हजारों दुर्लभ जानवरों की हवाई यात्रा और उठते गंभीर सवाल
मध्य अमेरिकी देश वेनेज़ुएला से भारत लाई गई एक बड़ी खेप की खबर ने हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल पैदा कर दी है। यह खबर किसी सामान्य कार्गो के भारत आने की नहीं थी—यह मामला हजारों की संख्या में जिंदा जानवरों को हवाई जहाज के जरिए भारत लाए जाने का था, और उनका गंतव्य था—जामनगर स्थित रिलायंस का वनतारा।
18 मई 2024 की अत्यंत संवेदनशील उड़ान
अर्मांडो इन्फो (Armando Info), वेनेज़ुएला की एक खोजी पत्रकारिता वेबसाइट, ने मार्च 2025 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार 18 मई 2024 को पोलैंड की कार्गो एयरलाइंस Sky Taxi का बोइंग 767 विमान कराकास अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से भारत के लिए रवाना हुआ।
इस विमान में—
- 62 प्रजातियों के
- कुल 1,825 जीवित जानवर
- लगभग 15,000 किलोमीटर की यात्रा पर भेजे गए थे।
इन दस्तावेज़ों में गंतव्य स्पष्ट रूप से Vantara (वनतारा) बताया गया है।
साल 2024 तक 5,359 जानवर भेजे जा चुके थे
अर्मांडो इन्फो की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 तक कुल 5,359 जीवित जानवर अलग-अलग खेपों में वेनेज़ुएला से भारत भेजे जा चुके थे। इनमें कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियां शामिल थीं।
यह सारी प्रक्रिया दोनों देशों के बीच एक आधिकारिक ‘कंज़र्वेशन समझौते’ के तहत हो रही थी और निर्यात के लिए सभी सरकारी परमिट जारी किए गए थे। वैधानिकता पर इसलिए सवाल नहीं उठाए गए—पर नैतिकता, पारदर्शिता और जानवरों की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न बने हुए हैं।
तेल व्यापार, रिलायंस और वेनेज़ुएला का गहरा संबंध
यह बात भी ध्यान देने वाली है कि वेनेज़ुएला दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल उत्पादकों में से है। उसकी सरकारी तेल कंपनी PDVSA के दुनिया भर के ग्राहकों में से एक प्रमुख ग्राहक रिलायंस इंडस्ट्रीज़ भी है।
जामनगर में स्थित रिलायंस की रिफाइनरी—
- दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी है,
- और इसी विशाल परिसर के भीतर दुनिया का सबसे बड़ा निजी चिड़ियाघर वनतारा बनाया गया है।
यानी—
एक ही परिसर में दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी और दुनिया का सबसे बड़ा निजी चिड़ियाघर।
ये दोनों व्यवसायिक पहलू—तेल व्यापार और वन्यजीव आयात—आखिर कैसे एक-दूसरे से जुड़े हैं, यह भी कई विशेषज्ञों के लिए जिज्ञासा और चिंता का विषय बना हुआ है।
वनतारा: आंकड़े धुंधले, पारदर्शिता संदिग्ध
अर्मांडो इन्फो की रिपोर्ट कहती है कि वनतारा से जुड़ी लगभग हर जानकारी—
- अत्यंत अतिशयोक्तिपूर्ण है,
- प्रमाणिक डेटा प्राप्त करना बेहद कठिन है,
- और उपलब्ध जानकारी भी सीमित, नियंत्रित और अस्पष्ट है।
इसके साथ ही एक केंद्रीय सवाल लगातार दोहराया जाता है—
क्या पेट्रोकेमिकल रिफाइनरी परिसर में दुनिया के सबसे दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों को रखना सुरक्षित है?
यह भी सवाल बार-बार उठते हैं:
- वहां जानवरों के साथ कैसा व्यवहार होता है?
- उन पर किस तरह के प्रयोग या अनुसंधान होते हैं?
- इतने बड़े पैमाने पर विदेशी जानवरों के आयात के पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या है?
- क्या इन प्रजातियों के संरक्षण के नाम पर व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है?
अब तक इन सवालों का कोई स्पष्ट, प्रमाणिक और स्वतंत्र जवाब सामने नहीं आया है—और शायद आए भी नहीं।
