मोदी जी का जादू, TATA ट्रस्ट से BJP को मिले 758 करोड़ रु
मोदी जी हैं तो मुमकिन है।
यह नारा आज धीरे-धीरे राजनीतिक चंदे की नई परिभाषा बन चुका है।
जो उद्योगपति चंदा देते हैं, उन्हें क्या मिलता है?
उत्तर धीरे-धीरे सामने आ रहा है – सीधी डील, सीधा फायदा।
और ध्यान रहे, यहां बात चुनावी बॉंड्स की नहीं हो रही।
क्योंकि उन पर तो फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
फिर भी BJP माला-माल, और विपक्ष कंगाल।
चुनावी नतीजों पर इसका असर साफ दिखाई देता है।
जादू की छड़ी: चंदा और कारोबार
मोदी जी के पास एक अद्भुत जादू की छड़ी है।
यह छड़ी घूमती है और…
- उद्योगपति चंदा देते हैं
- पैसा सीधे पहुंचता है भाजपा के खजाने में
- और खजाना लगातार बढ़ता जाता है
चुनावी बॉंड रद्द हो गए?
कोई बात नहीं।
धन की कमी? नामुमकिन।
यही कारण है कि आज संसद के विंटर सेशन में भी हंगामा इसी मुद्दे पर है –
सीधी डील कैसे चल रही है?
टाटा समूह की दिलचस्प कहानी
यहां चर्चा टाटा समूह की है।
अंबानी-अडानी तो जिगरी यार हैं, देश वैसे ही उन पर कुर्बान है।
टाटा की क्रोनोलॉजी देखें:
- टाटा समूह द्वारा नियंत्रित ट्रस्ट में आया ₹915 करोड़
- बीजेपी के खाते में गया ₹757 करोड़
- कांग्रेस को मिला सिर्फ 8.4%
यानी:
83% पैसा सीधे-सीधे बीजेपी के पास।
राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे कुछ भी कहें,
उनके खाते में सिर्फ बचा-खुचा।
महिंद्रा समूह का योगदान
अब आते हैं महिंद्रा समूह पर।
- ट्रस्ट: New Democratic IT
- कुल पैसा: ₹160 करोड़
- BJP को गया: ₹150 करोड़
- बाकी सब दलों में बंटा: ₹10 करोड़
यही है मोदी राज की लेवल-प्लेइंग फील्ड।
यह पैसा आखिर गया कहां?
2024 लोकसभा चुनाव।
- तीसरी बार मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में
- भव्य रैलियों पर
- प्रचार, संसाधन, लोगों, मशीनरी पर
और यह तो सिर्फ दो इंडस्ट्रियल ग्रुप्स का हिसाब है।
अंबानी-अडानी की बात तो अभी हुई ही नहीं।
क्रोनोलॉजी समझिए: “एक हाथ दे, एक हाथ ले”
यह खेल समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि
यह सिर्फ चंदे का मामला नहीं है, यह कारोबार की डील है।
उदाहरण:
फरवरी 2024
- 29 फरवरी 2024 को कैबिनेट ने मंजूरी दी:
- तीन सेमीकंडक्टर यूनिट
- इनमें से दो टाटा के लिए
- सब्सिडी दी गई:
₹44,000 करोड़ से ज्यादा
चार हफ्ते के अंदर-अंदर सब क्लियर।
फिर हुआ क्या?
- टाटा ने चंदा दिया:
₹758 करोड़
यानी:
पहले मंजूरी, फिर चंदा।
इसे कहते हैं डील।
विपक्ष कंगाल क्यों?
मामला सिर्फ चुनाव हारने का नहीं।
- वोट चोरी
- संसाधनों की लूट
- पैसे की डकैती
यह सब मिलकर विपक्ष को कंगाल बना देते हैं।
चुनावी बॉंड हट गए, फिर भी BJP माला-माल।
क्यों?
क्योंकि:
मोदी जी हैं तो मुमकिन है।
निष्कर्ष
यह खुला खेल फर्रुखाबाद है।
एक हाथ दे, एक हाथ ले।
चंदा दो, कारोबार लो।
टाटा, महिंद्रा की सिर्फ दो कहानियां काफी हैं समझने के लिए कि
राजनीति में पैसा कैसे बह रहा है,
और वह किस दिशा में जा रहा है।
मोदी जी के शासन में
- BJP धनवान है
- विपक्ष निर्धन है
और भविष्य का भरोसा?
100% – BJP माला-माल रहेगी।
