रोशनी के पर्व को दूसरों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा इस्तेमाल
दीपावली, जिसे आम बोलचाल में दिवाली कहा जाता है, प्रेम, प्रकाश और करुणा का त्योहार है। यह केवल घरों को सजाने का त्योहार नहीं है, बल्कि अंधकार के खिलाफ उजाले का प्रतीक है। पर 2025 में यह त्योहार कई राजनेताओं, मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये नफरत और विवाद का माध्यम बन गया है।
दिवाली और नफरत: राजनीतिक एजेंडा
इस साल कई राजनेताओं ने दिवाली के अवसर पर ऐसे बयान दिए, जो सीधे समुदायों को निशाना बनाते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिवाली पर भाषण में कहा कि “रामद्रोहियों को दीपोत्सव से जलन हो रही है।” ऐसे बयान त्योहार के मर्म के विपरीत हैं और सीधे तौर पर साम्प्रदायिक संदेश फैलाते हैं।
सोशल मीडिया पर भी यही प्रवृत्ति दिखी। कई जर्नलिस्ट और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स ने दिवाली की तुलना गाजा में हो रहे कत्लेआम से की, जबकि वास्तविकता यह है कि दिवाली प्रेम, प्रकाश और खुशियों का पर्व है। गाजा में कत्लेआम हो रहा है, दिवाली में बम नहीं फोड़े जाते, बच्चे दीये जलाते हैं और घर सजते हैं।
राम गोपाल वर्मा जैसे फिल्ममेकर भी इस प्रवृत्ति के उदाहरण हैं। उनके ट्वीट और सोशल मीडिया पोस्ट ने दिवाली को हिंसा और नफरत के प्रतीक के रूप में पेश किया।
राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी
वीडियो में उठाए गए मुद्दों के अनुसार, नफरत और प्रदूषण केवल सामाजिक या मीडिया स्तर तक सीमित नहीं हैं। यह सीधे तौर पर राजनीतिक एजेंडा भी बन गया है।
- उत्तर प्रदेश में, दिवाली का उपयोग चुनावी रणनीति के रूप में किया गया, जहां हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक मुद्दों को भुनाया गया।
- बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान, इसी तरह की नफरत और विभाजनकारी भाषण दिखाई दिए।
- दिल्ली की राजधानी में, मुख्यमंत्री और प्रशासनिक एजेंसियों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना थी कि दिवाली प्रेम और प्रकाश का पर्व बने, न कि नफरत और प्रदूषण का।
वायू प्रदूषण और स्वास्थ्य पर असर
दिल्ली और NCR में दिवाली के दौरान वायू प्रदूषण बेहद गंभीर स्थिति में पहुंच गया। पटाखों के धुएं के साथ-साथ नफरत का ‘मानसिक प्रदूषण’ भी समाज में फैल रहा है।
- दिल्ली में हर तीसरा बच्चा अस्थमा जैसी बीमारियों से जूझ रहा है।
- प्रदूषण का असर अमीर-गरीब सभी पर समान रूप से पड़ रहा है।
- सोशल मीडिया और नफरत भरे बयान वायु प्रदूषण की गंभीरता को नजरअंदाज कर रहे हैं।
दिवाली की असली परंपरा और सांस्कृतिक महत्व
दिवाली का मूल उद्देश्य प्रेम और करुणा का प्रकाश फैलाना है। पटाखे जलाना या आतिशबाजी करना परंपरा का हिस्सा है, परंतु यह कभी भी दूसरों को अपमानित करने या डराने का साधन नहीं होना चाहिए।
- सूर्य प्रताप सिंह जैसे पूर्व अधिकारी बताते हैं कि दिवाली में आतिशबाजी का उद्देश्य कभी किसी समुदाय को निशाना बनाना नहीं था।
- सनातनी परंपरा में दिवाली पशु-पक्षियों को कष्ट दिए बिना मनाई जाती है।
- सिख धर्म और अन्य समुदायों में भी यह पर्व प्रकाश और खुशी का प्रतीक है।
नफरत का सामाजिक असर
वीडियो में विस्तार से बताया गया कि नफरत का फैलाव सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है। यह जमीन पर भी लागू होता है—मुख्यमंत्री और अन्य नेता अपने भाषणों और प्रचार के जरिए यह संदेश फैलाते हैं कि कौन सही है और कौन गलत। इससे समाज में भय, असुरक्षा और विभाजन पैदा होता है।
निष्कर्ष
दिवाली का अर्थ केवल प्रकाश का पर्व है, न कि नफरत और राजनीतिक प्रचार का। इसे सही दिशा में बनाए रखना हम सभी का जिम्मा है। हमें चाहिए कि:
- दिवाली को प्रेम, प्रकाश और करुणा के रूप में मनाएं।
- राजनीतिक और साम्प्रदायिक एजेंडों से इसे दूर रखें।
- वायु प्रदूषण और सामाजिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें।
इस दिवाली, अपने घरों और समाज में सच्चे दीप जलाएं, और त्योहार की असली आत्मा को बचाएं।