October 28, 2025 9:42 am
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छठी मइया और चुनावी डुबकी

छठ के बहाने दिल्ली और बिहार दोनों जगह सियासत गरम है। मोदी की यमुना डुबकी, नीतीश-चिराग की तस्वीरें और आस्था पर चलता चुनावी ड्रामा — पढ़िए बेबाक भाषा का व्यंग्यात्मक विश्लेषण।

मोदी, नीतीश और बिहार की सियासी ड्रामेबाज़ी

छठी मइया का जलवा जबरदस्त है! और इस बार तो लगता है कि छठी मइया खुद सोच रही हैं — “अबकी बार चुनावी मौसम में छठ पड़ा है, तो देखो मेरा जलवा कैसे बढ़ा है।”
ग्यारह साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की गद्दी पर बैठे हैं, लेकिन इन ग्यारह सालों में पहली बार उन्हें छठी मइया की याद आई है। इससे पहले कभी न साबरमती में, न गंगा में, न यमुना में उन्होंने छठ मनाने की बात की थी। लेकिन अब चुनाव है, तो ‘छठ डुबकी’ भी चुनावी एजेंडे का हिस्सा बन गई है।

मोदी जी अब यमुना किनारे “आस्था की डुबकी” लगाने जा रहे हैं — और इस डुबकी की गूंज बिहार तक सुनाई देने वाली है। इस देश की राजधानी में जिस तरह ‘छठ घाट’ का सेट तैयार हुआ है, वह किसी धार्मिक आयोजन से ज़्यादा फिल्मी शूटिंग सेट जैसा है। लाइट, कैमरा, एक्शन — और मोदी जी का चुनावी आशीर्वाद शो शुरू!

दिल्ली से बिहार तक छठ की सियासत

दिल्ली के घाटों पर अचानक भीड़ बढ़ गई है — लेकिन यह आस्था की भीड़ नहीं, बल्कि पीआर की भीड़ है। हर बड़ा टीवी चैनल, हर एंकर, हर ‘स्टार रिपोर्टर’ बस एक ही खबर पर तैनात है — “मोदी जी छठ मनाने वाले हैं!”
देश की राजधानी के घाट पर स्पेशल व्यवस्था, आर्टिफिशियल तालाब, कीटनाशक छिड़काव और झाग को मिटाने के लिए डिफोमर स्प्रे — यानी चुनावी सफाई का जलवा।

आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने खुलासा किया कि मोदी जी के लिए जो घाट बनाया गया है, वहाँ असली यमुना नहीं, बल्कि पाइपलाइन से गंगा का फिल्टर किया हुआ पानी पहुँचाया गया है। यानी भक्तों के लिए झागभरी यमुना, और मोदी जी के लिए मिनरल वॉटर वाली गंगा!

लेकिन दिल्ली के टीवी चैनलों को इससे क्या? उनके एंकर छठ के घाट पर ऐसे पहुंच गए हैं मानो यमुना नहीं, यशोदा मइया का दूध बह रहा हो। कोई कैमरे पर कह रहा है, “पानी पूजा लायक है”, तो कोई झाग के बीच से ‘फील गुड’ निकालने में लगा है। इस चुनावी एक्टिंग के बीच अगर किसी ने सवाल पूछा कि “क्या यह पानी पीने लायक है?”, तो जवाब भी स्क्रिप्टेड मिला — “पूजा लायक तो है!”

भक्तों की डुबकी, कैमरे की डुबकी और जूठ का झाग

छठ पर मोदी जी की यह डुबकी अब सिर्फ धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति बन गई है। दिल्ली में बसे लाखों बिहारी वोटरों के लिए यह सीधा संदेश है — “मोदी जी तुम्हारी छठ में भी शामिल हैं।”
लेकिन इस ‘शो’ की पोल खोलते हुए कई पत्रकारों ने दिखाया कि जहाँ मोदी घाट पर पानी साफ दिखाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यमुना अभी भी जहरीले झाग से ढकी है। कैमरे का फ्रेम बदलते ही असली सच्चाई झलक जाती है।

इतना ही नहीं, भक्तों की भीड़ में ‘ट्रोल आर्मी’ भी एक्टिव है — यमुना का पानी पीने का ढोंग करते वीडियो बना रहे हैं, फिर वही पानी पीछे फेंक देते हैं। “जय गंगा मैया” के नारे और झूठ का प्रदर्शन एक साथ चल रहा है।

यह वही राजनीति है जिसमें आस्था नहीं, एक्टिंग है; श्रद्धा नहीं, स्क्रिप्ट है। और यह सब जनता के पैसे से हो रहा है — दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच की टकराहट में जनता की जेब से पैसा बह रहा है।

नीतीश-चिराग की छठी सियासत

इधर दिल्ली में मोदी जी छठ के घाट पर आस्था का जलवा दिखा रहे हैं, उधर बिहार में नीतीश कुमार और चिराग पासवान ‘छठ राजनीति’ का दूसरा अध्याय लिख रहे हैं।
नीतीश कुमार खुद चिराग पासवान के घर पहुँचे — छठी मइया के प्रसाद के बहाने, लेकिन मकसद चुनावी डैमेज कंट्रोल। तस्वीर में दोनों मुस्कुराते दिखे — और तुरंत चिराग ने सोशल मीडिया पर लिख दिया, “मुख्यमंत्री जी हमारे घर आए, प्रसाद लिया, सब कुछ ठीक है NDA में।”

लेकिन जनता समझ रही है कि यह फोटो नहीं, “फोटो-ऑप” है।
क्योंकि ठीक कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने पटना में कहा था — “अगला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं होंगे।” और उस बयान के बाद सबसे पहले तालियाँ बजाने वाले थे — चिराग पासवान।
अब चुनाव से ठीक पहले नीतीश का यह छठ प्रसाद वाला ‘मेल-मिलाप’ उसी चोट का मरहम है।

आस्था का पर्व या पॉलिटिक्स का मंच?

छठ बिहार और पूर्वांचल की आस्था का सबसे बड़ा पर्व है। लेकिन जब इस आस्था का इस्तेमाल वोटों की खेती के लिए किया जाता है, तो यह श्रद्धा नहीं, धोखा बन जाता है।
दिल्ली की जहरीली यमुना को एक दिन के लिए साफ दिखाना, बिहारियों को यह यकीन दिलाना कि ‘मोदी जी भी छठ मानते हैं’ — यह सिर्फ धार्मिक नहीं, राजनीतिक प्रोपेगैंडा है।

यह छठी मइया का नहीं, चुनावी मइया का पर्व बन गया है — जहाँ लाइट, कैमरा, एक्शन सब तैयार है, पर सच्चाई झाग में डूबी है।

और आखिर में…

सवाल सीधा है —
क्या बिहार जीतने के लिए इतना झूठ ज़रूरी है?
क्या आस्था के नाम पर यह सियासी नाटक लोकतंत्र की सफाई करेगा, या यमुना की तरह सबकुछ झाग में डुबो देगा?

छठी मइया सब देख रही हैं — और इस बार शायद डुबकी देने वालों को नहीं, झूठ फैलाने वालों को अर्घ दे दें।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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