गाज़ा को श्मशान बनाने पर उतारू इज़रायल, नेतन्याहू के खिलाफ़ आवाजें तेज़, फिल्म+ flotilla का असर
फिलिस्तीन में गाज़ा पट्टी आज एक ऐसे भयावह नरसंहार का गवाह बन चुकी है, जिसकी लाइवस्ट्रीम पूरी दुनिया देख रही है। 700 दिनों से अधिक समय से इस्राइल लगातार बमबारी कर रहा है। गाज़ा के 20 लाख से अधिक लोगों को पर्चे गिराकर कहा गया—”इलाका खाली करो, वरना सबकुछ नष्ट कर दिया जाएगा।” लेकिन सवाल यह है कि आखिर लोग कहाँ जाएँ? चारों ओर भुखमरी, अकाल और मौत का मंजर है।
भूख और मौत के बीच फंसी ज़िंदगी
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि गाज़ा की 50% से अधिक आबादी एक्यूट स्टार्वेशन (भीषण अकाल) से गुजर रही है। बच्चे कंकाल जैसे होते जा रहे हैं। अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं हैं, और रोज़ पाँच से अधिक इमारतें ढहा दी जा रही हैं। इस्राइल का प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू खुलेआम धमकी दे रहा है, और अमेरिकी समर्थन उसके पीछे खड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दोहरी तस्वीर
रूस-यूक्रेन युद्ध पर सैंक्शन लगाने वाले अमेरिका और यूरोप इस जनसंहार पर खामोश हैं। फ्रांस, ब्रिटेन और पूरा यूरोपीय संघ केवल “चिंता” व्यक्त करने तक सीमित है। वहीं, मिस्र, क़तर और UAE ने खुलकर विरोध दर्ज कराया है। लेकिन बड़ी शक्तियाँ केवल दर्शक बनी हुई हैं।
मीडिया ब्लैकआउट और पत्रकारों की हत्या
यह पहला ऐसा जनसंहार है जिसकी लाइवस्ट्रीम हो रही है, लेकिन रिपोर्टिंग करने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा है। अब तक 274 पत्रकार गाज़ा में मारे जा चुके हैं। अल-जज़ीरा ने ब्लैक स्क्रीन पर उनके नाम स्क्रॉल करके यह दिखाया कि सच लिखना कितना खतरनाक हो गया है।
सिनेमा ने तोड़ी चुप्पी : “वॉइस ऑफ हिंद रजाब”
गाज़ा की 6 साल की बच्ची हिंद रजाब की रिकॉर्ड की गई आवाज़, जिसने रेड क्रॉस से मदद माँगी थी, पर बनी फिल्म Voice of Hind Rajab ने वेनिस फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीता। यह फिल्म दुनिया को याद दिला रही है कि जब सरकारें चुप हैं, तब कला और सिनेमा ही जनसंहार के ख़िलाफ़ गवाही बनते हैं।
ग्लोबल प्रतिरोध : समूद फ्लोटीला
इस्राइल की नाकेबंदी तोड़ने के लिए 50 नावों का अंतरराष्ट्रीय काफिला (Global Samud Flotilla) गाज़ा की ओर बढ़ा है। इसमें 44 देशों के लोग शामिल हैं, जिनमें मंडेला के पोते मांडला मंडेला और कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग भी हैं। यह पहल संदेश देती है कि दुनिया भर के लोग इस जनसंहार के ख़िलाफ़ खड़े हो रहे हैं।
इस्राइल के भीतर भी विरोध
न केवल बाहर बल्कि इस्राइल के भीतर भी नेतन्याहू के खिलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। हजारों लोग सड़कों पर उतरकर उसे “देशद्रोही” कह रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या गाज़ा का युद्ध केवल नेतन्याहू की राजनीति और सत्ता बचाने का साधन बन चुका है?
युद्ध नहीं, एकतरफ़ा कत्लेआम
भारत का मुख्यधारा मीडिया इसे “रणभूमि” बताकर प्रचारित करता है, लेकिन असलियत यह है कि यहाँ दो सेनाएँ नहीं लड़ रहीं। यह एकतरफ़ा कत्लेआम है—जहाँ निहत्थे लोग, भूखे बच्चे और महिलाएँ बमों का शिकार हो रहे हैं।
निष्कर्ष
गाज़ा का यह संघर्ष इतिहास में दर्ज होगा—न केवल इसलिए कि यह पहली बार है जब जनसंहार लाइवस्ट्रीम हुआ, बल्कि इसलिए भी कि पूरी दुनिया चुपचाप देखती रही। सवाल यह है कि क्या मानवता केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति और तेल-गैस की भूख की शिकार बनकर रह जाएगी?