🔴 आदिवासी बनाम बाहरी, ज़मीन का संघर्ष और हिमंत सरकार की भूमिका
मणिपुर अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ है कि अब पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम का कार्बी आंगलोंग इलाका हिंसा की चपेट में आ गया है। दोनों जगहों की हिंसा की प्रकृति अलग है, लेकिन आशंका एक जैसी है—कि अगर समय रहते हालात नहीं संभाले गए, तो यह टकराव और भयावह रूप ले सकता है।
कुल मिलाकर, देश का कोई भी इलाका हो, कोई भी मुद्दा हो—बीजेपी शासित राज्यों में आग से खेलने की राजनीति बार-बार सामने आ रही है। इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे कि
कार्बी आंगलोंग में हिंसा क्यों भड़की, “स्थानीय बनाम बाहरी” का यह संघर्ष क्या है और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार इसे कैसे हैंडल कर रही है।
🔹 क्या है मौजूदा स्थिति?
असम के आदिवासी बहुल कार्बी आंगलोंग क्षेत्र के कई हिस्सों में हिंसा फैल चुकी है। अब तक कम से कम दो लोगों की मौत और करीब 150 लोग घायल होने की पुष्टि हुई है, जिनमें लगभग 60 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।
दैनिक भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 12 गांवों में हजारों लोग घरों में कैद हैं, रात-रात भर जागकर पहरा दे रहे हैं कि कोई अनहोनी न हो जाए।
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए:
- कर्फ्यू और निषेधाज्ञा लागू है
- पुलिस, RAF, CRPF और सेना तैनात की गई है
- पूर्वी और पश्चिमी—दोनों कार्बी आंगलोंग जिलों में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं
🔹 हिंसा की शुरुआत कैसे हुई?
22–23 दिसंबर की रात पश्चिमी कार्बी आंगलोंग के खेरोनी इलाके में हालात बेकाबू हो गए।
दो समुदायों के बीच सड़क पर आमने-सामने विरोध हुआ, जो जल्द ही:
- पत्थरबाज़ी
- तीर चलने
- देसी बम
- आगजनी
में बदल गया।
भीड़ ने पुलिस पर हमला किया और कई दुकानों व घरों को आग के हवाले कर दिया।
🔹 हिंसा की जड़: ज़मीन और अधिकार
इस हिंसा का मूल कारण है—भूमि अधिकार।
स्थानीय आदिवासी समुदाय, विशेषकर कार्बी समुदाय, का कहना है कि:
- गैर-आदिवासी “बाहरी” समुदाय
- संरक्षित आदिवासी भूमि पर अवैध कब्ज़ा कर रहे हैं
- उनकी संख्या और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है
इसी के विरोध में पिछले 15 दिनों से भूख हड़ताल चल रही थी। मांग साफ थी:
- अवैध बसावट हटाई जाए
- आदिवासी भूमि और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो
🔹 छठी अनुसूची और कार्बी आंगलोंग
कार्बी आंगलोंग क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची में आता है, जहां:
- आदिवासी समुदायों को
- भूमि, संसाधन और स्वशासन के विशेष अधिकार प्राप्त हैं
लेकिन जैसे-जैसे भूख हड़ताल लंबी खिंचती गई, तनाव बढ़ता गया।
पुलिस कार्रवाई, हिरासत और बल प्रयोग ने हालात को और विस्फोटक बना दिया।
🔹 मौतें और निशाने पर समुदाय
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार:
- एक कार्बी युवक की मौत पुलिस कार्रवाई में हुई
- एक बंगाली समुदाय के व्यक्ति की मौत मुख्य बाजार में आगजनी के दौरान हुई
हिंसा के दौरान:
- अलग-अलग समुदायों के घर और व्यापार निशाने पर आए
- कार्बी आंगलोंग ऑटोनॉमस काउंसिल (KAC) के कार्यकारी सदस्य और BJP नेता तुलीराम रोगांग के घर को भी जला दिया गया
🔹 KAC पर सवाल
स्थानीय संगठनों का आरोप है कि:
- KAC अब स्वायत्त संस्था नहीं रही
- वह मुख्यमंत्री और राज्य सरकार के दबाव में काम कर रही है
- आदिवासी हितों की रक्षा करने में विफल रही है
🔹 “बाहरी” कौन हैं?
यह मामला बीजेपी के चुनावी “घुसपैठिया” नैरेटिव से अलग है।
यहां सवाल है स्थानीय बनाम गैर-आदिवासी का।
“बाहरी” कहे जा रहे लोगों में:
- हिंदी भाषी
- बिहार और बंगाल से आए
- गैर-आदिवासी समुदाय शामिल हैं
इन समुदायों की मांग है कि:
- जो लोग 2011 से पहले बसे हैं
- उन्हें भूमि और नागरिक अधिकार दिए जाएं
कुछ लोगों ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद बेदखली नोटिस पर अस्थायी रोक भी लगी।
🔹 राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने माना है कि स्थिति गंभीर है और शांति बहाली के लिए बल तैनात किए गए हैं।
वहीं कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने हिंसा की निंदा करते हुए कहा कि:
“इस संघर्ष का समाधान बल से नहीं, संवेदनशीलता और संवाद से होना चाहिए।”
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार:
- आदिवासी अधिकारों की अनदेखी कर रही है
- केवल सख्त सुरक्षा उपायों पर निर्भर है
🔹 मणिपुर से सबक?
मणिपुर भी ऐसे ही धीरे-धीरे सुलगा था और फिर लंबे समय तक हिंसा में झुलसता रहा।
आज भी वहां पूरी शांति का दावा नहीं किया जा सकता।
फर्क सिर्फ इतना है कि:
- मणिपुर में संघर्ष मैतेई–कुकी के बीच था
- कार्बी आंगलोंग में आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी है
लेकिन दोनों जगह सरकारी विफलता और राजनीतिक पक्षधरता एक जैसी दिखती है।
🔹 असली समस्या क्या है?
अगर गहराई से देखें तो:
- बेरोज़गारी
- आर्थिक असमानता
- विकास की कमी
- संसाधनों पर बढ़ता दबाव
लोगों को आमने-सामने खड़ा कर रहा है।
जब सरकार इन बुनियादी सवालों को हल नहीं करती, तो पहचान और ज़मीन के संघर्ष हिंसा में बदल जाते हैं।
🔹 आगे क्या?
2026 में असम विधानसभा चुनाव हैं।
अगर हिमंत सरकार ने इस मुद्दे को भी वोट-बैंक की राजनीति में बदला, तो हालात और बिगड़ सकते हैं।
मणिपुर के बाद कार्बी आंगलोंग एक चेतावनी है—
अगर अब भी नहीं संभले, तो आग कहां तक फैलेगी, कहना मुश्किल है।
