नीति आयोग और NCRB के आंकड़ों में सच्चाई: 20 साल के ‘सुशासन’ के बाद भी क्यों राज्य सबसे निचले पायदान पर?
जैसे एक पुरानी कहावत है कि “सारे रास्ते रोम की ओर जाते हैं”, आज की राजनीति में कहा जा सकता है — “सारी ट्रेनें बिहार की ओर जा रही हैं”। कारण साफ़ है: बिहार में चुनाव हैं।
लेकिन चुनाव हों या छुट्टियाँ, बिहार आने-जाने वाली ट्रेनों की भीड़, इस राज्य के विकास की कहानी भी बयां करती है।
जैसे लोग ट्रेन के दरवाज़ों और पैदानों पर लटकते हैं, वैसे ही विकास की ट्रेन में बिहार निचले पायदान पर लटका हुआ है — और अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश के साथ ट्रेन की छत पर चढ़ा बैठा है।
फिर भी यह सब कुछ चुनावी मुद्दा नहीं बनता। यही कारण है कि बेबाक भाषा इस कार्यक्रम में दो आईने लेकर आई है —
एक नीति आयोग की रिपोर्ट और दूसरा NCRB की रिपोर्ट,
ताकि दावों और वादों के बीच बिहार की हकीकत दिखाई जा सके।
🔹 विकास का आईना: नीति आयोग की रिपोर्ट
नीति आयोग, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग की जगह स्थापित किया था, हर साल राज्यों के Sustainable Development Goals (SDG) Index जारी करता है।
इसमें गरीबी, भूख, शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, आर्थिक वृद्धि, और न्याय जैसी 16 श्रेणियों के सूचकांकों पर राज्यों का मूल्यांकन होता है।
2023–24 की रिपोर्ट बताती है कि:
- केरल और उत्तराखंड ने 89-89 अंकों के साथ सबसे बेहतर प्रदर्शन किया।
- जबकि बिहार सिर्फ़ 57 अंक लेकर सबसे नीचे यानी 28वें स्थान पर है।
झारखंड भी बिहार से ऊपर (62 अंक) है।
गरीबी और कुपोषण:
- बिहार में बहुआयामी गरीबी (MPI) 33.76% है — देश में सबसे अधिक।
- 5 साल से कम उम्र के 41% बच्चे कम वज़न के और 42.9% बच्चे कुपोषित हैं।
- 63% गर्भवती महिलाएं एनीमिक हैं, यानी शरीर में खून की भारी कमी है।
- 11% परिवार अभी भी कच्चे मकानों में रहते हैं।
स्वास्थ्य और शिक्षा:
- 10,000 की आबादी पर सिर्फ़ 14.47 स्वास्थ्य कर्मी हैं।
- स्वास्थ्य बीमा या योजनाओं से सिर्फ़ 17.4% परिवार ही कवर हैं।
- शिक्षा के क्षेत्र में बिहार को महज़ 32 अंक मिले हैं — सभी राज्यों में सबसे नीचे।
- कक्षा 9–10 में ड्रॉपआउट दर 20% से ज़्यादा, जबकि उच्च माध्यमिक शिक्षा में नामांकन सिर्फ़ 35.9% है।
लैंगिक और आर्थिक असमानता:
- बिहार में 1000 पुरुषों पर सिर्फ़ 908 महिलाएं — राष्ट्रीय औसत (943) से कम।
- महिला श्रम भागीदारी दर सिर्फ़ 10.22%।
- आय असमानता भी बहुत अधिक है।
- रोजगार और आर्थिक अवसरों के मामले में बिहार को 54 अंक, यानी सबसे निचला स्तर मिला है।
🔹 अपराध का आईना: NCRB की रिपोर्ट
भारत सरकार की संस्था NCRB (National Crime Records Bureau) के ताज़ा आंकड़े (सितंबर 2024) दिखाते हैं कि:
- हत्या और अपहरण के मामलों में उत्तर प्रदेश पहले और बिहार दूसरे स्थान पर है।
- दहेज हत्या और दलितों के खिलाफ अपराध में भी बिहार टॉप-5 राज्यों में शामिल है।
- महिलाओं के खिलाफ अपराध में भले बिहार “टॉप-5” में नहीं, लेकिन “टॉप-10” में ज़रूर है।
यह सब आंकड़े भारत सरकार की ही संस्थाओं के हैं — यानी वही सरकार जो केंद्र में नरेंद्र मोदी और राज्य में नीतीश कुमार के साथ NDA चला रही है।
और यह शासन सिर्फ़ 1–2 साल का नहीं, बल्कि लगातार 20 वर्षों से चल रहा है।
🔹 20 साल का सुशासन या आंकड़ों में विफलता?
नीति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि ‘सुशासन’ का दावा आज भी आंकड़ों में ‘फिसड्डी शासन’ में बदल चुका है।
गरीबी, बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य — हर मोर्चे पर बिहार सबसे नीचे है।
जबकि अपराध के मोर्चे पर वह यूपी के साथ सबसे ऊपर।
फिर भी, चुनावी भाषणों में बिहार के लिए वही पुराने वादे, वही “विकास का ढोल”।
मतदाता भूल जाते हैं कि पिछले चुनाव में क्या वादा हुआ था, कौन-सा पूरा हुआ और कौन-सा अधूरा रह गया।
🔹 निष्कर्ष: आंकड़ों से आगे की ज़रूरत
जब बिहार के मतदाता अगली बार मतदान करें, तो यह याद रखें कि:
- ये आंकड़े विपक्ष के नहीं, सरकार के खुद के हैं।
- वास्तविक स्थिति इससे भी बदतर हो सकती है, क्योंकि अपराध के कई मामले दर्ज ही नहीं होते।
- और विकास का जो ढोल पीटा जा रहा है, उसकी ताल में गरीबी और असमानता की चीखें दब जाती हैं।
इसलिए बिहार के चुनाव में सवाल यही होना चाहिए —
“विकास का दावा या आंकड़ों की सच्चाई?”
