मोदी का जादू या मैनेजमेंट एक्सरसाइज़? बेगूसराय की रैली में दिन दहाड़े टॉर्च जलवाने का खेल
बिहार की धरती में सचमुच कुछ तो कमाल है। ऐसा कमाल कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को अपनी ही सभा में दोपहर के उजाले में भीड़ से मोबाइल की टॉर्च जलवानी पड़ गई। जब सूरज पूरी रौशनी बिखेर रहा था, उसी वक्त मोदी जी ने लोगों से कहा — “जरा मोबाइल निकालिए और इसकी लाइट जलाईए।”
और बस, पूरा मैदान सफेद रोशनी से भर गया — जैसे कोई जादू हुआ हो।
लेकिन यह ‘जादू’ दरअसल राजनीति और मैनेजमेंट का वह फॉर्मूला है, जो जनता से कनेक्ट होने के नाम पर चमक दिखाता है और सवालों को अंधेरे में छोड़ देता है। ऐसा बताया जाता है कि मोदी जी के भाषण लेखक और मैनेजमेंट गुरु चाहते हैं कि वे किसी एक्सरसाइज़ से भीड़ को ‘सीधे जोड़ें’। इस बार वही एक्सरसाइज़ थी — दिनदहाड़े टॉर्च जलवाना।
मोदी जी की ‘रोशनी’ और बिहार की हकीकत
बेगूसराय की रैली में यह दृश्य इसलिए दिलचस्प था क्योंकि यह 11 साल बाद हुआ, जब मोदी जी को अचानक बिहार की याद आई — और याद आई तो ‘मोबाइल टॉर्च’ के बहाने। 20 साल से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, और उनमें से 11 साल से खुद मोदी केंद्र में प्रधानमंत्री — लेकिन बिहार की धरती पर कोई ठोस उद्योग नहीं लगा।
फिर भी रैली में कहा गया — “हम सोच रहे हैं कि बिहार में इंडस्ट्री लगाएंगे।”
अब सवाल यही उठता है — 11 साल में क्या सोचना ही काम बन गया?
मोदी जी ने कांग्रेस के समय को कोसा, यह कहा कि “तब मोबाइल महंगे थे, अब सस्ते हो गए”, और बताया कि उनके राज में 200 मोबाइल कंपनियां काम कर रही हैं। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इनमें से एक भी कंपनी बिहार में क्यों नहीं है। बिहार का युवा आज भी बाहर जाकर मजदूरी कर रहा है। अगर यहां रोजगार होता, तो शायद मोदी जी को रोशनी के लिए मोबाइल नहीं, युवाओं के चेहरों की चमक मिलती।
भाषण में अंधेरा, मंच पर भी अंधेरा
विडंबना देखिए — जिस वक्त मोदी जी लोगों से टॉर्च जलवा रहे थे, उसी वक्त उनके मंच पर ही लाइट नहीं थी। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को कहना पड़ा — “भाई, मंच पर लाइट दो।”
यह दृश्य बिहार के विकास मॉडल का प्रतीक था — जहाँ चमक सिर्फ भाषणों में है, और ज़मीनी हकीकत में अंधेरा।
नीतीश का नाम, पर चेहरा नहीं
रैली में मोदी जी ने 20 साल पुराने ‘जंगल राज’ की याद दिलाई, लेकिन 11 साल के ‘डबल इंजन’ राज का एक भी ठोस काम नहीं गिनवा पाए।
सबको उम्मीद थी कि मोदी जी नितीश कुमार को NDA का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करेंगे — लेकिन उन्होंने यह नहीं किया। यह संकेत साफ है कि भाजपा अब नितीश पर भरोसा नहीं कर रही।
क्या इस बार “बीजेपी का अपना चेहरा” सामने आएगा?
अमित शाह के संकेत और मोदी जी की चुप्पी से यह संभावना मजबूत लगती है।
तेजस्वी के सवालों से बचते मोदी
रैली के उसी वक्त तेजस्वी यादव भी भाषण दे रहे थे। वे सीधे पूछ रहे थे —
“11 साल में मोदी जी, आपने बिहार को क्या दिया?”
यह सवाल सिर्फ विपक्षी नहीं, हर बिहारवासी का है।
क्योंकि बिहार में युवा बेरोजगार है, पेपर लीक के खिलाफ सड़कों पर है, और सरकारी नौकरियां ठेके पर बँट रही हैं।
मोदी जी ने युवाओं से कहा — “मेरी बात ध्यान से सुनो।”
लेकिन युवाओं के मन में सवाल है — “हम सुनें क्यों, जब आप हमारी नहीं सुनते?”
चुनावी ‘नफरत’ बनाम रोजगार का सवाल
बेगूसराय की रैली में मोदी, गिरिराज और सम्राट चौधरी की भाषा में विकास से ज़्यादा नफरत थी। मंच से “जंगल राज”, “चोर का बेटा”, “बुर्का गैंग” जैसे शब्द उछले।
और यही बताता है कि भाजपा के पास इस बार बिहार के लिए न कोई एजेंडा है, न विज़न — सिर्फ डर और भ्रम का खेल है।
जबकि इंडिया गठबंधन और तेजस्वी यादव की ओर से रोजगार, शिक्षा और सुरक्षा जैसे ठोस मुद्दे उठाए जा रहे हैं — जैसे हर घर से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने का वादा।
निष्कर्ष: रोशनी की राजनीति और अंधेरे का सच
बिहार में चुनावी रोशनी चमकाई जा रही है — पर उसके पीछे जो अंधेरा है, वह हर घर जानता है।
मोदी जी का यह ‘मोबाइल टॉर्च शो’ भले ही एक मैनेजमेंट एक्सरसाइज़ रही हो, लेकिन बिहार की जनता जानती है कि 2025 का चुनाव ‘रोशनी’ का नहीं, ‘हिसाब’ का चुनाव होगा।
और इस बार बिहार का युवा टॉर्च नहीं, वोट की ताकत से जवाब देगा।
