कौन तय कर रहा है भारत की विदेश नीति? मोदी-ट्रंप की ‘तेल डील’ पर गंभीर सवाल
ट्रंप का दावा कि “मोदी ने रूस से तेल न खरीदने का वादा किया” — अगर सच है तो भारत की संप्रभुता पर सीधा हमला, और अगर झूठ है तो प्रधानमंत्री की चुप्पी क्यों?
“नमस्ते ट्रंप” कहने वाले और “Old Friend, New Friend” कहे जाने वाले नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के रिश्ते पर एक बार फिर बड़ा राजनीतिक सवाल खड़ा हुआ है।
ट्रंप ने हाल ही में मीडिया के सामने यह दावा किया कि 15 अक्टूबर को उनकी प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बातचीत हुई, जिसमें मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा।
यह बयान सिर्फ एक दोस्ताना टिप्पणी नहीं है — यह भारत की विदेश नीति, उसकी स्वायत्तता और संप्रभुता पर गहरी चोट करने वाला बयान है।
ट्रंप न सिर्फ तारीख तक बताते हैं, बल्कि यह भी कहते हैं कि उन्होंने मोदी को चेताया कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखता है तो “मैं उनका राजनीतिक करियर तबाह कर दूँगा।”
किसने दी ट्रंप को इतनी हिम्मत?
यह सवाल सिर्फ विपक्ष का नहीं, बल्कि हर भारतीय नागरिक का होना चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति को इतनी हिम्मत किसने दी कि वह भारत के प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से धमकी दे सके?
क्या यह भारत के गौरव और संप्रभुता पर हमला नहीं है?
और अगर ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं, तो फिर प्रधानमंत्री मोदी चुप क्यों हैं?
क्यों नहीं उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि — “ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं, भारत अपनी विदेश नीति खुद तय करता है।”
मोदी की चुप्पी: रणनीति या मजबूरी?
विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया और भी उलझाने वाली रही। मंत्रालय ने कहा कि “ऐसी किसी बातचीत की जानकारी नहीं है।”
ध्यान दीजिए — उन्होंने यह नहीं कहा कि “ऐसी कोई बातचीत हुई ही नहीं” या “ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं।”
यानी जवाब अस्पष्ट है, जिससे यह शक और गहराता है कि कहीं कुछ तो हुआ है।
मोदी सरकार की चुप्पी उस समय और खटकती है जब ट्रम्प लगातार भारत को आर्थिक झटका देते रहे हैं —
रूस से तेल खरीदने पर 25% टैरिफ लगाना, भारतीय उत्पादों पर 50% तक शुल्क बढ़ाना, और फिर भी मोदी सरकार की ओर से “ट्रम्प जी ग्रेट हैं” जैसी बयानबाजी जारी रहना — ये सब संकेत देते हैं कि कहीं न कहीं “जफ्फी की दोस्ती” ने नीति की रीढ़ तोड़ दी है।
रूस से तेल और भारत का हित
सवाल यह भी है कि अगर सचमुच मोदी सरकार ने रूस से तेल खरीदना बंद करने की कोई डील की है, तो इससे किसका नुकसान हुआ और किसका फायदा?
सस्ता तेल आने के बावजूद आम जनता को राहत नहीं मिली — पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें आसमान पर हैं।
फायदा किसे मिला? ट्रम्प ने खुद कहा कि इसका लाभ मोदी के “परम मित्र” उद्योगपतियों को हुआ।
यह एक और सवाल है जिसे बेबाकी से पूछा जाना चाहिए — क्या विदेश नीति भी अब कॉर्पोरेट हितों की मोहताज हो गई है?
‘I don’t want to destroy his political career’ — अपमान या चेतावनी?
ट्रंप का यह वाक्य — “मैं मोदी का राजनीतिक करियर बर्बाद नहीं करना चाहता” —
सिर्फ राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र पर एक धमकी है।
किसी विदेशी नेता को यह अधिकार नहीं कि वह भारत के प्रधानमंत्री या भारत के वोटरों के फैसले पर टिप्पणी करे।
लेकिन यह अपमान जब खुले मंच पर हुआ, तो ना सरकार बोली, ना विदेश मंत्री, ना भक्त।
कांग्रेस और विपक्ष का रुख
कांग्रेस ने ट्रम्प के बयान पर कड़ा विरोध दर्ज किया है।
राहुल गांधी ने कहा —
“प्रधानमंत्री मोदी ट्रम्प से डरते हैं, उन्हें यह तय करने देते हैं कि भारत क्या करेगा और क्या नहीं।”
कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया कि आखिर मोदी ने अब तक एक ट्वीट तक क्यों नहीं किया ट्रम्प के इस अपमानजनक बयान पर?
बेबाक सवाल
बेबाक भाषा के इस मंच पर हम यह साफ़ पूछ रहे हैं —
क्या भारत की विदेश नीति अब ट्रम्प के “फोन कॉल्स” से तय होगी?
क्या मोदी सरकार इतनी कमजोर हो चुकी है कि अमेरिका की हर बात माननी पड़े?
और अगर नहीं — तो देश के 140 करोड़ नागरिकों के सामने प्रधानमंत्री क्यों नहीं आते,
क्यों नहीं बताते कि 15 अक्टूबर को हुई उस बातचीत में क्या सचमुच कोई डील हुई?
अंतिम बात
यह सवाल किसी पार्टी या नेता का नहीं, यह सवाल भारत की संप्रभुता का है।
अगर ट्रम्प सच बोल रहे हैं, तो यह हमारी आज़ादी पर धब्बा है।
अगर ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं, तो मोदी की चुप्पी उतनी ही खतरनाक है।
देश के प्रधानमंत्री से यह उम्मीद की जाती है कि वह न केवल अपने भक्तों बल्कि पूरे देश के प्रति जवाबदेह हों।
मोदी जी, यह “मन की बात” का वक्त नहीं — “जन की बात” सुनने और जवाब देने का वक्त है।