिय बिल हाल में लाया गया

अमेरिका और तमाम विकसित देश नाभिकीय ऊर्जा को सीमित कर रहे हैं, लेकिन भारत में इसे बिना गंभीर बहस के आगे बढ़ाया जा रहा है।

निचोड़: ड्रामा किसका?

मोदी जी कहते हैं:

“ड्रामा करने की जगहें बहुत हैं। संसद ड्रामे के लिए नहीं है।”

पर असल मुद्दा उल्टा दिख रहा है—

  • विपक्ष मुद्दे उठा रहा है
  • सरकार बहस से भाग रही है
  • संसद के पहले दिन की चर्चा में वास्तविक मुद्दों पर एक भी जवाब नहीं दिया गया
  • और PM कैमरों के सामने अपने वायरल डायलॉग्स में व्यस्त रहे

सवाल जनता का है, और जनता का ही रहेगा:

👉 संसद आखिर चले कैसे—जब सरकार ही चलाना नहीं चाहती?
👉 ड्रामा कौन कर रहा है?
👉 डिलिवरी कौन करेगा?

इस विंटर सेशन का पहला दिन यही बता रहा है कि संसद भारत की समस्याओं पर नहीं, बल्कि सत्ता की राजनीति पर चल रही है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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