ममदानी की न्यूयार्क में जीत ने क्यों मचाई दुनियाभर में हलचल
🎵 “धूम मचाले धूम…”
ये गाना इन दिनों न्यूयॉर्क से लेकर दिल्ली तक गूंज रहा है — वजह है ज़ोहरान ममदानी की धमाकेदार जीत। 33 वर्षीय ज़ोरान ममदानी ने न सिर्फ़ न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव में जीत दर्ज की है, बल्कि पूरी दुनिया को एक राजनीतिक संदेश भी दिया है — यह जीत सिर्फ़ एक शहर की नहीं, एक विचार की जीत है।
ट्रंप को दी सीधी चुनौती
आम तौर पर कहा जाएगा कि ममदानी ने निर्दलीय उम्मीदवार एंड्री उकोमा और रिपब्लिकन पार्टी के एकार्टी स्लिवा को हराया। लेकिन सच यह है कि ममदानी की असली टक्कर डोनाल्ड ट्रंप से थी।
प्राइमरी में जीत के बाद से ही ट्रंप लगातार न्यूयॉर्क के नागरिकों को धमका रहे थे कि अगर ममदानी मेयर बने तो वे शहर को फंड नहीं देंगे।
ममदानी ने जीत के बाद मंच से कहा:
“डोनाल्ड ट्रंप, मुझे पता है आप देख रहे हैं, सुन रहे हैं। मेरे पास आपके लिए सिर्फ चार शब्द हैं — वाल्यूम ज़रा तेज़ करो!”
ममदानी की जीत का वैश्विक अर्थ
यह जीत अमेरिका के सीमित संदर्भ में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मायने रखती है।
ट्रंपवाद के दौर में, जब लोकतंत्र पर तानाशाही की छाया गहराती जा रही थी, ममदानी की जीत जनवादी राजनीति और मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना है।
उन्होंने अपने पूरे अभियान में रोटी, रोज़गार, आर्थिक न्याय और गरिमा की बात की। यही कारण था कि ट्रंप ने उन्हें “पागल कम्युनिस्ट” तक कहा था। लेकिन जनता ने जवाब वोट से दिया — उस प्रवासी को चुनकर जिसने प्रवासियों, अल्पसंख्यकों और कामगारों के हक़ की बात की।
कौन हैं ज़ोहरान ममदानी?
ममदानी की कहानी आधुनिक अमेरिका की विविधता की कहानी है।
उनकी मां भारतीय-अमेरिकी फिल्ममेकर मीरा नायर हैं, और पिता महमूद ममदानी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और अफ्रीकी-भारतीय मूल के विद्वान हैं।
पत्नी रमा द्वाज़ी एक सीरियाई कलाकार हैं।
33 साल के ज़ोहरान ममदानी अब न्यूयॉर्क के पहले मुस्लिम और एशियाई मूल के मेयर बन गए हैं। यह उपलब्धि सिर्फ उनके परिवार या समुदाय की नहीं, बल्कि उस अमेरिका की है जो विभाजन की राजनीति से ऊपर उठना चाहता है।
ट्रंप की बौखलाहट
ममदानी की जीत के तुरंत बाद ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट Truth Social पर टिप्पणी की, जिससे यह साफ हो गया कि यह हार उन्हें गहरी लगी है।
यह प्रतिक्रिया बताती है कि यह चुनाव नतीजा किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि ट्रंपवाद के ख़िलाफ़ जनता के ग़ुस्से का प्रतीक है।
भारतीय मूल के नेताओं का उभार
इस चुनाव में ज़ोहरान ममदानी के अलावा भी भारतीय मूल के नेताओं का प्रदर्शन शानदार रहा।
- आफ़ताब कर्मा सिंह पुरेवाल ने ओहायो के सिनसिनाटी सिटी में लगातार दूसरी बार मेयर पद जीता।
उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार कोरी बॉमन को हराया, जो अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वैंस के सौतेले भाई हैं। - इसके अलावा, वर्जीनिया में स्पेंबरगर और न्यू जर्सी में मिकी शेरल — दोनों डेमोक्रेटिक महिला उम्मीदवारों की जीत ने इतिहास बनाया है।
अब अमेरिका के 50 राज्यों में से 14 राज्यों की कमान महिलाओं के हाथ में होगी — यह अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा आंकड़ा है। वर्जीनिया में लेफ्टिनेंट गर्वनर के रूप में भारतीय मूल की, हैदराबाद में जन्मी गज़ाला हाशमी चुनी गईं जो किसी भी अमेरिकी मुस्लिम महिला का राज्य स्तर के चुनाव में पहला परचम है।
नया संकेत, नई दिशा
हालांकि अमेरिकी राजनीति में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन की नीतियों में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं माना जाता, लेकिन ट्रंपवाद के दौर में इन जीतों ने राहत की सांस दी है।
ज़ोहरान ममदानी की जीत ने दिखा दिया कि डर और नफ़रत की राजनीति के बावजूद उम्मीद और बराबरी की बात करने वाले नेता जनता के दिल जीत सकते हैं।
