सरकार की चुप्पी: तीन दिन बाद भी नहीं आया कोई आधिकारिक बयान
10 नवंबर को देश की राजधानी दिल्ली में हुए भीषण धमाके ने पूरे देश को दहला दिया। इस धमाके में 13 लोगों की मौत हो चुकी है और कई गंभीर रूप से घायल हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस घटना के तीन दिन बीत जाने के बाद भी न तो सरकार की तरफ से कोई औपचारिक ब्रीफिंग हुई है, और न ही किसी अधिकारी ने यह बताया है कि यह हमला आतंकी था, फिदायीन था या इसके पीछे कुछ और साजिश है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूटान यात्रा से लौटकर सीधे दिल्ली के एलन जीपी अस्पताल पहुँचे, जहाँ उन्होंने घायलों से मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि इस हमले के पीछे जो भी ताकतें हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि जब देश की राजधानी में इतना बड़ा विस्फोट हुआ है, तो अब तक सरकार की ओर से कोई विस्तृत आधिकारिक जानकारी क्यों नहीं दी गई?
प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा पर सवाल
धमाके के अगले ही दिन प्रधानमंत्री मोदी भूटान रवाना हो गए थे। उस समय भी यह सवाल उठा था कि जब दिल्ली जैसे संवेदनशील शहर में अफरा-तफरी और भय का माहौल है, तो क्या प्रधानमंत्री को विदेश यात्रा पर जाना चाहिए था? अब जब वे लौट आए हैं, तब यह उम्मीद की जा रही थी कि सरकार इस घटना पर स्पष्ट और जिम्मेदार बयान देगी। लेकिन 10 से 12 तारीख तक सरकार की ओर से केवल निंदा के बयान आए हैं, कोई ठोस जानकारी नहीं।
RDX मिला या नहीं? पुलिस और मीडिया में विरोधाभास
धमाके के बाद दिल्ली पुलिस ने शुरुआती ब्रीफिंग में कहा था कि घटनास्थल से RDX नहीं मिला। यह वही पैटर्न है जो 9 नवंबर को हरियाणा में सामने आए आतंकी नेटवर्क के मामले में भी देखा गया था। वहाँ भी पुलिस ने कहा था कि RDX नहीं मिला, बल्कि ज्वलनशील पदार्थ और केमिकल्स बरामद किए गए। इन मामलों में अब तक तीन गिरफ्तारियाँ हो चुकी हैं और करीब 360 किलो विस्फोटक सामग्री बरामद की गई है।
यह सारे तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि देश में आतंकी गतिविधियों की जड़ें गहरी हैं, लेकिन सरकार की ओर से न कोई समन्वित ब्रीफिंग हो रही है, न कोई सुरक्षा समीक्षा सार्वजनिक की जा रही है।
सवाल जवाबदेही का है
जब सात महीने पहले पहलगाम में आतंकी हमले में कई लोग मारे गए थे, तब भी सरकार पर सवाल उठे थे। अब तक 41 भारतीय नागरिक आतंकी घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। सवाल है कि इन घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या यह आंतरिक सुरक्षा में असफलता नहीं है?
मीडिया की भूमिका पर चिंता
घटना के बाद जिस तरह मीडिया ने “सूत्रों” के हवाले से मनगढ़ंत कहानियाँ और धार्मिक पहचान पर आधारित दावे फैलाने शुरू किए, वह बेहद चिंताजनक है। कुछ चैनलों ने गिरफ्तार किए गए संदिग्धों के परिवारों पर जिस तरह से “विच हंटिंग” की, वह पत्रकारिता नहीं बल्कि नफरत फैलाने की कोशिश लगती है।
एक आरोपी के पिता को मीडिया ने जिस अमानवीय तरीके से घेरा, वह ‘वाइट कॉलर टेरर’ की मिसाल है—जहाँ मीडिया की नफरत और पूर्वाग्रह खुद एक आतंक का रूप ले लेते हैं।
धर्म के आधार पर जांच नहीं, सबूत के आधार पर हो
आतंकवाद किसी भी रूप में निंदनीय है। लेकिन आतंक को धर्म से जोड़ना या किसी समुदाय को संदेह के घेरे में लेना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। ट्रेन यात्रियों की तलाशी, सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारियाँ—ये सब भय का माहौल बना रही हैं।
देश को यह जानने का अधिकार है कि धमाके के पीछे कौन-सी ताकतें हैं और सरकार क्या कदम उठा रही है। इसलिए ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जल्द से जल्द इस घटना पर एक आधिकारिक बयान दें, ताकि अफवाहों का सिलसिला रुके और जनता में भरोसा कायम हो।
