November 22, 2025 12:34 am
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बिहार BJP को रोकेगा, मोदी सरकार को नोटिस भेजेगा, कुर्सी खाली करो

भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है — बिहार बिकता नहीं, लड़ेगा और बदलेगा। पढ़िए बेबाक भाषा की चुनावी रिपोर्ट।

“बिहार बिकता नहीं, बिहार लड़ेगा” — चुनावी संघर्ष में उतरे कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य और माले का नया एजेंडा

बिहार बिकता नहीं है, बिहार कभी ना बिका है, ना बिकेगा; बिहार लड़ेगा और जीत कर रहेगा।” — यह नारा सिर्फ़ एक चुनावी जुमला नहीं, बल्कि उस जनआंदोलन की गूंज है जो आज फिर बिहार के खेत-खलिहानों और गली-मोहल्लों से उठ रही है।
2025 के विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) यानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) एक बार फिर अपने सीमित संसाधनों के बावजूद जनता के असल मुद्दों को केंद्र में लाने की कोशिश में है।

इस बार माले 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है — पिछली विधानसभा में उसके 12 विधायक थे, और इस बार की लड़ाई को पार्टी एक “जनता बनाम बुलडोज़र” मुकाबले के रूप में देख रही है।
बेबाक भाषा की टीम ने माले महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य के साथ बिहार के चुनावी सफर में हिस्सा लिया — गांवों, कस्बों और सभाओं में जनता के मूड को समझने और यह जानने के लिए कि माले का फोकस किन मुद्दों पर है।

आंदोलन और गठबंधन का नया समीकरण

कॉमरेड दीपंकर कहते हैं —

“बिहार बदलाव चाहता है। 2020 में जनता ने जो संदेश दिया, वही अब और तेज़ रूप में दिख रहा है। हम चाहते हैं कि बिहार का गठबंधन अब और व्यापक राजनीतिक आकार ले — जो संविधान, लोकतंत्र और आज के दौर की फासीवादी चुनौतियों से सीधे टक्कर ले सके।”

उन्होंने बताया कि इस बार पार्टी का संकल्प पत्र जनता के आंदोलनों की मांगों पर आधारित है — मजदूर, किसान, महिला और छात्र आंदोलनों के स्थापित सवालों को माले ने अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया है।

‘बिहार एक मॉडल है संघर्ष का’

जब उनसे पूछा गया कि बिहार के लिए उनका सपना क्या है, तो दीपंकर ने कहा —

“बिहार हमारे लिए हमेशा एक मॉडल रहा है — जहां सबसे ज़्यादा शोषण है, वहीं सबसे ज़्यादा संघर्ष भी है। आज भी बिहार में सामंती जकड़न और कॉरपोरेट लूट दोनों जारी हैं। आधानी जैसे घराने यहां पैर पसार रहे हैं। इस लूट और उत्पीड़न के खिलाफ बिहार फिर खड़ा होगा।”

उनके मुताबिक, बिहार का संघर्ष केवल एक राज्य की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे देश को दिशा देने वाला आंदोलन है — जैसा कि आज़ादी के दौर में भी हुआ था।

जनता की आवाज़ और माले की भूमिका

हाल के चुनावी दौर में माले के कई उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं पर हमले हुए। दीपंकर ने कहा —

“कुछ दबंग ताकतें इस बात से बौखला गई हैं कि लाल झंडे वाले उम्मीदवार गरीबों के इलाकों में वोट मांगने जा रहे हैं। यह अपने आप में खतरनाक संकेत है।”

उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा कुछ इलाकों को ‘सेंसिटिव बूथ’ घोषित किए जाने पर सवाल उठाया।

“सेंसिटिव घोषित करने का मतलब है — वहां जनता को डराना, वोटिंग धीमी कर देना और गरीब तबके के लोगों को वोट डालने से रोकना। यह एक पैटर्न है जो पिछले चुनावों में भी देखा गया है।”

‘घर-घर मोदी’ नहीं, ‘घर-घर नौकरी’ की मांग

दीपंकर के मुताबिक, इस बार जनता का गुस्सा नारे बदल चुका है —

“लोग कह रहे हैं, ‘घर-घर मोदी’ से हुआ क्या? घर-घर गरीबी फैल गई, बेरोजगारी बढ़ गई। इस बार जनता कह रही है, ‘घर-घर नौकरी’। बिहार बदलाव के लिए करवट ले रहा है।”

उन्होंने बताया कि बिहार के कई इलाकों में वोटर लिस्ट से नाम काटे जाने (SIR प्रक्रिया) ने आम मतदाताओं में गहरा रोष पैदा किया है, और लोग अब इस लड़ाई को लोकतंत्र बचाने की लड़ाई मान रहे हैं।

‘बुलडोज़र बनाम बदलाव’ : चुनाव का असली मुद्दा

जब उनसे पूछा गया कि क्या यह चुनाव नीतीश बनाम मोदी है, उन्होंने कहा —

“यह बात अब पुरानी हो चुकी है। नीतीश जी की पार्टी पूरी तरह भाजपा के नियंत्रण में है। असल में यह चुनाव है भाजपा के बुलडोज़र बनाम बिहार के बदलाव का।”

दीपंकर का कहना है कि भाजपा बिहार को “अपनी जागीर” मानने लगी है, और जनता उसी मानसिकता के खिलाफ एकजुट हो रही है।

‘हर सीट चुनौती भी, संभावना भी’

माले 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
दीपंकर कहते हैं —

“हर सीट हमारे लिए चुनौती है, लेकिन हर सीट में संभावना भी है। इस बार बिहार के शहरों में भी हवा बदलती दिख रही है। पटना जैसे इलाकों में भी बदलाव की बयार है, जो पहले भाजपा के गढ़ माने जाते थे।”

जब पूछा गया कि इस बार का strike rate कैसा रहेगा, दीपंकर हंसते हुए बोले —

“पिछली बार हमारा strike rate सबसे अच्छा था, लेकिन सरकार नहीं बनी। इस बार हमारी ‘asking rate’ ज्यादा है — हमें पूरा बहुमत चाहिए। 150 सीटों के बिना बिहार नहीं बदलेगा।”

निष्कर्ष

कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य का यह चुनावी अभियान केवल सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि बिहार के लोकतांत्रिक भविष्य की जंग है।
“बिहार बिकता नहीं” — यह नारा आज सिर्फ़ एक राजनीतिक घोषणा नहीं, बल्कि उस विश्वास का प्रतीक है कि जब जनता जागती है, तो सत्ता की कोई दीवार उसे रोक नहीं सकती।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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