कतर पर हवाई हमला करके इज़रायल ने बता दिया कि दुनिया उसके पैरों तले है
इस बार इज़रायल ने कतर के अंदर घुसकर हवाई हमला किया — और परिणाम जानलेवा रहा। दोहा की राजधानी में हुए इस हमले में कम से कम छह लोगों की मौत हुई। जिनमें से पाँच का नाता हमास से बताया जा रहा है — वे वे लोग जिनके साथ कुछ अहम बातचीत और नेगोशिएशन चल रहे थे। यह हमले के समय फिलिस्तीन में एक संवेदनशील सीज़फायर बातचीत चल रही थी, जिसे किसी भी तरह से बाधित या तहस-नहस करना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर परिणाम खड़े करता है।
हमारा सवाल सीधे है: क्या यह हमला स्वतंत्र निर्णय था या इसकी परछाईं अमेरिका के बड़े राजनीतिक खेल पर भी है? ट्रम्प के हालिया बयानों ने इस संदेह को और गहरा कर दिया — उन्होंने एक तरह से स्वीकार किया कि उन्हें इस तरह की किसी कार्रवाई की जानकारी थी। इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया है कि जब पावर पॉलिटिक्स और उग्र सैन्य रणनीति हाथ में आ जाएं, तो अंतरराष्ट्रीय कानून और सार्वभौमिक संप्रभुता का कोई मोल नहीं रह जाता।
हमले का राजनीतिक व कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य
कतर, जो मिडल ईस्ट में अमेरिकी साझेदार और सैन्य ठहराव के रूप में जाना जाता है, पर इस तरह का हमला यह संदेश देता है कि अब परंपरागत अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नियमों को ताक पर रखा जा सकता है। उस क्षेत्रीय सियासी ताने-बाने में इज़रायल और अमेरिका की जो नज़दीकी दिखाई देती है, वही इस हमले के पीछे काम करने वाली रणनीतिक सोच को दर्शाती है — यानी ज़रूरत पड़ने पर किसी भी तरह की सर्जिकल या अनिलैटेरल कार्रवाई को जायज ठहराना।
इंटरनेशनल प्रतिक्रिया मिश्रित रही — सऊदी, तुर्की और ईरान ने इस घटना पर आपत्ति जताई, जबकि पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया तुलनात्मक रूप से धीमी और नरम दिखी। यह फर्क सिर्फ कूटनीतिक नाप-तौल नहीं, बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मानव जीवन के प्रति वैचारिक प्राथमिकताओं का भी आइना है।
हत्याओं का औचित्य और नैतिक प्रश्न
इजराइल और उसके नेतृत्व की भाषा — जिसमें खुलेआम हिंसा के विकल्प और धमकी शामिल है — यह दर्शाती है कि हिंसा को “शांति” के नाम पर जायज ठहराने की प्रवृत्ति बढ़ी है। क्या इतना खून बहा कर कोई स्थायी शांति स्थापित की जा सकती है? इतिहास और मानवीय संवेदना दोनों इसे नकारते हैं। फिलिस्तीन के लोगों पर लगातार हो रहे टैक्टिकल हमलों से केवल विनाश ही फैलता है, और इससे न केवल क्षेत्रीय तनाव बढ़ता है बल्कि वैश्विक शांति भी दांव पर लग जाती है।
क्षेत्रीय असर और भारत के लिए निहितार्थ
यह घटना न केवल मिडिल ईस्ट तक सीमित नहीं रहेगी। चीन और ईरान की कड़ी चेतावनियों से स्पष्ट है कि ऐसी कार्रवाइयों का व्यापक प्रभाव पड़ेगा। भारत जैसे पड़ोसी और क्षेत्रीय हितधारकों के लिए यह जरूरी है कि वे स्थिति को सूक्ष्मता से परखें — क्योंकि अंतरराष्ट्रीय नियमों की उपेक्षा और बड़ी शक्तियों की एकतरफा कार्रवाइयाँ वैश्विक नीति पर नए अस्थिर पहलू जोड़ती हैं।
नतीजा: अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर बड़ा झटका
कतर पर इस तरह का हमला इस बात का संकेत है कि कुछ शक्तियाँ अब खुलेआम अंतरराष्ट्रीय कानून और संप्रभुता की सीमाओं को चुनौती दे रही हैं। जब हत्याएँ और सर्जिकल हमले “शांति” के नाम पर किए जाएँ और उनके पीछे बड़े राजनीतिक संरक्षक हों, तो वैश्विक व्यवस्था की बुनियाद पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। हमें यह स्पष्ट करना होगा कि शांति का रास्ता रक्तरंजित दादागिरी से नहीं, बातचीत और अंतरराष्ट्रीय अधिकारों के सम्मान से गुजरता है।