October 6, 2025 8:16 am
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भूखे भजन न होय गोपाला: आरएसएस और आर्थिक नीतियाँ

आरएसएस की बैठक में डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने भारत की अर्थव्यवस्था, असमानता, बेरोजगारी और आत्महत्या पर गंभीर सवाल उठाए। क्या आरएसएस अपने एजेंडे में इन मुद्दों को शामिल करेगा?

RSS को क्यों ज़रूरत पड़ी आर्थिक समूह की बैठक की, असमानता और विकास मॉडल पर गंभीर सवाल

आरएसएस को अब तक एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में देखा जाता रहा है, जिसका मुख्य कार्य “हिंदू समाज को संगठित करना” बताया गया है। लेकिन हाल ही में सरसंघचालक के भाषणों और वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी के आर्थिक प्रेज़ेंटेशन ने इस धारणा को चुनौती दी है। 26-28 अगस्त को आयोजित एक बैठक में आरएसएस से जुड़े संगठनों — भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच और अन्य — के सामने जोशी ने आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, आत्महत्या, और विकास मॉडल पर तीखे सवाल उठाए।

आरएसएस और आर्थिक विमर्श की नई दिशा

आरएसएस की अब तक की गतिविधियों में आर्थिक समानता या गरीबों के मुद्दे लगभग अनुपस्थित रहे हैं। इसके सरसंघचालकों ने अतीत में समाजवादी और वामपंथी चिंतन को हिंदू राष्ट्र का विरोधी बताया था। लेकिन डॉ. जोशी का हालिया प्रेज़ेंटेशन इस परंपरा से अलग नज़र आता है।

भारत की अर्थव्यवस्था और असमानता

  • जोशी ने बताया कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा करता है, लेकिन देश की 65% संपत्ति सिर्फ़ 10% लोगों के पास केंद्रित है।
  • प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) की तुलना में भारत अभी बहुत पीछे है। भारत की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ़ 2878 डॉलर प्रतिवर्ष है, जबकि जापान की 33955 डॉलर प्रतिवर्ष
  • इसका अर्थ है कि राष्ट्रीय जीडीपी की रैंकिंग के बावजूद भारतीय समाज में गहरी असमानता मौजूद है।

सामाजिक संकट और आत्महत्या का बढ़ता ग्राफ

  • झुग्गी बस्तियों में रहने वाले करीब 33% बच्चे नशे और शराब की लत का शिकार हैं।
  • विद्यार्थियों में आत्महत्या के मामलों में भारी वृद्धि हुई है। 2018 में यह दर 1.34 थी, जो 2022 में बढ़कर 1.70 हो गई।
  • 2021 के आंकड़ों के अनुसार, 35,950 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की, जिनमें आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों के छात्र भी शामिल थे।

कृषि पर निर्भरता और विकास मॉडल

  • भारत की आबादी का 43% हिस्सा कृषि पर निर्भर है, जबकि जापान में यह सिर्फ़ 3% है।
  • जोशी ने कहा कि केवल जीडीपी से विकास का आकलन करना पर्याप्त नहीं है। जीवन की गुणवत्ता, सुख-शांति और सामाजिक समानता भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।

सवाल उठाता है यह बदलाव

आरएसएस का परंपरागत रुख़ गरीबों और श्रमिक वर्ग से दूरी बनाए रखने का रहा है। किसान आंदोलनों और मज़दूरों के खिलाफ़ कानूनों पर भी इन संगठनों ने बड़े स्तर पर विरोध नहीं किया। ऐसे में डॉ. जोशी का यह प्रेज़ेंटेशन एक “सुखद आश्चर्य” है।

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या आरएसएस वास्तव में अपने एजेंडे में आर्थिक असमानता, सामाजिक न्याय और जीवन की गुणवत्ता को शामिल करेगा, या यह चर्चा महज़ एक अपवाद बनकर रह जाएगी?

निष्कर्ष (Conclusion)

डॉ. मुरली मनोहर जोशी का यह आर्थिक विश्लेषण इस बात का संकेत देता है कि देश की असली चुनौतियाँ सिर्फ़ सांस्कृतिक नहीं बल्कि गहरी आर्थिक और सामाजिक असमानताओं से जुड़ी हुई हैं। अगर आरएसएस इस विमर्श को अपनी नीतियों में शामिल करता है तो यह भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।

राम पुनियानी

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