October 28, 2025 7:31 pm
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तेजस्वी के मुकाबले NDA से कौन? क्या नीतीश होंगे रेस से बाहर?

बिहार चुनाव में INDIA गठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर मोदी-नितीश के लिए नई मुश्किल खड़ी कर दी है। मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम बनाकर गठबंधन ने सामाजिक समीकरण भी साधने की कोशिश की है।

तेजस्वी की दो चालें और मोदी-नीतीश की मुश्किलें: बिहार चुनाव में INDIA गठबंधन की रणनीति

बिहार की सियासत में एक बार फिर से बड़ा मोड़ आया है। INDIA गठबंधन ने आखिरकार अपनी रणनीति का खुला ऐलान करते हुए यह साफ कर दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने डिप्टी सीएम के पद पर भी स्पष्टता लाते हुए यह घोषणा कर दी कि मुकेश सहनी एक उपमुख्यमंत्री होंगे, जबकि दूसरे डिप्टी सीएम के नाम का फैसला बाद में होगा।
इस घोषणा के साथ ही गठबंधन ने राजनीतिक गेंद NDA के पाले में उछाल दी है — अब सबकी निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ओर हैं।

INDIA गठबंधन की समय पर चाल

तेजस्वी यादव की उम्मीदवारी की घोषणा ऐसे वक्त पर आई है जब NDA की ओर से मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी “मेरा बूथ सबसे मजबूत” जैसे वर्चुअल अभियानों में व्यस्त हैं, पर बिहार की धरती पर उनका सबसे बड़ा सवाल यही होगा —
क्या बीजेपी खुद का मुख्यमंत्री चेहरा पेश करेगी या फिर एक बार फिर नीतीश कुमार पर दांव लगाएगी?

यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि NDA की तरफ़ से अब तक कोई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई है जिसमें नीतीश कुमार को साथ बैठाकर नेतृत्व की पुष्टि की गई हो। इसके उलट, INDIA गठबंधन ने पूरी एकजुटता दिखाते हुए तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया।

नीतीश कुमार की ‘गरिमा’ और NDA की असहजता

तेजस्वी यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस सधे हुए तरीके से NDA पर सवाल दागे, उसमें उन्होंने नीतीश कुमार की “गरिमा” का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने पूछा —

“जब अमित शाह बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव के बाद तय होगा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, तो क्या यह नीतीश जी के प्रति अपमान नहीं है?”

तेजस्वी का यह हमला सीधा था — उन्होंने न सिर्फ अपने नेतृत्व को पुख्ता किया बल्कि बीजेपी की आंतरिक उलझन को सार्वजनिक कर दिया।
दरअसल, NDA की असली मुश्किल यह है कि बिहार में बीजेपी के पास कोई मजबूत स्थानीय चेहरा नहीं है।
और यही वह जगह है जहां INDIA गठबंधन ने अपनी चाल चल दी।

रणनीतिक संकेत: मुकेश सहनी की वापसी

मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पद के लिए घोषित करना सिर्फ़ एक राजनीतिक पदोन्नति नहीं है, यह एक सामाजिक संदेश भी है।
यह कदम उस “निषाद वोट बैंक” को साधने की कोशिश है जिसे पिछली बार बीजेपी ने तोड़ने की कोशिश की थी।
याद रहे, सहनी के विधायक दल को बीजेपी ने ही तोड़ा था, और अब तेजस्वी ने उन्हें फिर से मंच पर लाकर एक प्रतीकात्मक संदेश दिया है —
“आपको धोखा देने वालों ने नहीं, आपको पहचान देने वाले हम हैं।”

तेजस्वी का दोहरा वार: राजनीतिक और वैचारिक

तेजस्वी यादव ने मोदी-शाह पर सिर्फ़ राजनीतिक नहीं बल्कि वैचारिक चुनौती भी उछाली। उन्होंने कहा —

“किसी माई के लाल में दम नहीं है जो संविधान को छू सके या बदल सके।”
“किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं कि बिहार में हिंदू-मुसलमान के नाम पर दंगा करा सके।”

यह वक्तव्य दरअसल बिहार की उस राजनीति की पुनर्पुष्टि है जिसने मंडल युग से लेकर आज तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को कभी निर्णायक नहीं बनने दिया। तेजस्वी ने यह साफ कर दिया कि बिहार की राजनीति विकास, रोजगार और सामाजिक न्याय के सवालों पर लड़ी जाएगी, न कि नफरत के नारों पर।

NDA का विज़न बनाम INDIA का एजेंडा

तेजस्वी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी चुनौती दी कि बीजेपी और उसके सहयोगी दल यह बताएं कि 20 साल की सरकार के बाद उनका विज़न क्या है?
क्योंकि अभी तक मोदी, नीतीश, अमित शाह या चिराग पासवान — किसी ने भी यह नहीं बताया कि अगर फिर से सत्ता मिली तो बिहार के लिए नया एजेंडा क्या होगा।

इसके विपरीत, तेजस्वी यादव ने खुद याद दिलाया कि उपमुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 5 लाख नौकरियां दीं, जातिगत जनगणना करवाई, और आरक्षण की सीमा बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू की थी।
उन्होंने यह भी कहा कि इस बार अगर सत्ता में लौटे तो हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने की दिशा में ठोस योजना बनाएंगे।

चुनाव से पहले की ‘रिश्वत’ और जन असंतोष

तेजस्वी ने सीधा सवाल उठाया —

“अगर जनता खुश है तो फिर 75 लाख महिलाओं के खाते में चुनाव से पहले 10-10 हजार रुपये डालने की जरूरत क्यों पड़ी?”

वह यह इशारा कर रहे थे कि बिहार में सत्ताधारी दल ने कैश ट्रांसफर स्कीमों के ज़रिए वोट खरीदने की कोशिश की, लेकिन इससे जन असंतोष और बढ़ गया।
बीजेपी के तमाम प्रयासों के बावजूद बिहार की धरती पर जनता के असली सवाल — रोजगार, शिक्षा, भ्रष्टाचार और बुनियादी ढांचा — अब भी कायम हैं।

बिहार बनाम महाराष्ट्र मॉडल

कार्यक्रम के दौरान यह तुलना भी की गई कि क्या बिहार में बीजेपी वही दोहरा सकती है जो उसने महाराष्ट्र में किया —
जहां एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के जरिए सत्ता पलट कर दी गई थी।
लेकिन बिहार का राजनीतिक स्वभाव अलग है — यहां जनता पलटी मारने वाले नेताओं को जल्दी माफ नहीं करती।
तेजस्वी यादव ने इसी सूझबूझ के साथ कहा,

“यह बिहार है मोदी जी, यह अलग राज्य है — यहां राजनीति इज्जत और पहचान की लड़ाई है।”

INDIA गठबंधन का संदेश साफ़

आज के हालात में INDIA गठबंधन ने NDA से दो कदम आगे की राजनीति की है।
एक — मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का चेहरा तय कर,
और दूसरा — सामाजिक न्याय के एजेंडे को चुनाव के केंद्र में रखकर

इससे बिहार के चुनाव का नैरेटिव पूरी तरह बदल गया है।
अब मैदान में सवाल यह नहीं रह गया कि तेजस्वी क्या करेंगे —
बल्कि सवाल यह है कि मोदी-शाह और नीतीश अब कैसे जवाब देंगे।

🧭 निष्कर्ष

तेजस्वी यादव ने इस चुनाव को सिर्फ़ एक गठबंधन की रणनीति नहीं, बल्कि एक वैचारिक टकराव में बदल दिया है।
उन्होंने बिहार की मिट्टी से निकले उस आत्मविश्वास को फिर से जगाने की कोशिश की है जिसने हमेशा दिल्ली के फरमानों के आगे सिर नहीं झुकाया।
अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री मोदी बिहार की धरती से जब वोट मांगेंगे,
तो क्या वे किसी चेहरे के नाम पर मांगेंगे या सिर्फ़ अपने नाम पर।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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