फेक बारिश का नाटक: दिल्ली सरकार की क्लाउड सीडिंग एक्सरसाइज़ निकली फुस्स
गोलमाल है भाई, सब गोलमाल है।
दिल्ली में इस बार न सिर्फ फेक AQI और फेक यमुना घाट का तमाशा चला, बल्कि अब फेक बारिश का भी नाटक सामने आया है। राजधानी की हवा जब ज़हर बन गई, तब दिल्ली सरकार ने इसे छिपाने के लिए “आर्टिफ़िशियल रेन” यानी कृत्रिम वर्षा का ढोंग रच डाला। लेकिन करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद आसमान से एक बूंद भी नहीं टपकी।
🎇 दिवाली से छठ तक: तीन फर्जीवाड़ों का पर्दाफाश
पहले दिवाली पर ग्रीन पटाखों के नाम पर प्रदूषण फैलाया गया। जब प्रदूषण ने सभी स्तर पार कर लिए, तो सरकार ने फेक AQI रीडिंग्स से डेटा मैनेजमेंट शुरू किया।
बताया जाता है कि AQI सेंटरों के आसपास पानी के टैंकरों से छिड़काव कराया गया ताकि मशीनें प्रदूषण का स्तर कम दर्ज करें। लेकिन सच ज़्यादा दिन छिपा नहीं—हवा का ज़हर कैमरे पर कैद हो गया।
इसके बाद बारी आई फेक यमुना घाट की। छठ पूजा के बहाने एक कृत्रिम घाट बनाया गया, जिसमें फिल्टर पानी भरवाया गया और मीडिया को दिखाया गया कि “देखिए, यमुना कितनी साफ़ हो गई!”
पर यह झूठ भी कैमरों में पकड़ा गया — शीशे जैसी पारदर्शिता और लेज़र लाइट्स के बीच वह घाट असली यमुना की गंदगी छिपा नहीं सका।
और अब तीसरा नाटक — आर्टिफ़िशियल रेन।
🌫️ फेल हुआ करोड़ों का प्रयोग
दिल्ली सचिवालय से लेकर गोदी मीडिया तक दावा किया गया कि मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में कृत्रिम वर्षा कराई गई।
लेकिन आप विधायक सौरभ भारद्वाज ने मौके पर पहुँचकर कैमरे से सच्चाई दिखा दी —
“यहाँ एक बूंद तक नहीं गिरी है!”
उन्होंने दिल्ली के कई इलाकों से रिपोर्टिंग करते हुए बताया कि न बारिश हुई, न हवा साफ़ हुई — सब कुछ फेक नैरेटिव था।
📉 डेटा बनाम ‘गोदी’ दावे
दिल्ली सरकार की कोशिश थी कि मीडिया मैनेजमेंट से कहानी संभाल ली जाए।
एक ही मीडिया घराने के दो अख़बारों में विरोधाभास देखिए:
- Hindustan Times (अंग्रेज़ी) ने लिखा — Artificial rain experiment failed in Delhi.
- हिन्दुस्तान (हिंदी) ने छापा — कृत्रिम वर्षा के प्रयास से हल्की बूंदाबांदी हुई।
वहीं, NDTV ने तो इसे “चमत्कारिक सुधार” बताया, जबकि सौरभ भारद्वाज ने IMD के आधिकारिक आंकड़े जारी कर दिए —
“दिल्ली में कहीं भी बारिश नहीं हुई।”
29 अक्टूबर के दिन ही AQI रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा — “Hazardous” ज़ोन में। यानी फेक बारिश से प्रदूषण नहीं धुला, उल्टा और बढ़ गया।
✈️ IIT कानपुर की पुष्टि: बारिश नहीं हुई
IIT कानपुर के डायरेक्टर मनिंदर अग्रवाल ने NDTV को बताया कि यह प्रयोग सफल नहीं हुआ।
क्लाउड सीडिंग के लिए दो उड़ानें भरी गईं — दोपहर और शाम को। इनसे 14 फ्लेयर्स छोड़े गए जिनमें सिल्वर आयोडीन और नमक था।
पर न बादल बने, न बारिश हुई।
यहां तक कि इससे पहले बुराड़ी के ऊपर भी ऐसा ही असफल प्रयोग किया जा चुका था।
विशेषज्ञों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग कोई लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन नहीं है। यह बेहद महंगा और अप्रभावी तरीका है — एक दिन में एक करोड़ से ज़्यादा रुपये खर्च कर दिए गए, नतीजा ‘सुखा-सुखा-सुखा’।
📢 जुमलेबाज़ी बनाम जनहित
फेक यमुना घाट, फेक AQI और फेक बारिश — यह सब एक पैटर्न है।
दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार भी अब उसी रास्ते पर चल पड़ी है जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चलते आए हैं — जुमलों और झूठे आंकड़ों की राजनीति।
पर वह भूल जाती हैं कि पब्लिक है, सब जानती है।
दिल्ली के लोग प्रदूषण भी झेल रहे हैं और सरकार के नाटकों को भी पहचान रहे हैं।
🔍 निष्कर्ष
क्लाउड सीडिंग का यह असफल प्रयोग सिर्फ एक तकनीकी असफलता नहीं, बल्कि राजनीतिक असफलता भी है। जब शासन की प्राथमिकता डेटा मैनिपुलेशन और इमेज मैनेजमेंट बन जाए, तब सच्ची बारिश नहीं, सिर्फ झूठ की धूल उड़ती है।
