‘कत्ल की रात’: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोट चोरी, जनता बनाम तंत्र की जंग
कल 14 नवंबर है — वो दिन जब बिहार की जनता जनार्दन यह तय करेगी कि तख़्त-ए-बिहार पर कौन बैठेगा। लेकिन नतीजों से पहले की यह रात, एक “कत्ल की रात” बन चुकी है — जहाँ बहस है, शोर है, शक है, और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या इस बार भी ‘तंत्र’ जनता से आगे निकल गया?
बेबाक भाषा पर आज जो माहौल है, वह सिर्फ एक चुनावी चर्चा नहीं, बल्कि जनता बनाम सत्ता का लाइव दस्तावेज़ है। हमने ग्राउंड से जो तस्वीरें और वीडियो देखे, वे बताते हैं कि ‘वोट चोरी’ का खेल सिर्फ अफ़वाह नहीं, बल्कि कैमरे पर पकड़ा गया सच है।
तेजस्वी बनाम नीतीश — लेकिन पर्दे के पीछे तंत्र
इस बार का मुकाबला काग़ज़ पर भले ही तेजस्वी बनाम नीतीश दिख रहा हो, लेकिन मैदान में जनता की जंग किसी और से है — ‘मोदी तंत्र’ से।
प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी, पर बिहार ने बता दिया कि यह चुनाव दो बिहारियों का है — न कि दिल्ली के किसी चाणक्य का।
सारे एक्ज़िट पोल्स में भले महागठबंधन को कमतर दिखाया गया हो, लेकिन जनता के मन में नितीश बनाम तेजस्वी का संघर्ष ही असली कहानी है। और जैसे-जैसे ईवीएम खुलने की घड़ी नज़दीक आ रही है, “वोट चोरी” की कहानियाँ पूरे बिहार में सुलग रही हैं।
सासाराम की रात: एक ट्रक, एक वीडियो और जनता की जीत
सबसे बड़ी हलचल सासाराम से शुरू हुई — जहाँ रात के अंधेरे में एक ट्रक स्ट्रॉन्ग रूम में घुसता है।
न कोई पुलिस, न कोई मीडिया, बस जागरूक नागरिकों की भीड़, जिन्होंने ट्रक को रोका, वीडियो बनाया, और देश को दिखा दिया कि बिहारी वोटर कोई आसान मोहरा नहीं।
विडंबना देखिए — बीजेपी के ही ‘X हैंडल’ पर वही वीडियो थोड़ी अलग कहानी के साथ शेयर कर दिया गया। यानी जो बात थी, वही बात थी, बस बयान बदल गया। लेकिन जनता ने तस्वीरें देख लीं — सूटकेसों में बंद ईवीएम, बंद सीसीटीवी कैमरे, और प्रशासन का बैकफुट पर आना।
नतीजा: रोहतास SDM पर कार्रवाई।
और यही बिहार की जनता की असली जीत है — जहाँ जनता खुद चुनाव आयोग को जवाबदेह बना रही है।
खजाना लुटा, पर भरोसा नहीं मिला
इस चुनाव में महिलाओं को ‘लुभाने’ का खेल भी किसी स्क्रिप्ट से कम नहीं।
सरकार ने 1 करोड़ 51 लाख महिलाओं को दस-दस हज़ार रुपये बाँटे।
लेकिन सवाल वही — क्या बिहार की महिलाएँ इतनी आसानी से “खरीदी” जा सकती थीं?
हमारी ग्राउंड रिपोर्ट कहती है कि असर तो पड़ा, लेकिन उतना नहीं जितना सत्ता ने सोचा था।
बिहार की औरतों ने डर के आगे नहीं, सोच के आगे वोट दिया।
जनता की निगरानी बनाम चुनाव आयोग की चुप्पी
जब सासाराम, नालंदा और कई इलाकों में कैमरे बंद हुए, रात में गाड़ियाँ आईं और सूटकेस अंदर गए — तब चुनाव आयोग कहाँ था?
जवाब नहीं मिला।
यह वही आयोग है जिसने दिल्ली हाईकोर्ट में स्वीकार किया कि 2024 लोकसभा चुनाव की CCTV फुटेज डिलीट कर दी गई।
क्यों? क्या इसलिए कि चोरी का सबूत कहीं बच न जाए?
जनता बनाम तंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा
बिहार ने बार-बार साबित किया है कि वह सिर्फ वोट नहीं देता, वोट की रक्षा भी करता है।
स्ट्रॉन्ग रूम्स के बाहर खड़ी महिलाओं, छात्रों और कार्यकर्ताओं की भीड़ इस लोकतंत्र का सबसे जीवंत दृश्य है।
और यही वह तस्वीर है जो बताती है कि चाहे मोदी तंत्र कितना भी ताकतवर क्यों न हो, जनता का कैमरा हर बार भारी पड़ता है।
“रील बनाओ” का नारा देने वालों को बिहार ने जवाब दिया —
“सच की रील बनाओ, चोरी की पोल खोलो।”
नतीजा कुछ भी हो, संदेश साफ़ है:
बिहार की जनता अब न जनता को बेवकूफ समझने देगी, न वोट को चोरी होने देगी।
कल जब ईवीएम खुलेगी, तो यह सिर्फ वोट नहीं गिनेंगे —
यह जनता की सतर्कता का इम्तिहान भी होगा।
