October 20, 2025 2:05 am
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खाते में आई रकम को भुलाकर क्या नीतीश के खिलाफ वोट देंगी महिलाएं!

बिहार चुनाव 2025 में डुमरांव से लेकर पटना तक चर्चा है — क्या नितीश-मोदी की 10 हजार रुपये वाली महिला योजना NDA के लिए गेमचेंजर बनेगी? पढ़िए डुमरांव के ग्राउंड रिपोर्ट से जातीय समीकरण, माले की रणनीति और जनता के मूड का पूरा विश्लेषण।

🗳️ बिहार चुनाव 2025: क्या महिलाओं को 10,000 रुपये देने की योजना बनेगी NDA का गेमचेंजर?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल गर्म है। पटना से लेकर डुमरांव तक हर जगह एक ही सवाल गूंज रहा है — क्या नितीश कुमार और नरेंद्र मोदी की जोड़ी फिर से कमाल दिखा पाएगी?
सरकार द्वारा एक करोड़ 21 लाख महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये डालने की योजना ने सियासी हलचल बढ़ा दी है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह योजना नितीश सरकार के खिलाफ महिलाओं के गुस्से को कम कर पाएगी?

🔸 डुमरांव विधानसभा का समीकरण

हमारी ग्राउंड रिपोर्ट डुमरांव विधानसभा क्षेत्र के चौगाईं गांव से है। यहां जातीय और राजनीतिक समीकरण दोनों ही दिलचस्प हैं।
नितीश कुमार की पार्टी जेडीयू की पकड़ कमजोर होती दिख रही है, जबकि बीजेपी अपने पारंपरिक वोट बैंक को साधने में जुटी है। इस इलाके में कुर्मी, दलित और पिछड़ी जातियों का बड़ा प्रभाव है — जिन पर बीजेपी और आरएसएस लगातार काम कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जेडीयू और बीजेपी के पास ऊंची जातियों का समर्थन है, परंतु पिछड़ी जातियों और महिलाओं में नाराज़गी भी कम नहीं है।

🔸 NDA में असंतोष और दलित नेतृत्व की स्थिति

NDA के अंदर भी असंतोष दिखाई देता है। दलित नेताओं — चिराग पासवान और जीतन राम मांझी — की भूमिका अब सीमित कर दी गई है। मोदी सरकार ने दोनों को “कट टू साइज” कर दिया है, और अब वे उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं जितनी दी जा रही हैं।
यह असंतुलन दलित वोटों को प्रभावित कर सकता है।

🔸 माले के अजीत कुशवाहा फिर मैदान में

डुमरांव सीट से भाकपा-माले के अजीत कुशवाहा एक बार फिर उम्मीदवार हैं। पिछली बार उन्होंने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था। इस बार INDIA गठबंधन में माले को 19 सीटें मिली हैं, जिनमें डुमरांव भी शामिल है।
अजीत कुशवाहा स्थानीय स्तर पर मजबूत माने जाते हैं और जातीय समीकरणों के लिहाज से भी उन्हें बढ़त मानी जा रही है।

🔸 क्या बीजेपी “हिंदू-मुसलमान” कार्ड खेलेगी?

चुनावों के दौरान यह भी देखा जा रहा है कि बीजेपी एक बार फिर “हिंदू-मुसलमान” ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा देने की कोशिश में है। सवाल यह है कि क्या इस बार जनता इस कार्ड को स्वीकार करेगी या रोजगार, शिक्षा और भ्रष्टाचार जैसे असली मुद्दों पर वोट करेगी?

वहीं INDIA गठबंधन जनता के बीच सुशासन और भरोसे की बात कर रहा है। विपक्ष का दावा है कि वह “सर फुटवल नहीं, सुशासन” देने का वादा कर रहा है।

🔸 “जंगलराज” बनाम “सुशासन” की बहस

एनडीए के पास फिलहाल एक ही प्रमुख चुनावी एजेंडा है — “जंगलराज का डर”। बीजेपी और जेडीयू कार्यकर्ता जगह-जगह जाकर कहते हैं कि वे 20 साल पुराने लालू राज को वापस नहीं आने देंगे।
लेकिन इस बार के युवा मतदाता इस मुद्दे से उतने प्रभावित नहीं दिख रहे। कई युवा खुलकर कह रहे हैं कि उन्हें मौजूदा सरकार से कोई उम्मीद नहीं है।

🔸 जनता का मूड क्या कहता है?

डुमरांव से लेकर पूरे शाहाबाद इलाके में जनता का मूड अभी बदलता हुआ दिख रहा है। जाति, धर्म और नकद लाभ के बीच असली मुद्दा अब “भरोसे और सुशासन” का बनता जा रहा है।
महिलाएं इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि 10 हजार रुपये वाली योजना कितनी दूर तक NDA को फायदा पहुंचा पाती है।

📊 निष्कर्ष

बिहार चुनाव 2025 का मुकाबला बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। नीतीश-मोदी की जोड़ी के सामने चुनौती यह है कि वे जनता के भरोसे को फिर से कैसे जीतें।
वहीं INDIA गठबंधन यह साबित करने की कोशिश में है कि बिहार अब “जंगलराज बनाम सुशासन” की बहस से आगे निकल चुका है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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