November 22, 2025 12:33 am
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बिहार चुनाव का एग्ज़िट पोल थ्रिलर: दोनों खेमों की ‘मानसिक जंग’

बिहार विधानसभा चुनाव में एग्ज़िट पोल्स NDA को बढ़त दिखा रहे हैं, लेकिन तेजस्वी यादव का आत्मविश्वास अलग कहानी कह रहा है। क्या यह आंकड़ों की बाज़ीगरी है या लोकतंत्र का मानस युद्ध?

तेजस्वी को क्यों है भरोसा की EXIT poll गलत साबित होंगे, क्या है उनका कार्ड, क्या बनेंगे वह CM

बिहार की सियासत फिर एक बार थ्रिलर फिल्म बन चुकी है — सस्पेंस, ट्विस्ट और क्लाइमेक्स सब कुछ मौजूद है। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों तक को मैदान में उतरना पड़ा, सिर्फ एक नौजवान नेता — तेजस्वी यादव — को रोकने के लिए। सवाल अब ये नहीं है कि किसने ज्यादा रैली की, सवाल यह है कि तेजस्वी के आत्मविश्वास का रहस्य क्या है?

एग्ज़िट पोल्स का खेल: आंकड़ों की बाज़ीगरी या माहौल बनाने की कोशिश?

गोधी मीडिया के चैनलों पर लगातार एक्सिस माई इंडिया, टुडेज़ चाणक्य और बाकी पोल एजेंसियों के आंकड़े तैर रहे हैं।
कहीं NDA को 160 सीटें दी जा रही हैं, कहीं 44% वोट शेयर। दूसरी तरफ महागठबंधन को 38% या 41% तक बताया जा रहा है।
मतलब, मुकाबला कड़ा है, लेकिन कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं है — बल्कि दिमागी खेल की है।

टुडेज़ चाणक्य के हिसाब से NDA को 44%, महागठबंधन को 38%, जनसोराज को 4% और बाकी को 12% वोट।
वहीं एक्सिस के मुताबिक फर्क सिर्फ 2-3% का है। यानी एकदम नज़दीकी फाइट।

लेकिन इसी बीच, जनता की राय कुछ और कहती है — 34% लोग तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि 22% नितीश कुमार को
यह फर्क मामूली नहीं है, यह उस मनोवैज्ञानिक माहौल की निशानी है जो बिहार की राजनीति में धीरे-धीरे बन रहा है।

तेजस्वी का कॉन्फिडेंस: क्या जेब में कोई छुपा हुआ कार्ड है?

जब सारे एग्ज़िट पोल NDA को बढ़त दे रहे हैं, तब तेजस्वी यादव प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर कहते हैं —

“18 तारीख को शपथ ग्रहण होगा, नौकरी वाली सरकार बनेगी।”

कहने वाले कह रहे हैं कि तेजस्वी के पास कोई “छुपा हुआ कार्ड” है। लेकिन असल में यह कार्ड शायद आत्मविश्वास का है।
तेजस्वी और महागठबंधन लगातार यह बात दोहरा रहे हैं कि एग्ज़िट पोल सिर्फ मूड मैनेजमेंट का टूल हैं — ताकि जब 14 तारीख को गिनती शुरू हो, तो सत्ता में बैठे लोगों को गड़बड़ी करने का नैरेटिव मिल जाए।

‘एग्ज़िट पोल’ या ‘मोडी पोल’?

राहुल गांधी ने ठीक कहा —

“ये एग्ज़िट पोल नहीं हैं, ये मोदी जी के पोल हैं।”

2024 लोकसभा चुनाव के समय भी यही हुआ था। “चार सौ पार” के नारे लगे थे, एग्ज़िट पोल में बीजेपी को भारी बहुमत दिखाया गया था।
लेकिन नतीजे कुछ और निकले। वही खेल अब बिहार में दोहराया जा रहा है।

भक्तों की यूनिवर्सिटी और सट्टा बाज़ार की साइंस

एग्ज़िट पोल सिर्फ आंकड़े नहीं होते, वे अरबों के सट्टे से भी जुड़े होते हैं।
जैसा एक दर्शक ने लाइव में लिखा —

“एग्ज़िट पोल पर पैसा चलता है, तभी हर चैनल का पोल एक जैसा दिखता है।”

याद रखिए, “मोदी हैं तो मुमकिन है” सिर्फ भक्तों का नारा नहीं, बल्कि सत्ता के लिए मशीनरी का संकेत भी है।
तेजस्वी ने जो कहा — कि “साढ़े छह-सात बजे तक मतदान चलता रहा, तो फिर एग्ज़िट पोल इतने जल्दी कैसे आ गए?” —
वह सिर्फ तकनीकी सवाल नहीं, बल्कि बिहार की लोकतांत्रिक विश्वसनीयता पर सवाल है।

‘मोदी बनाम बिहार’ की जंग क्यों जरूरी है?

प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव को युद्ध बना दिया है।
40 हेलिकॉप्टर, 80 मंत्री, कई मुख्यमंत्री, पूरा प्रशासन — सब तेजस्वी को रोकने में लगा है।
क्यों?
क्योंकि बिहार के बिना मोदी सरकार की बैसाखी डगमगा जाएगी।
नीतीश कुमार की सीटें घटेंगी, तो दिल्ली की सत्ता में भी झटका लगेगा।
यही डर है जिसने मोदी जी को बिहार की मिट्टी में जड़ें जमाने पर मजबूर कर दिया।

अडानी कनेक्शन: एक रुपये में ज़मीन, और डर की जड़

भागलपुर में अडानी समूह को दी गई 1051 एकड़ ज़मीन — सिर्फ एक रुपये की लीज़ पर, 33 साल के लिए — अब चुनावी मुद्दा बन चुकी है।
अगर तेजस्वी की सरकार बनी, तो यह डील पलट सकती है।
और यही डर मोदी-नीतीश गठबंधन की सबसे बड़ी चिंता है।

ओम प्रकाश राजभर का बदला रंग और ज़मीन की हवा

NDA के पुराने साथी ओम प्रकाश राजभर भी अब सुर बदल रहे हैं।
वह तक़रीबन मान चुके हैं कि ज़मीन पर बदलाव की हवा चल रही है।
और यही हवा एग्ज़िट पोल के सारे समीकरण बिगाड़ सकती है।

नतीजों से पहले का मानस युद्ध

तेजस्वी यादव इस लड़ाई को माइंड गेम में बदल चुके हैं।
उनकी रणनीति साफ है — सत्ता की हर चाल को जनता के सामने ला देना।
इसलिए उन्होंने पहले ही बोल दिया कि “गड़बड़ी हो सकती है”, “प्रशासनिक दबाव बन सकता है”, और “फ्लैग मार्च” तक की मांग कर दी।

बिहार की जनता यह सब देख रही है, और यही उसे दिलचस्प बनाता है।
क्योंकि असली सवाल अब यह नहीं है कि कौन जीतेगा — बल्कि यह है कि कौन लोकतंत्र को बचाए रखेगा।

🟠 निष्कर्ष: बिहार का चुनाव ‘मोडी बनाम जनता’ की कहानी बन चुका है

बिहार की जनता जान चुकी है कि एग्ज़िट पोल सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि ‘मूड मैनेजमेंट’ का औजार हैं।
इसलिए असली मुकाबला अब EVM की मशीन और जनता की नब्ज़ के बीच है।
तेजस्वी का आत्मविश्वास और मोदी की बेचैनी — यही इस चुनाव की असली स्क्रिप्ट है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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