क्यों बढ़ीं हैं दलितों पर अत्याचार की घटनाएं, क्यों BJP के मंत्री खट्टर ने आंबेडकर के ‘कद’ को छोटा किया
आज का भारत, जो खुद को “विकसित” और “रामराज्य” की दिशा में आगे बढ़ने वाला देश बताता है, उसी भारत में 2025 में भी दलितों को पेशाब पिलाने जैसी अमानवीय घटनाएं हो रही हैं। यह सिर्फ शर्मनाक नहीं, बल्कि उस संविधान और लोकतंत्र पर हमला है जिसने हर नागरिक को बराबरी और गरिमा के साथ जीने का अधिकार दिया है।
“सोचिए, किस युग में जी रहे हैं हम? जब दलितों को इंसान नहीं, अपमान का प्रतीक बना दिया गया है।”
भिंड से लखनऊ तक – दलित अपमान की श्रृंखला
हाल ही में मध्य प्रदेश के भिंड में एक युवक को पेशाब पिलाने की घटना सामने आई।
वहीं उत्तर प्रदेश के काकोरी (लखनऊ) में एक बुज़ुर्ग दलित से पेशाब चटवाया गया।
रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि को सरेआम पीट-पीटकर मार डाला गया।
और हरियाणा में IPS अधिकारी वाई. पूरनकुमार को संस्थागत उत्पीड़न ने आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया।
क्या यही वह ‘नया भारत’ है जहां जाति आज भी इंसान की पहचान और अपमान का आधार है?
मनुवादी सत्ता और दलित न्याय का संकट
“एक दलित होने के नाते मैं उस पीड़ा को समझ सकता हूँ, लेकिन मनुवादी उसे महसूस नहीं करते।”
जब देश के दलित मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर जूता फेंका गया, तो अपराधी को सख्त सजा मिलनी चाहिए थी।
लेकिन मनुवादी मीडिया ने उसे ‘सनातन धर्म का रक्षक’ बनाकर पेश किया।
यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि न्यायपालिका और लोकतंत्र पर हमला है।
संविधान निर्माता का अपमान
इसी बीच, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद मनोहर लाल खट्टर ने डॉ. भीमराव अंबेडकर का अपमान किया।
यह वही अंबेडकर हैं जिन्होंने संविधान बनाकर दलितों और वंचितों को बराबरी का अधिकार दिलाया।
“बाबा साहेब की हर मूर्ति संविधान के साथ खड़ी होती है, क्योंकि वही दलित अस्मिता और सम्मान का प्रतीक हैं। मगर आज हमें वही सम्मान भी छीना जा रहा है।”
मनुवाद की वापसी और दलितों का संघर्ष
हजारों साल की गुलामी झेलने के बाद दलित समाज जब सम्मान और हक की बात करता है, तब सत्ता उसे खामोश करने की कोशिश करती है।
मनुवाद फिर से सिर उठा रहा है — वही मनुवाद जो समानता, भाईचारे और संविधान से डरता है।
संदेश स्पष्ट है —
“जो दलितों का अपमान करेगा, उसे हिंदुस्तान बर्दाश्त नहीं करेगा।
जय भीम!”
