October 6, 2025 2:33 pm
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चेन्नई निगम की सफाईकर्मियों पर गाज: निजीकरण से घटे वेतन, टूटी उम्मीदें

ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के सफाईकर्मी 20 साल की सेवा के बाद निजी कंपनी रामकी कॉरपोरेशन के ठेके पर भेज दिए गए। वेतन घटा, स्थायी नौकरी का सपना टूटा। जानिए पूरी रिपोर्ट।

15 से 20 साल से काम कर रहे सफाईकर्मी अब रामकी कॉरपोरेशन के ठेके पर, 13 दिन चला धरना

1 अगस्त को जब ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के सफाईकर्मी रोज़ की तरह काम पर पहुंचे तो उन्हें अपने अधिकारियों से यह चौंकाने वाली सूचना मिली कि अब उनकी नौकरी निगम के अधीन नहीं रहेगी। उन्हें रामकी कॉरपोरेशन नामक एक निजी कंपनी में ठेका कर्मचारी के रूप में पंजीकृत होना होगा।

ये वही सफाईकर्मी हैं, जो पिछले 15–20 सालों से ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन में दैनिक मज़दूरी पर काम कर रहे थे। इनमें से कई की सेवा अवधि 20 साल से भी अधिक है। शुरुआत में इन्हें प्रतिदिन मात्र ₹100 मिलते थे और मासिक आय ₹3,000–4,000 से ज़्यादा नहीं होती थी। धीरे-धीरे मज़दूरी बढ़ी और जून-जुलाई तक उनकी मासिक आय ₹23,000 तक पहुँच गई थी।

लेकिन अब रामकी कॉरपोरेशन के तहत काम करने पर उन्हें केवल ₹15,000 वेतन मिलेगा, वह भी भविष्य निधि और ईएसआई कटौती के बाद।

दलित समुदाय से बहुसंख्यक सफाईकर्मी

निगम के 90% से अधिक सफाईकर्मी अरुंधतियार और परियार जैसी दलित जातियों से आते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों की पढ़ाई, अस्पतालों के खर्च और अन्य ज़रूरी आवश्यकताओं के चलते वे पहले ही कर्ज़ में डूबे हुए हैं।

इन सफाईकर्मियों ने 20 साल तक गली-मोहल्लों का कचरा उठाया, सार्वजनिक शौचालय साफ़ किए, रोज़ाना मानव मल-मूत्र और अन्य अपशिष्ट उठाए। इस दौरान कई को गंभीर त्वचा रोग, सांस की बीमारियां और महिलाओं को स्त्री-रोग संबंधी दिक्कतें हो गईं। लेकिन स्वास्थ्य लाभ या छुट्टियों जैसी कोई सुविधा उन्हें कभी नहीं मिली।

13 दिन का धरना और पुलिस दमन

इस अन्याय के खिलाफ उलेमपुर उरिमाई एक्कम संगठन ने सफाईकर्मियों को संगठित किया। 1 अगस्त से 13 अगस्त तक लगभग 3000 महिलाएं निगम कार्यालय ‘रिपन बिल्डिंग’ के बाहर धरने पर बैठीं।

लेकिन 13 अगस्त की आधी रात को पुलिस ने उन्हें जबरन हटाया और गिरफ्तार कर पूरी रात हिरासत में रखा ताकि वे 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस समारोह में बाधा न डाल सकें।

वादाखिलाफी का आरोप तमिलनाडु सरकार पर

सफाईकर्मियों ने कहा कि वे बेहद निराश हैं क्योंकि डीएमके सरकार और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने अपने चुनावी घोषणापत्र में उनकी नौकरियों को स्थायी करने और वेतन बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन अब निजीकरण के जरिए न केवल वेतन घटा दिया गया बल्कि उन्हें स्थायित्व से भी वंचित कर दिया गया।

उनका कहना है कि “फ्री ब्रेकफास्ट जैसी योजनाएं दिखावे की हैं। हमें सामाजिक न्याय चाहिए, स्थायी नौकरी चाहिए, बेहतर वेतन चाहिए और श्रम अधिकार चाहिए।”

निष्कर्ष

ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के सफाईकर्मी पिछले दो दशकों से शहर की सफाई व्यवस्था की रीढ़ रहे हैं। लेकिन सरकार द्वारा रोजगार के निजीकरण ने उनकी आजीविका पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या सामाजिक न्याय की बात करने वाली तमिलनाडु सरकार वास्तव में दलित और मज़दूर समुदाय के साथ खड़ी है या निजी कंपनियों के हितों के साथ?

दीप्ति सुकुमार

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