November 22, 2025 12:17 am
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राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ बम और बिहार चुनाव का बदलता मोर्चा

बिहार चुनाव में राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाकर भाजपा और चुनाव आयोग को घेरा है। तेजस्वी यादव की रैलियों की भीड़, मोदी के महिला मतदाता कार्ड और ‘डबल वोटिंग’ विवाद ने राज्य का चुनावी समीकरण पलट दिया है।

महिला मतदाताओं की कितनी होगी निर्णायक भूमिका नई सरकार बनाने में

बिहार की राजनीति हर दिन एक नया मोड़ ले रही है — कभी पलटी मारती, कभी अपना रास्ता बदलती हुई। इस बार चुनावी समर के बीच राहुल गांधी ने एक ऐसा “H-बम” फोड़ा है, जिसने पूरे बिहार के राजनीतिक माहौल को झकझोर दिया है — यह बम है ‘वोट चोरी’ का।

राहुल गांधी ने अपने भाषणों में जिस तीखेपन से चुनाव आयोग और मोदी सरकार पर वोट चोरी के आरोप लगाए हैं, उसने बिहार की गलियों से लेकर दिल्ली के गलियारों तक बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक चुनावी गड़बड़ी नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर हमला है — एक ऐसा संगठित तंत्र जो मतदाताओं की मर्जी को चुरा रहा है।

वोट चोरी बनाम वोट बदलाव

राहुल गांधी की सभाओं में अब यह मुद्दा केंद्र में है — कि “वोट चोरी सरकार चोरी” बन गई है। वह बार-बार यह कह रहे हैं कि मोदी तंत्र और चुनाव आयोग (जिसे वे व्यंग्य में “केचुआ” यानी ECI का शॉर्ट फॉर्म कहते हैं) मिलकर चुनाव को एकतरफा बना रहे हैं।

इधर तेजस्वी यादव भी जनता के मूड को समझते हुए लगातार कह रहे हैं कि “बिहार का मतदाता जाग गया है” — और यही जागरण इस बार सत्ता परिवर्तन का संकेत हो सकता है।

वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि “ज्यादा मतदान परिवर्तन नहीं, भाजपा के समर्थन का संकेत है।” यानि अब ज्यादा वोटिंग को भी बीजेपी अपने पक्ष में गिन रही है। सवाल उठता है — क्या यह आत्मविश्वास है या पहले से तय ‘मैनेजमेंट’?

राकेश सिन्हा से लेकर चुनाव आयोग तक: सब पर सवाल

कार्यक्रम में यह खुलासा भी हुआ कि दिल्ली के भाजपा सांसद राकेश सिन्हा, जो RSS के कोटे से बीजेपी में आए हैं, दिल्ली में वोट डालने के बाद बिहार में भी मतदाता सूची में दर्ज पाए गए। यह मामला जब सामने आया, तो सोशल मीडिया पर भाजपा के “डबल वोट” का प्रतीक बन गया।

आम आदमी पार्टी और विपक्ष ने चुनाव आयोग से सवाल किया — एक व्यक्ति दो जगह वोटर कैसे हो सकता है? लेकिन आयोग की चुप्पी पर राहुल गांधी ने निशाना साधा, कहते हुए कि “यही है केचुआ का खेल”।

महिलाएं और वोट: 10 हजार रुपये की ‘डायरेक्ट डील’?

मोदी जी की सभाओं में इस बार बार-बार ‘नारी शक्ति’ का जिक्र है। उन्होंने कहा कि बिहार की महिलाएं भाजपा को आशीर्वाद दे रही हैं, क्योंकि उन्हें 10,000 रुपये की डायरेक्ट ट्रांसफर स्कीम से फायदा मिला है।

लेकिन ज़मीनी रिपोर्टिंग बता रही है कि कई महिलाएं कह रही हैं —

“हमें नौकरी चाहिए, फैक्ट्री चाहिए, पलायन रुकना चाहिए — सिर्फ दस हजार रुपये नहीं।”

यह वही महिला वोटर है जिसने पहले नीतीश कुमार को समर्थन दिया था, पर अब ठगी महसूस कर रही है। तेजस्वी यादव ने इसी वर्ग को साधते हुए 30,000 रुपये की जीविका सहायता और रोजगार योजना का वादा किया है।

जंगलराज, ध्रुवीकरण और वोट चोरी का असली समीकरण

मोदी जी हर चुनाव में “जंगलराज” का कार्ड खेलते हैं — लेकिन इस बार विरोधियों का तर्क है कि गुंडाराज अब सत्ता के भीतर है। मुकामा में जेडीयू प्रत्याशी ललन सिंह के समर्थकों पर हिंसा के आरोप लगे, और विपक्ष कह रहा है कि यह है “जंगलराज संस्करण 2.0” — जिसे खुद भाजपा और जेडीयू चला रहे हैं।

ध्रुवीकरण की कोशिशें भी जारी हैं — असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने राहुल गांधी को लेकर अपमानजनक बयान दिए, तो केंद्र के मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उन्हें “झूठ का स्टार्टअप” बताया। मगर सवाल वही:

क्या ब्राज़ील मॉडल जैसी वोटिंग गड़बड़ियों पर कोई जवाब देगा?

तेजस्वी बनाम मोदी: भीड़ और वोट का फर्क

तेजस्वी यादव की सभाओं में भारी भीड़ दिख रही है — जोशीली, गुस्से में और उम्मीद से भरी। वहीं मोदी की सभाएं भीड़ से तो भरी हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है — “भाड़े की भीड़ और बसों की भराई से।”
अब असली सवाल है — क्या यह भीड़ वोट में तब्दील होगी?

2024 के लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही जोश था, लेकिन नतीजा वैसा नहीं आया। इस बार तेजस्वी के लिए चुनौती वही है — भीड़ को वोट में बदलना।

लोकतंत्र बनाम चुनाव प्रबंधन

राहुल गांधी ने जब वोट चोरी को चुनावी मुद्दा बनाया, तो मोदी सरकार और बीजेपी ने इसे “हार की हताशा” कहा। लेकिन यह सच है कि हरियाणा में 25 लाख वोट हटाने का आरोप, दोहरी वोटिंग के सबूत, और बिहार में हटाए गए 62 लाख वोट — ये सब लोकतंत्र के स्वास्थ्य पर सवाल हैं।

जनता अब पूछ रही है:

क्या हर बार “ज्यादा वोटिंग” को “भाजपा के पक्ष में” बताने का खेल सिर्फ एक भ्रम है?
क्या लोकतंत्र अब सिर्फ “डिजिटल सेटिंग” का दूसरा नाम बन गया है?

बिहार की औरतें कह रही हैं: “हमें काम चाहिए, न कि चुनावी रिश्वत”

बिहार के गांवों से आई आवाजें सबसे ज्यादा साफ हैं। महिलाएं कह रही हैं कि

“पाँच लाख में घर नहीं बनता, नाली नहीं बनती, नौकरी नहीं मिलती — हमें झोपड़ी नहीं, सम्मान चाहिए।”

मोदी सरकार का “महिला सशक्तिकरण” नारा अब उन्हीं महिलाओं से सवाल झेल रहा है — जिनसे 10,000 रुपये के नाम पर वोट मांगा जा रहा है।

निष्कर्ष

बिहार में इस बार का चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, मतदान की ईमानदारी का इम्तिहान बन गया है।
राहुल गांधी का ‘वोट चोरी वाला H-बम’ भले ही भाजपा के लिए परेशानी बने या न बने, पर उसने यह सवाल जरूर जगा दिया है —

“क्या इस देश का वोट अब भी जनता के पास है, या किसी ‘सिस्टम’ के कंट्रोल में चला गया है?”

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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