October 28, 2025 9:43 am
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नीतीश पर निर्भरता, सम्राट चौधरी का डैमेज कंट्रोल और नकली घाट का खेल

बिहार चुनाव 2025 में बीजेपी बैकफुट पर है। नीतीश कुमार को हटाने की बजाय बीजेपी अब उन्हीं पर निर्भर दिख रही है। अमित शाह के बयान से उठे सवाल, सम्राट चौधरी का ‘हनुमान’ बयान और दिल्ली के नकली घाट विवाद ने नया मोड़ पैदा किया है।

BJP का game plan, नीतीश के नाम पर वोट लो और फिर bye-bye, तेजस्वी का भी नया पैंतरा

बिहार की सियासत में दिलचस्प मोड़ आया है। बीजेपी, जो अब तक आत्मविश्वास में थी, अचानक बैकफुट पर नज़र आ रही है। नए गेमप्लान का आग़ाज़ जरूर हुआ है, लेकिन योजना पुरानी ही है — बस अब एक कदम पीछे हटकर उसी स्क्रिप्ट को दोहराया जा रहा है: “नीतीश को अभी मत हटाओ।”

नीतीश कुमार: बीजेपी की मजबूरी

हाल के सर्वेक्षण बता रहे हैं कि बिहार में NDA और INDIA गठबंधन के बीच मुकाबला ‘काटे का’ हो चुका है। पहले जो सर्वे ‘मोदी लहर’ दिखा रहे थे, अब वही सर्वे बीजेपी की चिंता बढ़ा रहे हैं। अहम मोड़ तब आया जब गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कहा कि “मुख्यमंत्री का चेहरा चुनाव के बाद तय होगा।”
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषणों में नीतीश कुमार का नाम तो लिया, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने से परहेज़ किया।

यहीं से विपक्ष ने मुद्दा उठा लिया — बिहार की अस्मिता का, बिहार की गरिमा का। इंडिया गठबंधन ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह महाराष्ट्र मॉडल दोहराना चाहती है: पहले दोस्त बनाओ, फिर चुनाव बाद उन्हें किनारे कर दो।

सम्राट चौधरी का ‘हनुमान’ रूप

बीजेपी की मुश्किल यह है कि बिहार में उसके पास कोई दमदार स्थानीय चेहरा नहीं है। इसी वजह से अब वही सम्राट चौधरी, जिन्होंने कभी नीतीश को हटाने की कसम खाई थी, अब कह रहे हैं — “मैं नीतीश कुमार का हनुमान हूँ।”
मीडिया में लगातार इंटरव्यू देकर सम्राट चौधरी यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी और जेडीयू में सब ठीक है।
लेकिन सियासी पंडित कहते हैं — यह डैमेज कंट्रोल का हिस्सा है। क्योंकि बीजेपी का आंतरिक संकट यह है कि उसके सारे ‘चेहरे’ या तो विवादों में घिरे हैं या स्थानीय स्तर पर स्वीकार्य नहीं हैं।

गिरिराज सिंह का ‘मीट’ मॉडल

टेक्सटाइल मंत्री होने के बावजूद गिरिराज सिंह बिहार में टेक्सटाइल इंडस्ट्री के बजाय ‘जटका मीट’ की फैक्ट्री लगाने की बात करते हैं। चुनावी भाषणों में उनका हिंदू-मुस्लिम एजेंडा हावी रहता है।
तेजस्वी यादव लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि जब से बीजेपी सत्ता में आई है, बिहार में एक भी नई इंडस्ट्री क्यों नहीं लगी? जो सूगर मिलें और रोज़गार योजनाएँ चलीं, वे तो तब शुरू हुईं जब तेजस्वी खुद डिप्टी सीएम थे।

दिल्ली का ‘नकली घाट’ और बिहार वोट बैंक

दिल्ली में छठ पूजा को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी आमने-सामने हैं। सौरभ भारद्वाज के खुलासे के अनुसार, यमुना पर जो नया ‘वासुदेव घाट’ बनाया गया है, वह असल में नकली है।
वहाँ यमुना नहीं, बल्कि सोनिया विहार से लाई गई गंगा का फिल्टर किया हुआ पानी डाला गया है। यानी “छठ” के नाम पर दिल्ली में भी राजनीति — और लक्ष्य सिर्फ एक: बिहार का वोट बैंक

बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि वह बिहारी अस्मिता और धार्मिक भावनाओं की ‘रक्षक’ है, जबकि विपक्ष इसे दिखावे और चुनावी पाखंड बता रहा है।

तेजस्वी यादव का पलटवार और विपक्ष की रणनीति

तेजस्वी यादव इस पूरी राजनीति को “नौजवान बनाम नफरत” की लड़ाई बता रहे हैं। वे लगातार बेरोज़गारी, शिक्षा, और आरक्षण जैसे मुद्दों पर ध्यान खींच रहे हैं।
उनकी यह लाइन जनता के बीच पकड़ बना रही है — “हर घर एक सरकारी नौकरी” का नारा दोबारा बहस में लौट आया है।

निष्कर्ष: बीजेपी का ‘मजबूरी गठबंधन’

इन सारे घटनाक्रमों से साफ है कि बिहार में बीजेपी के लिए नीतीश कुमार अब मजबूरी बन चुके हैं। पार्टी न तो उन्हें हटा सकती है, न उनके बिना लड़ सकती है।
बीजेपी का पूरा नैरेटिव अब “जंगलराज बनाम नीतीशराज” के बीच अटका हुआ है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी का यह चुनाव धर्म और विकास के बीच संतुलन साधने की कोशिश है, लेकिन उसके भीतर की बेचैनी और नेतृत्व संकट भी उतना ही स्पष्ट है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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