October 12, 2025 2:10 am
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एक व्यवस्था जो दलितों को न्याय देने में नाकाम

हरियाणा में दलित IPS अधिकारी पूरण कुमार की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नी, IAS अमन नीत ने न्याय की माँग करते हुए पोस्टमॉर्टम और अंतिम संस्कार रोक दिया। जानिए क्या है आरोप और क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

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हरियाणा में एक दलित IPS अधिकारी पूरण कुमार की आत्महत्या ने देश भर में सवाल खड़े कर दिए हैं — न सिर्फ उनके प्रति होने वाले प्रताड़ना के कारण, बल्कि उस तंत्र की चुप्पी और देरी के कारण जो उसके परिवार को न्याय दिलाने में विफल दिखा। उनकी पत्नी, एक वरिष्ठ IAS अधिकारी अमन नीत ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि वे अपने पति का पोस्टमॉर्टम और अंतिम संस्कार तब तक नहीं कराएँगी जब तक जिन अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है, उन पर कार्रवाई नहीं होती।

देश के संवैधानिक तंत्र और ‘सशक्त शासन’ के दावे के बीच यह मामला बड़ी गूंज छोड़ता है। यदि एक IPS अधिकारी — जो खुद पुलिस तंत्र का अंग था — अंततः आत्महत्या के लिए मजबूर हो सकता है, तो दलित समुदाय और आम नागरिकों के लिए न्याय की उम्मीद कितनी सुरक्षित रह जाती है?

घटना का संक्षेप

  • पीड़ित: IPS अधिकारी पूरण कुमार (दलित समाज से आवेदन)।
  • प्रभावित: उनकी पत्नी, वरिष्ठ IAS अधिकारी अमन नीत, जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर कठोर आरोप लगाए और सत्य की मांग की।
  • मुख्य मांग: अमन नीत ने घोषणा की कि वे पोस्टमॉर्टम और अंतिम संस्कार तब तक नहीं कराएँगी जब तक उन अधिकारियों के खिलाफ जिनके खिलाफ FIR दर्ज है, कार्रवाई नहीं होती।
  • आरोप का केंद्र: परिवार ने बताया कि पुलिस और प्रशासकीय तंत्र द्वारा लगातार प्रताड़ना और पक्षपात किया गया। इस प्रताड़ना के पीछे जातीय उत्पीड़न का आरोप लगाया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु और विश्लेषण

1) न्याय तंत्र की विफलता — व्यक्तिगत से सार्वजनिक

यह मामला दर्शाता है कि जब सिस्टम के अंदरूनी अंगों तक पर शक उठते हैं, तो सार्वजनिक विश्वास धक्का खाता है। एक IPS अधिकारी का खुदकुशी के स्तर तक पहुँचना न केवल व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि सिस्टमिक विफलता का संकेत भी है।

2) जातीय उत्पीड़न और संस्थागत पक्षपात

आरोप यह है कि दलित होने के कारण पीड़ित अधिकारी को टारगेट किया गया और न्याय तक उसकी पहुँच बाधित रही। यदि यह साबित होता है, तो यह सिर्फ एक घटना नहीं — बल्कि संरचनात्मक भेदभाव का उदाहरण होगा।

3) शासकीय मूकदर्शिता और राजनीतिक संदेश

यह भी सवाल उठता है कि सत्ता और मीडिया किन बातों पर चुप हैं — और किन घटनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। जब उच्च पदाधिकारी तक का सम्मान और सुरक्षा सवालों के घेरे में आ जाए, तो आम नागरिकों के लिए सुरक्षा की भावना कितनी मजबूत रहती है?

4) जनहित की कॉल — परिवार की हिम्मत

अमन नीत जैसी वरिष्ठ अफसर का सार्वजनिक बयान और अंतिम संस्कार रोकने की घोषणा एक साहसिक कदम है — यह परिवार की पीड़ा और न्याय की तीव्र मांग का प्रतीक है।

क्या पूछा जाना चाहिए

  • क्या पूरण कुमार को होने वाली प्रताड़ना की स्वीकृत जांच और फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया हो रही है?
  • जिन अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज है — उन पर किन आरोपों की जांच हो रही है और कार्रवाई की क्या प्रगति है?
  • राज्य प्रशासन और केंद्र सरकार इस मामले पर क्या कदम उठा रहे हैं?
  • क्या पीड़ित परिवार को सुरक्षा और मुआवजा दिया गया?

निष्कर्ष

यह एक ऐसी घटना है जो सिर्फ व्यक्तिगत त्रासदी तक सीमित नहीं रहनी चाहिए — यह हमारे पूरे न्याय और प्रशासनिक तंत्र पर एक आईना है। जब नागरिकों और अफसरों दोनों तक न्याय का भरोसा कम हो, तब लोकतंत्र ही जोखिम में आता है। इस मुद्दे की पारदर्शी, निष्पक्ष और त्वरित जांच जरूरी है — और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई ही सच्चा संदेश दे सकती है कि किसी भी नागरिक के साथ अन्याय सहन नहीं किया जाएगा।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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