November 22, 2025 12:35 am
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मनुवादी मानसिकता के खिलाफ एक नई लड़ाई

बिहार चुनाव के बाद RJD की तीन बहादुर महिला प्रवक्ताओं—प्रियंका भारती, कंचन यादव और सरिता पासवान—पर ट्रोल आर्मी के जातिसूचक और महिला-विरोधी हमले बढ़ गए हैं। जानिए कैसे ये महिलाएँ मनुवाद और पितृसत्ता को चुनौती दे रही हैं।

बिहार के नतीजे आते ही राजद की तीन महिला प्रवक्ताओं पर BJP ट्रोल आर्मी का हमला

बिहार चुनाव परिणाम आने के बाद, भारतीय राजनीति का एक शर्मनाक और खतरनाक चेहरा एक बार फिर पूरी ताक़त से सामने आया है—RJD की तीन महिला प्रवक्ता: प्रियंका भारती, कंचन यादव और सारिका पासवान के खिलाफ सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा सुनियोजित ट्रोल अभियान।

ये तीनों महिलाएँ लगातार टीवी डिबेट्स में मनुवाद, पितृसत्ता और बीजेपी प्रवक्ताओं की महिला-विरोधी भाषा को चुनौती दे रही थीं। यही वजह है कि पूरी ट्रोल आर्मी, नहाकर-धोकर इन तीनों महिलाओं पर टूट पड़ी है—जातिसूचक, अश्लील और अपमानजनक गालियों की बौछार के साथ।

यह वही भाषा है जो एक राजनीतिक असफलता को महिलाओं पर थोपना चाहती है और बहुजन महिलाओं की दृढ़ आवाज़ को कुचल देना चाहती है।

मनुवादी गालियाँ और पितृसत्तात्मक हमला: तीनों महिलाएँ क्यों निशाने पर हैं?

इन महिलाओं को भीम चट्टी, नील चट्टी, ताड़का, सूर्पनखा जैसी गालियों से नवाज़ा जा रहा है। यह खुलकर बताता है कि:

  • जाति से नफ़रत कितनी गहरी है
  • बहुजन महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी किन लोगों को चुभती है
  • मनुवादी मानसिकता अब सोशल मीडिया का सबसे हिंसक हथियार बन चुकी है

यही कारण है कि चुनाव के बाद ट्रोल आर्मी का नैरेटिव यह है कि
“इन्हीं तीन महिलाओं के कारण तेजस्वी यादव और महागठबंधन हार गए।”

क्यों?
क्योंकि ये महिलाएँ टीवी डिबेट्स में सीधे-सीधे मनुवाद को चुनौती दे रही थीं, दबंग जातियों के अहंकार को सवालों के कटघरे में खड़ा कर रही थीं और बीजेपी के बदतमीज़ एवं महिला-विरोधी प्रवक्ताओं के खिलाफ खड़ी थीं।

प्रियंका भारती का जवाब: ‘जब आप मुझे भीम्टी बोलते हैं, मैं और मजबूत होती हूँ’

प्रियंका भारती ने जिस साहस के साथ जवाब दिया है, वह किसी क्रांति से कम नहीं:

  • “जब आप मुझे भीम्टी बोलते हैं, तो भीम का नाम गूंजता है—मैं मजबूत होती हूँ।”
  • “जब आप नील चट्टी कहते हैं, तो मुझे वह नीला रंग याद आता है जो 5000 वर्षों से हमारे शरीर पर आप थोपते आए हैं।”
  • “आप मेरी आवाज़ नहीं छीन सकते, न मेरा समाज, न मेरी पार्टी।”

यह वही आत्मविश्वास है जिसने ट्रोल आर्मी को बौखलाया है।

प्रियंका का यह बयान सिर्फ निजी प्रतिरोध नहीं, बल्कि बहुजन राजनीतिक चेतना का सार्वजनिक उद्घोष है।

कंचन यादव की चिट्ठी: ‘फिल्म तो अभी शुरू हुई है’

कंचन यादव ने अपनी चिट्ठी में साफ लिखा:

  • “हम पीछे नहीं हटेंगे।”
  • “आपके कान से खून भी निकल जाए, तो भी आपको हमें सुनना पड़ेगा।”
  • “महिलाओं की राजनीति अब 10,000 रुपये में बकरी खरीदने की कहानी नहीं रही—हम अधिकार मांगेंगी, और अधिकार लेकर रहेंगी।”

उनकी चिट्ठी बता रही है कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं, बल्कि अभी शुरू हुई है।

सारिका पासवान की भूमिका: बहुजन आवाज़ को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने की जिद

सरिता पासवान, प्रियंका भारती और कंचन यादव—तीनों मिलकर उस राजनीतिक स्पेस को खोल रही हैं जहाँ बहुजन महिलाएँ सिर्फ प्रतीक नहीं, बल्कि नेतृत्व की जगह ले रही हैं।

यही बात मनुवादी, पितृसत्तात्मक, जातिगत मानसिकता को नागवार गुजर रही है।

राजनीति में महिलाएँ क्यों इतनी आसानी से निशाना बनती हैं?

यह सवाल नया नहीं है।
याद कीजिए—कांग्रेस की तेज़तर्रार प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत के पिता के साथ एक पारिवारिक तस्वीर को भी कितनी गंदी भाषा में बदनाम किया गया था। आज तक माफी नहीं माँगी गई।

अब वही हथियार RJD की महिला प्रवक्ताओं पर चलाया जा रहा है।

क्योंकि राजनीति में महिलाओं का मजबूत होना—खासतौर पर बहुजन महिलाओं का मजबूत होना—पुरुषवादी सत्ता ढांचे को सबसे ज़्यादा चुनौती देता है।

यह लड़ाई राजनीतिक ही नहीं, सामाजिक भी है

तीनों महिलाएँ सिर्फ RJD की प्रवक्ता नहीं। वे उस नए भारत का चेहरा हैं जहाँ:

  • महिलाएँ राजनीतिक विमर्श को लीड कर रही हैं
  • जाति और पितृसत्ता को चुनौती दे रही हैं
  • बहुजन समाज की आवाज़ राष्ट्रीय पटल पर उठ रही है

यह वही लड़ाई है जिसे लोहिया ने कहा था:
“हम हार सकते हैं, लेकिन हार मान नहीं सकते।”

और जैसा प्रियंका ने कहा—
दो कदम पीछे लेना, लंबी छलांग के लिए होता है।

हम इन महिलाओं के साथ हैं—आप कहां खड़े हैं?

यह सिर्फ तीन महिलाओं का मुद्दा नहीं।
यह लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी, बहुजन आवाज़ों की मौजूदगी और राजनीतिक विमर्श की गरिमा का मुद्दा है।

वे लड़ रही हैं—दृढ़ता, आत्मसम्मान और संविधान की रोशनी में।

हम उनके साथ खड़े हैं।
आप कहां खड़े हैं?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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