October 6, 2025 12:31 pm
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हिंदू ख़तरे में है, इसलिए तीन बच्चे पैदा करो, मंदिर-मस्जिद करते रहो

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा हिंदू राष्ट्र खतरे में है। तीन बच्चे पैदा करो और काशी–मथुरा आंदोलन चलाओ। क्या यह असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति है?

मोहन भागवत रिटायरमेंट पर भी पलटे, काशी-मथुरा के विवादों को नई चिंगारी दी

आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) प्रमुख मोहन भागवत के दशहरा भाषण ने एक बार फिर से देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने साफ कहा कि हिंदू राष्ट्र खतरे में है, और इस खतरे से निपटने के लिए हिंदुओं को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने होंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने संकेत दिया कि अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा आंदोलन का केंद्र होंगे।

यह बयान महज़ धार्मिक आह्वान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक अर्थ छिपे हैं। सवाल यह है कि जब देश की 80 फीसदी आबादी हिंदू है और 11 सालों से हिंदुत्व की विचारधारा पर आधारित बीजेपी सत्ता में है, तब आखिर हिंदू खतरे में कैसे आ गया?

हिंदू खतरे का नैरेटिव: सत्ता में रहते हुए भी असुरक्षा क्यों?

मोहन भागवत का बयान नया नहीं है। पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के तमाम नेता लगातार यही कहते रहे हैं कि भारत की जनसंख्या का संतुलन बदल रहा है और हिंदू घट रहे हैं।

  • 15 अगस्त 2024 को लालकिले से पीएम मोदी ने ग़ुसपैठियों और डेमोग्राफिक चेंज का मुद्दा उठाया।
  • असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा अक्सर ‘मुसलमानों के बढ़ते दबाव’ की बात करते हैं।
  • उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शासन में ‘जनसंख्या संतुलन’ के नाम पर मुसलमानों को टारगेट किया जाता है।

लेकिन हकीकत यह है कि भारत की जनगणना (2011) के अनुसार, हिंदू आबादी 80% है। मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 14% है। और स्वतंत्र विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 50 सालों में भी यह अनुपात कोई नाटकीय बदलाव नहीं लाएगा।

फिर यह सवाल वाजिब है कि जब बहुसंख्यक खुद सत्ता में हैं, तो खतरा किससे है?

RSS – सबसे बड़ा NGO, लेकिन कागज़ पर मौजूद नहीं

आरएसएस की ताकत का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि यह संगठन दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी नेटवर्क है, लेकिन कानूनी तौर पर कागज़ों में कहीं दर्ज ही नहीं है।

  • न आयकर विभाग के रिकॉर्ड में,
  • न किसी वैधानिक पंजीकरण में।

दिल्ली सहित देशभर में इसकी भव्य इमारतें और करोड़ों रुपये के खर्च पर बने कार्यालय हैं, लेकिन यह किसी भी सरकारी निगरानी के तहत नहीं है। कारवां पत्रिका ने हाल ही में इस पर एक विस्फोटक कवर स्टोरी छापी थी, जिसमें आरएसएस को “अनदेखा लेकिन सर्वशक्तिमान संगठन” बताया गया।

तीन बच्चे पैदा करने का संदेश: औरतों पर सीधा हमला

भागवत का “तीन बच्चे पैदा करो” वाला बयान सबसे ज़्यादा महिलाओं पर चोट करता है।

  • यह वही संगठन है जिसकी शाखाओं में आज तक महिलाएँ बराबरी का दर्जा नहीं पा सकी हैं।
  • अब वही औरतों को कह रहा है कि वे अपना करियर, शरीर और भविष्य दाँव पर लगाकर ‘हिंदू खतरे’ को रोकने के लिए बच्चे पैदा करें।

सोचिए, जिस दौर में 80 करोड़ भारतीय मोदी सरकार की 5 किलो मुफ्त राशन योजना पर जिंदा हैं, उसी दौर में और बच्चों को जन्म देने का दबाव बनाना कितना क्रूर और अव्यवहारिक है।

आर्थिक सच्चाई:

  • भारत की आबादी 140 करोड़ है।
  • इनमें से 80 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर निर्भर हैं।
  • बेरोजगारी दर ऐतिहासिक स्तर पर है।
  • लाखों नौकरियाँ जा चुकी हैं और उद्योग धंधे ठप हैं।

ऐसे में और बच्चों को जन्म देना परिवारों को और गहरी गरीबी और भूख में धकेलेगा।

मंदिर–मस्जिद की राजनीति: अयोध्या से काशी–मथुरा तक

मोहन भागवत ने अपने भाषण में यह भी कहा कि अब काशी और मथुरा हिंदू समाज की अगली लड़ाई हैं।

इसका अर्थ साफ है:

  • अयोध्या आंदोलन पूरा हुआ,
  • अब नए धार्मिक विवाद खड़े किए जाएँगे।

क्योंकि जब सरकार असली मुद्दों – बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य – पर नाकाम होती है, तब जनता का ध्यान मंदिर–मस्जिद की राजनीति से भटकाना आसान होता है।

बीजेपी की राजनीति का यह आजमाया हुआ फार्मूला है।

इतिहास का आईना: आरएसएस की भूमिका और आज का एजेंडा

आजादी के आंदोलन में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं रही। यह बात दस्तावेज़ों में दर्ज है।

  • 1947 तक आरएसएस ने स्वतंत्रता संग्राम में कोई हिस्सा नहीं लिया।
  • कई इतिहासकारों के अनुसार, संगठन ने अंग्रेजों के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं किया।

इसके बावजूद, आज यह सत्ता के केंद्र में है। बीजेपी और आरएसएस का रिश्ता नाभि-नाल का है। बीजेपी वही करती है जो आरएसएस की वैचारिकी तय करती है।

मोहन भागवत का भाषण इस बात को फिर साबित करता है कि हिंदू राष्ट्र की राजनीति ही उनका अंतिम लक्ष्य है।

बेरोजगारी, महंगाई और संकट से ध्यान भटकाना

मोहन भागवत का संदेश दरअसल एक डाइवर्जनरी पॉलिटिक्स है।

  • पेपर लीक से नाराज़ युवाओं को आंदोलन से रोकने के लिए,
  • बेरोजगारी के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए,
  • 80 करोड़ लोगों की गरीबी छिपाने के लिए,

हिंदू खतरे का नैरेटिव गढ़ा जाता है।

युवाओं से कहा जा रहा है—नौकरी की चिंता मत करो, सड़क पर उतरो और मंदिर–मस्जिद करो।

बाबासाहेब आंबेडकर की चेतावनी क्यों याद आई?

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने 1950 में साफ कहा था कि हिंदू राष्ट्र भारत के लिए एक डिज़ास्टर होगा।

आज उनका कथन बार-बार याद आता है।

  • जब 80% हिंदू आबादी को भी डर में जीने को मजबूर बताया जाता है।
  • जब औरतों के शरीर पर धार्मिक राष्ट्रवाद का बोझ डाला जाता है।
  • जब असली मुद्दों से ध्यान भटकाकर नफरत को हथियार बनाया जाता है।

निष्कर्ष

मोहन भागवत का ताज़ा भाषण केवल धार्मिक बयान नहीं है, यह 2025 के राजनीतिक एजेंडे का खाका है।

  • तीन बच्चे पैदा करो,
  • काशी–मथुरा आंदोलन की तैयारी करो,
  • और “हिंदू खतरे” का नैरेटिव फैलाओ।

लेकिन इस नारे के पीछे छिपा सच है—
बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी और असली संकट से ध्यान हटाना।

भारतीय लोकतंत्र के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है। अगर नागरिक असली मुद्दों को छोड़कर केवल नफरत और धार्मिक आंदोलनों में उलझ गए, तो वही स्थिति बनेगी जिससे आंबेडकर ने चेताया था—भारत का संविधान और लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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