October 28, 2025 12:00 pm
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मोदी-अदानी फिर सवालों के घेरे में, वाशिंगटन पोस्ट ने पेश किए दस्तावेज़

वॉशिंग्टन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार ने अदानी समूह को घाटे से उबारने के लिए LIC के 32,000 करोड़ रुपये लगाए। कांग्रेस ने पूछा — जनता का पैसा कॉरपोरेट बचाव में क्यों?

क्या अदानी को बचाने के लिए मोदी सरकार ने लगवाया LIC का पैसा?

राजा और तोते की पुरानी कहानी आज फिर सच होती दिख रही है — फर्क सिर्फ इतना है कि अब कहानी के पात्र हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके “परम मित्र” गौतम अदानी। वॉशिंग्टन पोस्ट की ताज़ा रिपोर्ट ने इस रहस्य को और पुख्ता कर दिया है कि सरकार ने अदानी समूह को घाटे से उबारने के लिए जनता की बचत को दांव पर लगा दिया।

तो आइए, समझते हैं कि इस बार राजा की जान किस तोते में है?

अदानी को बचाने में लगी जनता की पूंजी

अमेरिका के प्रमुख अख़बार Washington Post ने अपने दस्तावेज़ी खुलासे में बताया है कि जब अदानी समूह भारी कर्ज़ में डूबा हुआ था, तब भारत सरकार ने उसे संभालने का पूरा इंतज़ाम किया। सरकारी बीमा कंपनी LIC को निर्देश दिए गए कि वह अदानी समूह के कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में 3.4 अरब डॉलर (लगभग 28,000 करोड़ रुपये) और उसकी कई कंपनियों में 507 मिलियन डॉलर (लगभग 4,000 करोड़ रुपये) का अतिरिक्त निवेश करे।
यानि कुल मिलाकर करीब 32,000 करोड़ रुपये का निवेश — वो भी आम नागरिकों के प्रीमियम और पॉलिसियों से जमा किए गए पैसों से।

सरकारी योजना, दस्तावेज़ों के हवाले से

वॉशिंग्टन पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पूरी योजना वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवा विभाग (DFS), LIC, और नीति आयोग की सहभागिता से मई 2023 में तैयार की गई थी। इस योजना को मंत्रालय की मंजूरी भी दी गई थी।
जब अदानी समूह की संपत्ति 90 अरब डॉलर के स्तर से नीचे गिर चुकी थी और वैश्विक बैंकों ने उसे कर्ज़ देने से मना कर दिया था, तब सरकार ने उसे “स्थिर” करने के लिए यह विशेष व्यवस्था की।

कांग्रेस और विपक्ष के सवाल

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाया है —

“प्रधानमंत्री मोदी अपने मित्र की जेब भरने के लिए 30 करोड़ LIC पॉलिसी धारकों की गाढ़ी कमाई क्यों लुटा रहे हैं?”

वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि यह खुलासा बेहद चिंताजनक है कि “मोदानी जॉइंट वेंचर” (Modani joint venture) किस तरह सरकारी संस्थाओं को निजी कॉर्पोरेट हितों की सेवा में झोंक रहा है।

जनता का पैसा, कॉरपोरेट का फायदा

LIC में जमा अधिकांश धन आम जनता का होता है — ग्रामीण, मजदूर, निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों का। लेकिन यही पैसा अब भारत के सबसे अमीर उद्योगपति की कंपनियों को घाटे से उबारने में इस्तेमाल किया गया। विपक्ष का कहना है कि यह ‘पब्लिक वेल्थ का प्राइवेट रेस्क्यू प्लान’ है।

मीडिया पर पाबंदियाँ और व्यंग्य की भाषा

दिलचस्प यह है कि कई राज्यों में पत्रकारों और यूट्यूब चैनलों को “अदानी” का नाम लेने से परहेज़ करने की सलाह दी गई है। बेबाक भाषा टीम की व्यंग्यात्मक टिप्पणी में कहा गया —

“हमने भी कहना शुरू कर दिया — ‘ए जी, ओ जी, लो जी, सुनो जी’… लेकिन वॉशिंग्टन पोस्ट ने नाम लेकर सब बता दिया।”

अंत में

देश में अगर सरकारी कंपनियाँ भी कॉरपोरेट बचाव के औज़ार बन जाएँ, तो सवाल उठाना ही लोकतंत्र का धर्म बन जाता है। आखिर जनता को यह जानने का हक़ है कि उसका पैसा कहाँ और किसके लिए लगाया जा रहा है।
या जैसा वीडियो के अंत में कहा गया —

“चोरी हो या डकैती, करने दो — बस ये न भूलो कि मुल्क पर उनका बड़ा एहसान है… और चौकीदार वही हैं।”

मुकुल सरल

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