जीवंत राजनीति के गढ़ में रोजगार व मोहब्बत की टक्कर कट्टे व घुसपैठ राग से
बिहार में दूसरे चरण के चुनाव प्रचार का परदा गिर चुका है। ग्यारह तारीख़ को मतदान होना है — और अब लाख टके का सवाल यही है कि आखिर सरकार किसकी बनेगी? करीब सात करोड़ चालीस लाख मतदाताओं के सामने यह निर्णायक पल है।
लेकिन बिहार है — और बिहार की धरती है। यह मिट्टी जितनी उपजाऊ है, उतनी ही राजनीतिक रूप से रचनात्मक। यहां चुनाव सिर्फ मतदान नहीं होता, बल्कि यह लोकतंत्र का उत्सव बन जाता है — जिसमें गाने हैं, व्यंग्य हैं, मीम्स हैं, और जनता का जबर्दस्त रेस्पॉन्स है।
देश में शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहां राजनीति इतनी जीवंत, इतनी बहसों और भावनाओं से भरी हो। जो राजनीति की एबीसीडी सीखना चाहता है, उसे बिहार के चुनावी मैदानों में झांकना चाहिए — जहां मोदी जी की विशाल रैलियों से लेकर पटना के रिक्शेवाले तक राजनीति पर चर्चा करते नज़र आते हैं।
🔥 ‘अग्निपरीक्षा’ और वोट की लड़ाई
बिहार के मतदाताओं ने इस बार जिस तरह से ‘आग के दरिया’ में तैरकर लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा दी है, वह मिसाल बन गई है।
याद कीजिए, जून में जब अचानक चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी थी — मानो कोई ‘ग्रेट केचुआ’ जाग उठा हो — और बिहार को एक और चुनावी अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी।
फिर वही वोटर लिस्ट की गड़बड़ी, आधार कार्ड का झमेला, और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची लड़ाई। आखिरकार बिहार के मतदाता जीत गए — और आयोग को झुकना पड़ा।
लेकिन सवाल अब भी वहीं है — जब 14 तारीख़ को EVM का पिटारा खुलेगा, तब क्या इस संघर्ष का सम्मान होगा?
क्योंकि हर दिन सोशल मीडिया पर वीडियो आ रहे हैं — “वोट चोरी”, “लाइट गुल”, “EBM की चोई” — लोकतंत्र के चौकीदारों को आईना दिखाते हुए। महिलाएं कैमरे पर कह रही हैं कि “हम सुबह साढ़े छह बजे से खड़े थे, पर हमारा नाम काट दिया गया।”
ये बिहार की असली तस्वीर है — जहां जनता अब सिर्फ वोट नहीं डाल रही, बल्कि हर वोट की रखवाली कर रही है।
🎯 तेजस्वी यादव: नौकरी और उद्योग का सीधा एजेंडा
दूसरे चरण के आखिरी दिन तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ी भीड़ ने साफ कर दिया कि बिहार में मुद्दे अब बदल चुके हैं।
तेजस्वी यादव ने पूरा चुनाव एक ही नारे पर केंद्रित रखा — “नौकरी, उद्योग और परिवर्तन।”
ना जात-पात की बात, ना भटकाव — सीधा वादा कि बिहार में क्रांति आएगी।
यह चुनाव प्रचार नहीं, बल्कि युवा उम्मीदों की हुंकार थी।
तेजस्वी की रैलियों में जोश देखकर लगता है कि जनता सिर्फ भाषण नहीं सुन रही, बल्कि अपनी भावनाएं उन पर दांव पर लगा रही है।
⚡ राहुल गांधी का तीखा वार: “मोडी जी के खून में नफरत है”
दूसरे बड़े चेहरे रहे राहुल गांधी।
वे बीजेपी के हर प्रचार में निशाने पर रहे — चाहे मोदी हों, अमित शाह हों या हिमंता बिस्वा शर्मा — सबके भाषण राहुल गांधी के नाम से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म हुए।
लेकिन राहुल गांधी भी इस बार पीछे नहीं हटे।
उन्होंने आख़िरी रैली में कहा —
“मोदी जी के खून में नफरत है, मेरी नसों में मोहब्बत है। वो तोड़ना चाहते हैं, मैं जोड़ना चाहता हूँ।”
यह बयान पूरे चुनाव प्रचार का टर्निंग पॉइंट बना।
याद कीजिए, मोदी जी ने कभी इसी बिहार की धरती पर कहा था कि उनकी नसों में “गरम सिंदूर बहता है” — राहुल ने उसी पर पलटवार करते हुए वैचारिक रेखा खींच दी।
यह चुनाव अब केवल सत्ता की नहीं, बल्कि विचारधारा की लड़ाई बन चुका है।
🧩 दीपांकर भट्टाचार्य और माले का संदेश
भाकपा (माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने अपने भाषणों में साफ कहा —
“बिहार न कभी झुका है, न झुकेगा।”
माले का यह नारा पूरे बिहार में गूंजा।
दीपांकर ने इसे मोदी-शाह की सत्ता के खिलाफ बिहार की असली लड़ाई बताया — ऐसी लड़ाई जो दिल्ली तक संदेश देगी कि अब ‘बैसाखी का दौर’ खत्म हो रहा है।
💥 कंचना यादव का सवाल और मोदी जी की ‘कट्टा पॉलिटिक्स’
RJD की कंचना यादव ने अपने भाषणों में सीधे पूछा —
“11 साल की सरकार में मोदी जी ने कितनी फैक्ट्री खोलीं? कितनी चीनी मिलें चलीं?”
यह सवाल बिहार की हर रैली में गूंजा।
क्योंकि जनता के सामने सबसे बड़ा मुद्दा है रोजगार और उद्योग —
क्यों बिहार से पलायन इतना ज़्यादा है?
क्यों नौजवान को दूसरे राज्यों में मजदूरी करनी पड़ती है?
इन सवालों का जवाब देने की जगह, मोदी जी ने दिया —
“कट्टा, सिक्सर, फिरौती, हत्या।”
यह वही नफरत की भाषा है जिसके खिलाफ राहुल गांधी और तेजस्वी दोनों ने चुनावी मंच पर मोर्चा खोला है।
🚂 कपिल सिब्बल का बड़ा खुलासा: ‘स्पेशल ट्रेनें’ और वोटिंग पर सवाल
वरिष्ठ वकील और सांसद कपिल सिब्बल ने एक गंभीर आरोप लगाया है —
कि बीजेपी ने अपने पैसे से हरियाणा और गुरुग्राम से ‘स्पेशल ट्रेनें’ बुक कराकर मजदूरों को बिहार भेजा है।
उन्होंने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से पूछा —
“तीन नवंबर को सुबह 10 बजे, 11 बजे, और दोपहर 3 बजे जो ट्रेनें बरोनी और भागलपुर गईं, वे किसके आदेश पर चलीं? अगर छठ के समय बिहारियों के लिए ट्रेनें नहीं चल सकीं, तो चुनाव से पहले कैसे चल गईं?”
यह सवाल सिर्फ विपक्ष का नहीं — बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद पर है।
🧠 बिहारी बुद्धि और रचनात्मक प्रतिरोध
मोदी जी के प्रचार गीतों, कट्टा-बयानबाज़ी और ‘सिक्सर’ प्रपैगेंडा के जवाब में बिहार के युवाओं ने जो मीम्स, गाने और वीडियो बनाए, उन्होंने दिखा दिया कि बिहारी जनता केवल वोटर नहीं, बल्कि रचनात्मक प्रतिरोध की प्रतीक है।
उन्होंने प्रचार का “गर्दा” उड़ा दिया — और यह बताया कि लोकतंत्र में व्यंग्य सबसे बड़ा हथियार है।
⚖️ अब बारी जनता की
अब गेंद जनता के पाले में है।
तेजस्वी यादव की रैलियों की भीड़ क्या वोट में तब्दील होगी या नहीं — यह 14 तारीख़ को पता चलेगा।
क्योंकि बिहार की राजनीति में जनता जितनी भावनात्मक है, उतनी ही जागरूक भी।
अब सवाल यही है —
“सरकार किसकी बनेगी?”
वोट की असली ताकत अब बिहार की जनता के हाथ में है।
